मुंबई (ईएमएस)। मुंबई हाई कोर्ट ने एक मामले में आठ साल के बच्चे की देखभाल एक ऐसी महिला को सौंप दी, जो उसके पिता की मौत से पहले उसके साथ रहती थी। बता दें कि फरवरी 2021 में कोरोना काल के दौरान आठ वर्षीय बच्चे ने अपनी मां लोना को खो दिया। इसके बाद उसके पिता जॉनी अपनी सास की बहन की बेटी स्टेफी फर्नांडिस के साथ रहने लगे। दुर्भाग्य से साल 2023 में जॉन की भी कार दुर्घटना में मौत हो गई। जॉन की मौत के बाद बच्चे के दादा-दादी यानी जॉन के माता-पिता ने साल 2024 में कोर्ट में याचिका दायर कर अपने पोते की कस्टडी मांगी। अगस्त 2023 में दादा-दादी ने काशीमीरा थाने में शिकायत दर्ज कराई थी कि स्टेफी उनके पोते को उन्हें सौंपने के लिए तैयार नहीं है और उन्हें अपने पोते से मिलने से रोक रही है। इस शिकायत के आधार पर फिर यह मामला बाल अधिकार सुधार समिति द्वारा सीडब्ल्यूसी के पास ले जाया गया। समिति की सलाह पर पुलिस ने सितंबर 2023 में स्टेफी से लड़के की कस्टडी ले ली और उसे डोंबिवली में जननी आशीष सेवाभाई संस्था के बाल गृह में भेज दिया। वहीं, स्टेफी ने भी कोर्ट में आपराधिक याचिका दायर कर आरोप लगाया कि पुलिस ने लड़के को जबरन पुलिस की गाड़ी में बैटकर कस्टडी में ले गई। स्टेफी ने अपनी याचिका में दावा किया कि बच्चे को उसकी इच्छा के खिलाफ बाल गृह भेजने से दिमाग पर बुरा असर पड़ा है। इसके बाद मई 2024 में बच्चे के दादा-दादी ने कोर्ट में याचिका दायर कर पोते की कस्टडी का दावा किया। इसका विरोध कर स्टेफी ने कोर्ट में हलफनामा पेश किया,जिसमें कहा गया कि जॉन के माता-पिता को 2023 में उनकी मृत्यु के बाद बच्चे की कस्टडी स्टेफी को देने पर कोई आपत्ति नहीं है। अदालत ने अपने फैसले में कहा कि पिता के जीवित रहते हुए स्टेफी ने बच्चे की दो साल तक जो देखभाल की और बच्चे ने उसके साथ जो घनिष्ठ संबंध बनाए, वे उसके वर्तमान पालन-पोषण के लिए उसके दादा-दादी के साथ रिश्ते से ज़्यादा महत्वपूर्ण थे। आशीष/ईएमएस 04 मई 2025