-शिक्षक संगठन नाराज, बोला- फरमान सिर्फ कागजों तक ही सीमित चंडीगढ़,(ईएमएस)। पंजाब राज्य शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद ने जिला शिक्षा विभाग के अधिकारियों को एक पत्र जारी किया इसके बाद पत्र को लेकर विवाद शुरू हो गया। दरअसल इसमें समर कैंप के दौरान स्कूली बच्चों को तेलुगू भाषा सिखाने का उल्लेख है। पत्र में कहा गया है कि समर कैंप में सरकारी स्कूलों के कक्षा 6 से 10 तक के बच्चों की भागीदारी तय की जानी है और उन्हें तेलुगू की बुनियादी जानकारी और ज्ञान प्रदान किया जाना है। एक यूनियन के नेता ने कहा कि सबसे पहले तो हमारे शिक्षकों को तेलुगू भाषा नहीं आती है, तो वे बच्चों को कैसे सिखाएंगे? भाषा बुरी नहीं है, लेकिन हमें उस देश की भाषा का प्रयोग करना चाहिए, जिसमें हम रहते हैं। विशेषकर हमारी पंजाबी हर जगह बोली जाती है। भारत में पंजाबी की लिपि गुरमुखी है, तो पाकिस्तान में शाहमुखी है। उन्होंने कहा कि अगर सरकार तेलुगू भाषा को लागू करना ही चाहती है, तो उन्हें तेलुगू बोलने वाले शिक्षकों को पंजाब लाना चाहिए। हमारे बच्चे पंजाबी, हिंदी और अंग्रेजी भाषा में पूरा ध्यान नहीं दे रहे हैं, और चौथी भाषा तेलुगू में कैसे ध्यान देंगे? कुछ दिनों में स्कूल बंद कर दिए जाएंगे। हम इस भाषा को इतने कम समय में कैसे लागू कर सकते हैं? उन्होंने कहा कि यह सरकार तीन साल से सत्ता में है। अगर उन्हें तेलुगू भाषा लागू करनी होती, तो वे तब इस बारे में सोचते। सरकार के फरमान सिर्फ कागजों तक ही सीमित हैं, इससे ज्यादा कुछ नहीं है। सीमावर्ती क्षेत्रों के स्कूलों के लिए सीमा भत्ता भी बंद कर दिया गया है। उन्होंने कहा कि कोई भी भाषा बुरी नहीं होती। पंजाब में भी चार-पांच प्रकार की बोलियां बोली जाती हैं, जिनमें मालवई, माझा या दोआबा प्रमुख हैं। उन्होंने कहा कि हमारे मंत्रिगण भी अंग्रेजी में पत्र जारी करते हैं, पंजाबी में नहीं। जब वे भी पंजाबी मातृभाषा का पूर्ण प्रचार नहीं करते, तो आम लोग कैसे करेंगे? राज्य सरकार को आड़े हाथों लेते हुए यूनियन नेता ने कहा कि पंजाब में जो विकास कार्य होने थे, उन्हें रोक दिया गया है। जिस सरकार को यह काम करना चाहिए, वह नए-नए फरमान जारी कर रही है। सिराज/ईएमएस 25मई25