राष्ट्रीय
17-May-2025
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सुप्रीम कोर्ट ने याचिका को खूबसूरती से गढ़ी गई कहानी बताया नई दिल्ली,(ईएमएस)। संयुक्त राष्ट्र ने हाल ही में सामने आए उन आरोपों की जांच शुरू कर दी है, जिनमें दावा किया जा रहा है कि भारतीय नौसेना ने 43 रोहिंग्या शरणार्थियों को अंडमान सागर में जबरन समुद्र में फेंक दिया। इन शरणार्थियों को दिल्ली से हिरासत में लिया गया था और म्यांमार की समुद्री सीमा के पास अंतरराष्ट्रीय जल में छोड़ दिया था। इस बीच सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में दायर एक याचिका को खूबसूरती से गढ़ी गई कहानी बताते देते हुए सबूतों के अभाव में खारिज कर दिया। संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार उच्चायुक्त कार्यालय (ओएचसीएचआर) ने 15 मई को एक बयान जारी कर कहा था कि वह इन अस्वीकार्य और अमानवीय कृत्यों की जांच के लिए विशेषज्ञ नियुक्त कर रहा है। म्यांमार में मानवाधिकार स्थिति पर यूएन के विशेष दूत ने कहा कि रोहिंग्या शरणार्थियों को नौसेना के जहाजों से समुद्र में फेंकने का विचार पूरी तरह से अपमानजनक है। उन्होंने भारत सरकार से इस घटना का पूरा ब्योरा देने और रोहिंग्या शरणार्थियों के साथ अमानवीय व्यवहार को रोकने की मांग की थी। विशेष दूत ने कहा कि म्यांमार में रोहिंग्याओं को हिंसा, उत्पीड़न और गंभीर मानवाधिकार उल्लंघनों का खतरा है, इसलिए उनकी जबरन वापसी अंतरराष्ट्रीय कानून के सिद्धांत नॉन-रिफाउलमेंट का उल्लंघन है। नॉन-रिफाउलमेंट अंतर्राष्ट्रीय कानून का एक सिद्धांत है जो किसी व्यक्ति को उस देश में वापस भेजने से रोकता है जहां उसे उत्पीड़न, यातना या अन्य गंभीर मानवाधिकार उल्लंघन का खतरा है। यह सिद्धांत प्रवासन स्थिति की परवाह किए बिना लागू होता है, चाहे कोई व्यक्ति शरणार्थी, शरण चाहने वाला या अन्य प्रवासी हो। मीडिया रिपोर्ट में यूएन के मुताबिक बताया गया है कि 6 मई को दिल्ली पुलिस ने 40 से ज्यादा रोहिंग्या शरणार्थियों को बायोमेट्रिक डेटा कलेक्ट करने के बहाने हिरासत में लिया। इनमें बच्चे, महिलाएं, बुजुर्ग और कैंसर और मधुमेह से पीड़ित लोग शामिल थे। इन्हें दिल्ली के पुलिस स्टेशनों में 24 घंटे से ज्यादा समय तक रखा, फिर इंदरलोक डिटेंशन सेंटर में शिफ्ट किया गया। इसके बाद उन्हें पोर्ट ब्लेयर ले जाया गया, जहां उनकी आंखों पर पट्टी बांधी और हाथ बांधकर नौसेना के जहाज पर ले जाया गया। जहाज ने अंडमान सागर पार करने के बाद शरणार्थियों को लाइफ जैकेट देकर समुद्र में फेंक दिया और उन्हें म्यांमार के एक द्वीप की ओर तैरने के लिए मजबूर कर दिया। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक भारत में अभी भी मौजूद कई रोहिंग्या शरणार्थियों ने दावा किया है कि उनके परिवार के सदस्य उन लोगों में शामिल थे जिन्हें 6 मई को भारतीय अधिकारियों ने हिरासत में लिया था। एक शरणार्थी ने कहा कि मेरे माता-पिता को मुझसे छीन लिया और पानी में फेंक दिया...अगर मैं अपने माता-पिता से फिर से मिल जाऊं तो यह काफी होगा। मुझे बस अपने माता-पिता चाहिए, और कुछ नहीं। दिल्ली में रहने वाले दो रोहिंग्या शरणार्थियों द्वारा दायर एक रिट याचिका में दावा किया गया कि 43 शरणार्थियों को इस तरह से निर्वासित किया गया। याचिका में मांग की गई कि भारत सरकार इन शरणार्थियों को तुरंत दिल्ली वापस लाए और उनकी हिरासत से रिहा करे। याचिकाकर्ताओं ने यह भी दावा किया कि इस प्रक्रिया में बच्चों को उनकी माताओं से अलग किया गया और परिवार बिखर गए। 16 मई को जस्टिस सूर्याकांत और जस्टिस एन कोटिस्वर सिंह की पीठ ने इस याचिका पर शक जताया। जस्टिस सूर्याकांत ने याचिका को खूबसूरती से गढ़ी गई कहानी करार देते हुए कहा कि हर दिन आप एक नई कहानी लेकर आते हैं। इन आरोपों को साबित करने के लिए कोई ठोस मटेरियल नहीं है। कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं से पूछा कि दिल्ली में बैठे याचिकाकर्ता को अंडमान तट से समुद्र में फेंके जाने की जानकारी कैसे मिली। याचिकाकर्ताओं के वकील ने तर्क दिया कि उन्हें म्यांमार तट से एक फोन आया था और संयुक्त राष्ट्र ने भी इस मामले का संज्ञान लिया है। उन्होंने अंतरराष्ट्रीय न्यायालय के उस फैसले का हवाला दिया, जिसमें कहा गया था कि म्यांमार में रोहिंग्या नरसंहार के खतरे का सामना कर रहे हैं। म्यांमार तटों से रिपोर्ट और ऑडियो रिकॉर्डिंग पेश करने की पेशकश की। हालांकि, जस्टिस कांत ने कहा, ऐसी सामग्री तो पेश की जा सकती है, लेकिन विदेशी रिपोर्ट्स भारत की संप्रभुता को चुनौती नहीं दे सकतीं। सिराज/ईएमएस 17मई25