राज्य
24-May-2025
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मुंबई, (ईएमएस)। बॉम्बे हाईकोर्ट ने प्रशासनिक मनमानी पर अंकुश लगाने के लिए एक महत्वपूर्ण फैसला दिया है। दरअसल हाई कोर्ट ने कहा है कि सेवानिवृत्ति के बाद किसी भी कर्मचारी को अनुशासनात्मक अपराधों के लिए दंडित नहीं किया जा सकता। हाईकोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया है कि जो कर्मचारी पेंशन के लिए पात्र नहीं हैं, उनकी ग्रेच्युटी और पीएफ का लाभ कार्रवाई के नाम पर नहीं रोका जा सकता। जानकारी के अनुसार महाराष्ट्र होम्योपैथी कौन्सिल ने दो महिला कर्मचारियों के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई की थी और उन्हें काम से बर्खास्त करने की सजा सुनाई थी। इस कार्रवाई के तहत उनकी ग्रेच्युटी और पीएफ रोक दी गई। दोनों महिला कर्मचारियों ने एडवोकेट सागर अशोक माने के माध्यम से हाई कोर्ट में एक याचिका दायर की थी और इसे फैसले को चुनौती दी थी। इन याचिकाओं पर न्यायमूर्ति संदीप मारणे की एकल पीठ के समक्ष सुनवाई हुई। हाई कोर्ट ने कहा, कानून में ऐसे कर्मचारी के खिलाफ सेवानिवृत्ति के बाद अनुशासनात्मक कार्रवाई कर दंडित करने का कोई प्रावधान नहीं है जो पेंशन के लिए पात्र नहीं है। हाईकोर्ट ने अपने फैसले में यह भी स्पष्ट किया है कि सेवानिवृत्ति लाभ उनके उत्तराधिकारियों को दिया जाना चाहिए। सजा के नाम पर उनकी ग्रेच्युटी और पीएफ नहीं रोकी जा सकती। हाई कोर्ट ने महाराष्ट्र होम्योपैथी कौन्सिल को इन दोनों कर्मचारियों की सजा रद्द करने और उन्हें तत्काल सेवानिवृत्ति लाभ प्रदान करने का आदेश देते हुए कहा है कि किसी कर्मचारी को सेवानिवृत्ति के बाद अनुशासनात्मक कदाचार के लिए तभी दंडित किया जा सकता है जब संबंधित प्रतिष्ठान के अलग अधिनियम में कार्रवाई के लिए कोई विशिष्ट नियम हो। दुर्भाग्यवश, जब यह याचिका लंबित थी, तब माधवी का निधन हो गया। इसलिए उच्च न्यायालय ने कौन्सिल को आदेश दिया है कि वह उनके उत्तराधिकारियों को सेवानिवृत्ति लाभ प्रदान करे। - क्या है मामला ? इन महिला कर्मचारियों के नाम शामला हर्डिकर और माधवी शिंदे हैं। शामला 31 मार्च 2011 को सेवानिवृत्त हुईं, जबकि माधवी 31 मई 2010 को सेवानिवृत्त हुईं। जब वे दोनों सेवा में थीं, तब उनके खिलाफ शिकायतों की जांच चल रही थी। तदनुसार, विभाग ने अनुशासनात्मक कार्रवाई करते हुए इन दोनों महिला कर्मचारियों को सेवा से बर्खास्त कर दिया। जांच जारी रहने के कारण इन दोनों को पेंशन नहीं दी गई। परिणामस्वरूप, उच्च न्यायालय ने इस मुद्दे पर सुनवाई की कि क्या सेवाकाल के दौरान शुरू की गई अनुशासनात्मक कार्रवाई सेवानिवृत्ति के बाद भी जारी रह सकती है और दंडित की जा सकती है। दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद अदालत ने कौन्सिल की कार्रवाई और सजा को अवैध घोषित कर उसे रद्द कर दिया। संजय/संतोष झा- २४ मई/२०२५/ईएमएस