राज्य
08-May-2025


कहीं सायरन सुनाई नहीं दिया, कहीं चलता रहा ट्रैफिक जबलपुर, (ईएमएस)। 1971 की जंग के समय लोगों को इतनी समझ थी कि ज़मीन पर दिखने वाली मामूली सी रौशनी भी आसमान से गुजरने वाले जंगी जहाज को टारगेट दे सकती है। इसीलिए घर के अंदर खपरैल वाले मकानों में खपरैल खिसकने से जो जगह बनती थी, उसे भी कपड़े से ढक दिया जाता था। 1971 से 2025 — 55 साल का फर्क है। तब के मुकाबले आज के जंगी जहाज कई सौ गुना एडवांस हैं, लेकिन क्या आम जनता उतनी ही जागरूक है, जितनी 55 साल पहले थी? भारत-पाकिस्तान के बीच पूर्ण युद्ध जैसे हालात बन चुके हैं। विषम परिस्थितियों में जबलपुर सिविल डिफेंस की तैयारियों का जायजा लेने और आमजन को जागरूक करने के लिए बुधवार को मॉक ड्रिल और ब्लैकआउट का अभ्यास किया गया। जहां मॉक ड्रिल सफल रही, वहीं ब्लैकआउट में ढेर सारी कमियां सामने आई हैं, जिन्हें दुरुस्त किया जाना अति आवश्यक है। नहीं सुनाई दिया सायरन... एक बड़ी समस्या यह रही कि प्रशासन ने ऐलान और प्रचार किया था कि सायरन बजेगा, फिर लाइट बंद करनी है। फिर दूसरी तरह का सायरन बजेगा, तब लाइट जलानी है। लेकिन शहर के बड़े हिस्से में सायरन की आवाज़ सुनाई ही नहीं दी। लोग सायरन की ओर कान लगाए रहे। जो दुकानें या मकान सड़क पर थे, उन्होंने एक-दूसरे को देखकर लाइट बंद कर दीं, लेकिन जो लोग घरों में थे या सायरन की आवाज़ के इंतज़ार में थे, उन्हें पता ही नहीं चला कि कब 12 मिनट बीत गए। जहां तक सायरन के सुनाई नहीं देने की बात है, तो यह सिस्टम 1971 के भारत-पाक युद्ध के समय का है, अतः इसे अपग्रेड करने की आवश्यकता है। तब की अपेक्षा आज जनसंख्या और वाहनों की संख्या में हज़ार गुना इज़ाफा हुआ है, ऐसे में ध्वनि प्रदूषण भी बहुत बढ़ चुका है। इस स्थिति में सायरन व्यवस्था को अपग्रेड करते हुए ऐसे प्रयोग करने होंगे, जिससे चप्पे-चप्पे पर सायरन की ध्वनि सुनी जा सके। पहले हर थानों में हूटर होता था और शहर के बीचों बीच स्थित टेलीकॉम फैक्ट्री सहित शहर के सुरक्षा संस्थानों में भी हूटर होते थे जिनकी गूंज दूर दूर तक सुनाई देती थी| अब इन हूटरों की जगह सरकारी वाहनों और व्हीआईपी वाहनों ने ले ली| जारी रहा ट्रैफिक... ब्लैकआउट में दूसरा सबसे अहम नियम था कि सायरन की आवाज़ सुनते ही वाहन की लाइट बंद करके, वाहन किनारे लगाकर रुक जाना है। लेकिन शहर के प्रमुख चौराहों और मार्गों को छोड़ दें, तो वाहन का शोर और आवागमन लगातार जारी रहा। शहर के विभिन्न चौराहों पर पुलिस मॉक ड्रिल के दौरान नियम बताते हुए लोगों को सचेत करती देखी गई, जबकि कुछ वाहन चालक बताने के बावजूद हेडलाइट बंद नहीं कर सके। कुछ घरों की लाइटें भी जलती दिखाई दीं, जबकि पुलिस लगातार उन्हें बंद करने का ऐलान करती रही। गलत जगह वाहन खड़े किए गए... जहां यातायात रुका, वहां दूसरी समस्या भी सामने आई। पहली यह कि लोगों ने वाहन बीच सड़क पर ही खड़ा कर दिया, जिससे एंबुलेंस और पुलिस की गाड़ियों को भी निकलने की जगह नहीं मिली। दूसरी यह कि लोग वाहन खड़ा करके हेडलाइट तो बंद कर देते थे, लेकिन मोबाइल की लाइट चालू कर लेते थे, जिससे हेडलाइट बंद करने का औचित्य ही नहीं रह जाता। बार-बार मॉक ड्रिल की आवश्यकता... शहर में, विशेषकर ब्लैकआउट के दौरान जो कमियां नज़र आईं, उनकी बुनियादी वजह जागरूकता और जानकारी की कमी थी। प्रशासन को भी तैयारी के लिए सीमित समय मिला और एक पूरी पीढ़ी ऐसी है जो यह नहीं जानती कि युद्ध के दौरान होने वाले ब्लैकआउट के नियम क्या होते हैं। लोग इस मामले में संवेदनशील और गंभीर हैं — यदि उन्हें जागरूक किया जाए, तो हर कोई नियमों का पालन करेगा। इसलिए जानकार मानते हैं कि ऐसी ड्रिल बार-बार की जानी चाहिए, ताकि आमजन पूरी तरह से समझदार और तैयार हो सकें। सुनील साहू / शहबाज / 08 मई 2025/ 05.46