श्रद्धांजलि दिवस 22 मई पर विशेष) महाकवि कालिदास की गुरु थी उनकी अर्धांगिनी विद्योत्तमा,इस तथ्य को मौनीबाबा के प्रोत्साहन पर वैदुष्मणि विद्योत्तमा पुस्तक की रचना करके महान शिक्षाविद एवं साहित्यकार डॉ योगेंद्र नाथ शर्मा अरुण ने सिद्ध कर दिखाया था।वे मानते थे कि कालिदास को महाकवि बनाने में विद्योत्तमा ने ही अहम भूमिका निभाई थी।उनकी इस पुस्तक से प्रभावित होकर देश की प्रथम महिला राष्ट्रपति प्रतिभा देवी सिंह पाटिल ने उन्हें राष्ट्रपति भवन बुलाकर सम्मानित भी किया था। पूर्व प्राचार्य एवं प्रसिद्ध साहित्यकार डॉ. योगेंद्र नाथ शर्मा ‘अरुण’ ने वास्तव में हिंदी साहित्य में अपनी लेखनी की अमिट छाप छोड़ी है।दुनिया के 10 देशों में भारत सरकार की ओर से हिंदी साहित्य विषयक व्याख्यान दे चुके डॉ. अरुण को राष्ट्रीय साहित्य अकादमी द्वारा सन 2008 में भाषा के क्षेत्र में उत्कृष्ट कार्य के लिए पुरस्कार मिला था।उन्हें केंद्रीय हिंदी संस्थान आगरा द्वारा भी 5 लाख रुपये का विवेकानंद सम्मान दिया गया है। डॉ. योगेंद्र नाथ शर्मा ‘अरुण’ ने पहले मथुरा,फिर गाजियाबाद और फिर रुड़की में अपने कैरियर को नया आयाम देते हुए उपाधि महाविद्यालय से प्राचार्य पद से सेवानिवृत्ति के बाद देश और विदेश में अपने साहित्यिक कार्यों को चमकाया।उन्होंने हिंदी भाषा मे 40 से अधिक किताबें लिखीं। उन्होंने मैक्सिको, जापान, कनाडा ,अमेरिका, नेपाल, भूटान समेत विभिन्न देशों में व्याख्यान दिए। उन्हें कई राष्ट्रीय पुरस्कार मिल चुके हैं। संस्कृत और हिंदी के बीच की भाषा प्राकृत अपभ्रंश में उन्होंने बौद्ध और जैन साहित्य पर उत्कृष्ट कार्य किया है। उन्हें नेशनल बुक ट्रस्ट इंडिया में ट्रस्टी नियुक्त किया गया था।डॉ.अरुण ने बालगीत, गीत, ग़ज़ल, कहानी और संस्मरण सहित हिन्दी साहित्य की अनेक विधाओं को समृद्ध किया है। उनके चैतन्य चिंतन में व्यापकता और सृजन में मौलिकता रही । उनके गीतों में रागात्मकता है तो उनकी कहानियों में भावात्मकता भी परिलक्षित होती है। कथा के साथ भाषा और भावों का समन्वय इनके साहित्य का विशेष आकर्षण है। किसी भी साहित्यक विधा को श्रेष्ठ कृति के रूप में प्रस्तुत करने के लिए जिस कौशल की आवश्यकता होती है वह कौशल कालजयी एवं मध्यकालीन साहित्य में योगदान के लिए डॉ. योगेंद्र नाथ शर्मा में दिखाई देता है। डॉ अरुण की कहानियों में जीवन मूल्यों से जुड़ी घटनाओं की प्रधानता है। भावनाओं को तथ्यों और तर्कों के आधार पर प्रस्तुत करने के लिए भाषा की सरलता और इससे भी बढ़कर सहजता पर वह अधिक ध्यान देते हैं। उनकी कहानियां समाज को सकारात्मक संदेश देती चलती हैं। कविताओं के संदर्भ में उनका मानना है कि कविताएं मन को छू सके तभी वें कविताएं हैं। अरुण जी अधिकांशतः गीत और ग़ज़ल लिखते हैं और उसे अपनी साधना मानते हैं। उन्हीं के शब्दों में-‘‘गीत में मात्र लफ़्फ़ाज़ी या तुकबंदी नहीं होती,बल्कि गीत तो पाठक और श्रोता की भावनाओं को जगाकर आनंद की अनुभूति कराने का दिव्य माध्यम होता है।’’ उनका लेखन मूलतः सकारात्मक रहा है। वह मानते हैं कि जो लेखक नकारात्मक विचार या भाव लेकर चलता है, उसे समाज आज नही ,तो कल अस्वीकार कर देता है।डॉ अरुण ब्रह्माकुमारीज संस्थान के कार्यक्रमो से भी जुड़े रहे।पक्षाघात की बीमारी से 15 दिनों तक जूझने के बाद बीती 9 मई को उन्होंने इस दुनिया को अलविदा कह दिया।उनकी अंतिम यात्रा में देश के शिक्षा मंत्री रहे डॉ रमेश पोखरियाल निशंक समेत उनके अनेक शिष्य व शुभचिंतक मौजूद रहे।डॉ अरुण भले ही अब हमारे बीच न हो लेकिन साहित्यिक अवदानों में वे हमेशा अमर रहेंगे। (लेखक को डॉ अरुण अपना मानस पुत्र मानते थे और अपनी साहित्यिक यात्राओं में सदा साथ रखते थे) (यह लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं इससे संपादक का सहमत होना अनिवार्य नहीं है) .../ 21 मई /2025