राज्य
12-May-2025


मुंबई, (ईएमएस)। शिक्षा के नाम पर चल रही लूट को लेकर अभिभावक परेशान हैं, लेकिन जाएं तो जाएं कहां ? शिक्षा के क्षेत्र में कार्य करने वाले अनेक संगठनों के प्रयास से महाराष्ट्र फ़ी रेगुलेशन एक्ट 2011 तो बना लेकिन आपको ये जानकर आश्चर्य होगा कि मंडलीय फ़ी रेगुलेशन कमेटी (डीएफआरसी) ही अस्तित्व में नहीं है। ऐसे में फ़ी के मुद्दों पर प्राइवेट स्कूलों के प्रबंधन और अभिभवकों के बीच उपज रहे प्रतिदिन के विवाद पर कमेटी नहीं होने से अभिभावक अपनी शिकायत को लेकर परेशान हैं। महाराष्ट्र शैक्षणिक संस्थान (फीस का विनियमन) अधिनियम, 2011 में सभी शैक्षणिक संस्थानों में अभिभावकों से फीस संग्रह को विनियमित करने के लिए इन समितियों की स्थापना का सेक्शन 7 के तहत प्रावधान है। ये समितियाँ फीस समायोजन पर निर्णय लेने और यह सुनिश्चित करने के लिए जिम्मेदार हैं कि फीस में अनावश्यक वृद्धि न की जाए। लेकिन हकीकत यह है कि अगस्त 2021 के बाद महाराष्ट्र सरकार द्वारा कोई कमेटी का चयन ही नहीं किया गया। ऐसे अभिभावक या स्कूल प्रबंधक फीस निर्धारण या विवाद पर किससे संपर्क करे यह सबसे बड़ी समस्या है। एक्ट के सेक्शन 2 (डी), 7 व 8 के तहत यह सरकार की संवैधानिक जिम्मेदारी है। उक्त अधिनियम के सेक्शन 4 के तहत सभी निजी स्कूलों की यह जिम्मेदारी है कि सम्बंधित स्कूल में पीटीए का गठन स्कूल सत्र शुरू होने के 30 दिनों के अंदर पीटीए का गठन अभिभावकों से प्राप्त नामांकन के आधार पर लॉटरी द्वारा किया जाना है। पीटीए एग्जेक्युटिव कमेटी में अध्यक्ष संस्थान की प्रधानाचार्य हो, सचिव पद पर संस्थान से टीचर हो, 2 संयुक्त सचिव पद पर एक अभिभावक व एक टीचर हो, सदस्यों में एक एक अभिभावक व टीचर स्कूल के सभी स्टैण्डर्ड से होंगे। पीटीए एग्जीक्यूटिव बॉडी का चयन एक शैक्षणिक सत्र के लिए ही होगा। एक बार टर्म पूरा होने पर वह अगले 3 सालों के लिए पीटीए एग्जीक्यूटिव बॉडी के लिए आयोजित लॉटरी ड्रा में पात्र नहीं होंगे। एक्ट में यह आदेश दिया है कि पीटीए एग्जीक्यूटिव बॉडी के गठन होने के बाद इसकी लिखित जानकारी सम्बंधित शिक्षाधिकारी को देना है। लेकिन कोई स्कूल ऐसा नहीं करता है। एक्ट के मुताबिक सरकारी स्कूलों की फीस सरकार अपने नीतियों के अनुसार तय करेगी जबकि प्राइवेट स्कूलों की फीस निर्धारण का प्रस्ताव संबंधित स्कूल मैनेजमेंट अपने स्कूल के पीटीए एग्जीक्यूटिव बॉडी के समक्ष सभी आय/व्यय विवरण के साथ प्रस्तुत करेगा। पीटीए 15 दिनों के अंदर नियमो के तहत जांचकर इस पर अपना लिखित संस्तुति प्रस्तुति देगा। साथ ही एक्ट में यह भी दर्शाया गया है कि फीस निर्धारण का प्रस्ताव लागू होने वाले शैक्षणिक वर्ष से 6 माह पूर्व प्रबंधन द्वारा पीटीए को भेजना है। पीटीए की यह नैतिक जिम्मेदारी है कि वह प्राप्त प्रस्ताव पर एजीएम के माध्यम से स्कूल अभिभावकों से चर्चा करें और सहमति लेकर ही इस पर विचार करें। लेकिन ऐसा कुछ नहीं किया जाता है जिसके कारण आये दिन विवाद बढ़ता जा रहा है। इस विवाद पर स्कूल प्रबंधन और कम से कम 25 प्रतिशत अभिभावकों को मंडलीय फीस निर्धारण समिति (डीएफआरसी) के पास शिकायत दर्ज करने के लिए प्रावधान है। लेकिन राज्य सरकार ने इस बारे में कोई कमेटी का गठन ही नहीं किया है। जिसके कारण अभिभावक अपनी समस्याओं को लेकर परेशान हैं। शिक्षा के क्षेत्र में कार्य करने वाली गैर सरकारी संगठन कई बार सरकार का ध्यान इस तरफ देने के लिए प्रेस और लिखित माध्यम से अनुरोध किया, लेकिन परिणाम सिफर रहा है। यहां बता दें कि मंडलीय फीस निर्धारण कमेटी में इतने बड़े अधिकारियों की नियुक्ति का प्रावधान बनाया गया है कि सरकार इनके मानधन के लिए प्रावधान ही नहीं कर पा रही है। आल इंडिया फेडेरेशन के उपाध्यक्ष अनुज कुमार पाण्डेय का आरोप है कि सरकार इस कमेटी में कम से कम एक सदस्य शिक्षा के क्षेत्र में कार्य करने वाले समाजसेवक का नामांकन का प्रस्ताव किया होता तो आज सरकार की आधी समस्याओं का समाधान हो जाता। लेकिन सरकार ने उच्च पदों पर आसीन पदाधिकारियों का प्रावधान किया है जो एक वेतन या मोटी रकम के साथ ही कार्य कर सकते हैं। जिनका खर्च वहन करना सरकार को शायद फिजूलखर्ची लग रहा है। एक्ट में डीएफआरसी के विरुद्ध भी अपील करने का प्रावधान है, लेकिन उसका तो कभी गठन हुआ ही नहीं। अतः यह माना जा सकता है कि सरकार एक्ट के प्रत्येक प्रावधानों को जान बुझकर रिजेक्ट कर रही है। जिसके कारण समय समय पर अभिभावकों का गुस्सा भड़क उठता है। अभी शैक्षणिक वर्ष शुरू हो गया है। एक्ट में दिए हुए प्रावधानों पर कोई कार्यवाही सरकार द्वारा नहीं की गई तो समस्या यह है कि पीड़ित अभिभावक अपनी फरियाद किससे करेंगे। इस एक्ट के सेक्शन 14 में सरकार को पूरा अधिकार है कि वह नियम बनाये जिससे कि सभी प्राइवेट स्कूलों के निधि पर नियंत्रण रख सके, लेकिन ऐसा कोई नियम आज तक सरकार द्वारा नहीं बनाया गया है। सेक्शन 16 में दण्ड का प्रावधान है, लेकिन हकीकत यह है कि दण्ड तभी लगाया जा सकता है जब पूरी प्रक्रिया का पालन किया गया हो। सेक्शन 20 के तहत इस एक्ट के किसी भी प्रावधान का उल्लंघन संज्ञेय अपराध की श्रेणी में माना जायेगा। लेकिन सबसे बड़ा प्रश्न यह है कि इस निष्क्रिय एक्ट के प्रावधानों में तभी जान आ सकती है जब पीटीए, डीएफआरसी, रिविजन कमेटी को एक्टिव तरीके से जल्द से जल्द गठन किया जाए। इनके एक्टिव होते ही सभी स्तर पर सुधार संभव है और पीड़ितों को आशा की किरण नजर आ सकती है। वरना सब एक्ट व्यर्थ है। शिक्षा के क्षेत्र में कार्य करने वाले अनुज कुमार पाण्डेय का मानना है कि राज्य सरकार अविलंब डीएफआरसी का गठन करें और इसकी जानकारी सभी स्कूलों के सूचना पट और शिक्षा विभाग के कार्यालयों के सूचना फलक पर जनता की जानकारी के लिए बोर्ड लगाए। संजय/संतोष झा- १२ मई/२०२५/ईएमएस