22 अप्रैल 2025 को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुआ हमला साजिशन और नियोजित था। धर्म पूछकर 26 निर्दोष लोगों को आतंकियों ने गोली मार दी। इस तरह के हमले से जाहिर हो गया कि पाकिस्तान ना सिर्फ आतंकवाद को पोषित कर रहा है बल्कि अब सामाजिक उन्माद बिगड़ना चाहता और भारतीय समाज में नफरत फैलाना चाहता था। इस हमले के बाद देश के कुछेक हिस्सों में वो ही हुआ जो पाकिस्तान और आतंकी चाहते थे। यानि, कुछेक जगहों पर सामाजिक सदभाव बिगड़ता दिखा, कुछेक जगह उपद्रव भी हुए और मुसलमानों को निशाने पर लेकर पहलगाम का बदला लेने की कोशिशें हुईं। हालांकि, पूरे देश में साम्प्रदायिक उन्माद भड़काने की आतंकी साजिश नाकाम हो गई। जल्द ही लोगों को समझ आ गया कि पाकिस्तान भी तो यही चाहता था कि भारत में हिंदू-मुसलमान आपस में उलझ जाएं। लिहाजा, भारतीयों ने एकजुटता और संयम दिखाया। पहलगाम की घटना को लेकर मुसलमानों में भी उतना ही गम और गुस्सा दिखा जितना गैर मुसलमानों में। पाकिस्तान के खिलाफ नारेबाजी करते हुए मुसलमानों ने केन्द्र सरकार से अपील की कि वो आतंकियों को सबक सिखाए। मुस्लिम संगठनों और कई मुस्लिम धर्मगुरूओं ने साफ तौर पर कहा कि इस्लाम में इस तरह से निर्दोष लोगों को मारने या जिहाद करने की कोई जगह नहीं है। विपक्ष ने भी मोदी सरकार के आतंक के खिलाफ उठाए जाने वाले हर फैसले को समर्थन देने की बात कही। इसके बाद जो हुआ वो इतिहास बन गया। पूरी दुनिया ने देख लिया कि जिस तरह से निर्दोष पुरूषों की जान ली गई उनकी विधवाओं को न्याय भी दो महिलाओं ने दिलाया पाक के आतंकी ठिकानों पर बम बरसाकर। इस ऑपरेशन को नाम दिया गया ऑपरेशन सिंदूर। भारतीय परंपरा में सिंदूर को शक्ति, सम्मान और संरक्षण का प्रतीक माना जाता है। भारतीय थल सेना, वायुसेना और नौसेना की संयुक्त रणनीति ने 6 मई 2025 रात्रि को पाकिस्तान के भीतर 9 प्रमुख आतंकवादी ठिकानों पर जोरदार हमला कर दिया। यह हमले न केवल लाइन ऑफ कंट्रोल के पास स्थित आतंकी लॉन्च पैड्स पर किए गए, बल्कि पाकिस्तान के भीतरी हिस्सों में भी उन ठिकानों को टारगेट किया गया जो लंबे समय से आतंक की फैक्टरी बने हुए थे। ऑपरेशन सिंदूर के तहत बहावलपुर-जैश-ए-मोहम्मद का मुख्यालय, मुरीदके लश्कर-ए-तैयबा का आधार स्थल, जो 2008 मुंबई हमले से जुड़ा रहा है। गुलपुर-नियंत्रण रेखा के पास स्थित वह अड्डा, जहां से 2023-24 के हमलों की योजना बनी। सावाई- जहां से तीर्थयात्रियों पर हमलों की साजिश रची गई। बिलाल-जैश का प्रमुख लॉन्चपैड। कोटली- हिजबुल मुजाहिदीन की उपस्थिति वाला अड्डा। बरनाला, सरजाला और महसुन्ता- आतंकी ट्रेनिंग और लॉन्चिंग सेंटर। मिसाइलों और ड्रोन हमलों के जरिए इन ठिकानों को ध्वस्त किया गया। भारत ने पाकिस्तान के किसी भी सैन्य ठिकाने या आम नागरिकों के रहवासी क्षे़त्रों को निशाना नहीं बनाया। खास बात यह रही कि इस पूरे ऑपरेशन में भारतीय पक्ष को कोई नुकसान नहीं हुआ, और सभी सैनिक सुरक्षित वापस लौटे। ऑपरेशन सिंदूर पर जो प्रेस ब्रीफिंग की गई, उसके जरिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक साथ कई संदेश दे दिए। उन्होंने पूरी दुनिया को ये मैसेज दे दिया कि देश में धर्म के आधार पर कोई भेदभाव नहीं है। जो लोग पीएम मोदी को मुसलमान विरोधी मानते थे शायद उन लोगों को मैसेज देने के लिए ही महिला कर्नल सोफिया कुरैशी के जरिए सेना की कार्रवाई की जानकारी दी गई। सोफिया कुरैशी के साथ ही विंग कमांडर व्योमिका सिंह भी शामिल थीं। सशस्त्र सेना की दो महिला अधिकारियों के जरिए ऑपरेशन सिंदूर को अंजाम देने और फिर उसकी जानकारी इन्हीं दोनों महिलाओं के जरिए देकर ये संदेश देने की भी कोशिश की गई कि भारतीय सेना किस तरह मजबूत और आत्मनिर्भर है। पाकिस्तान को भी नसीहत मिल गई कि भारत में सिर्फ पुरूष ही नहीं महिलाएं भी मुंह तोड़ जवाब देने की ताकत रखतीं हैं। बहरहाल, मोदी की राजनीति और कूटनीति का कोई सानी है ये ऑपरेशन सिंदूर से साबित हो गया। लगातार हाई लेवल की मीटिंग कर और सीमावर्ती एरियों में सैन्य गतिविधियों के साथ अलर्ट के जरिए मोदी ने ये भनक भी नहीं लगने दी कि हमला कब, कहां और कैसे होगा। इसके अलावा दो महिला सैन्य अधिकारियों को कार्रवाई की लीड करके बदला ले लिया। इतना ही नहीं एक महिला सैन्य अफसर के जरिए प्रेस ब्रीफिंग करवाकर ये मैसेज दे दिया कि तुम धर्म पूछकर मारोगे तो हम धर्म बताकर बदला लेंगे। अब हिम्मत हो तो पूछो धर्म......। ऑपरेशन सिंदूर का श्रेय मोदी चाहते तो खुद ले सकते थे लेकिन उन्होंने ऐसा ना करके महिला सैन्य अफसरों को आगे कर दिया। खैर, आॅपरेशन सिंदूर के जरिए जिस तरह से पहलगाम का बदला लिया गया उसने हर हिन्दुतानी का सीना गर्व से चैड़ा कर दिया है लेकिन अभी आतंकवाद पूरी तरह से खत्म नहीं हुआ है। रहा सवाल, मोदीजी और उनकी सरकार के राजनीतिक फायदे का तो सोफिया कुरैशी और व्योमिका सिंह के जरिए महिलाओं और मुसलमानों का दिल और विश्वास जीतने में वे कामयाब हो गए फिलहाल ऐसा माना जा सकता है। इसके अलावा और भी कितने राजनीतिक लाभ होंगे ये तो सभी जानते हैं। (अधिवक्ता एवं लेखक) (यह लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं इससे संपादक का सहमत होना अनिवार्य नहीं है) .../ 9 मई /2025