लेख
11-Jun-2025
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(बाल श्रम निषेध दिवस 12 जून: आलेख ) प्रगति स्पष्ट है, लेकिन अभी और काम करना बाकी है,आइए प्रयासों में तेज़ी लाएँ! 12 जून 2025 (विश्व बाल श्रम निषेध दिवस) का उपरोक्त थीम इस बात का साफ संकेत दे रहा है, कि वैश्विक स्तर पर बाल श्रम उन्मूलन की चुनौती के लिए अभी हमें लंबी लड़ाई लड़नी है। हालांकि सतत विकास लक्ष्य 8.7 को अपनाने के साथ पूर्व में संयुक्त राष्ट्र ने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर 2025 तक बाल मजदूरी के सभी रूपों को समाप्त करने की प्रतिबद्धता जताई है, किंतु यह संघर्ष जारी है। यदि आँकड़ो पर गौर करें, तो दुनिया भर में दस में से लगभग एक बच्चा बाल मजदूरी में संलिप्त है। संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक, वर्तमान में 16 करोड़ बच्चे बाल मजदूरी में लगे हुए हैं। इस में 7.2 करोड़ की संख्या सिर्फ अफ्रीका की है, जो वैश्विक बाल श्रम में सर्वोच्च है। वहीं, एशिया और प्रशांत क्षेत्र में 6.2 करोड़ बच्चे बाल श्रम में संलिप्त हैं। बाल श्रम, एक ऐसा अभिशाप है, जो बच्चों का ना केवल बचपन, मौलिक अधिकार और आत्म सम्मान का हनन करता है, बल्कि उनकी पहचान भी छीन लेता है। कार्यस्थल पर बाल श्रमिकों को उनके वास्तविक नाम की बजाय छोटू संबोधन से ही बुलाया और जाना जाता है। जिन हाथों में कलम कॉपी होनी चाहिए उन हाथों में चाय की ग्लास, जूठे टेबल को साफ करने वाले कपड़े, खुले आसमान के नीचे जिस सिर पर बंधन रहित बचपन होना चाहिए उस सिर पर ईंट अथवा सामान का बोझ उठाने वाला दृश्य, सभ्य समाज के लिए बदनुमा दाग सा है। शारीरिक एवं मानसिक रूप से ऐसा कोई भी कार्य जो बालकों से उनका बचपन, उनकी क्षमता और आत्म-सम्मान का हनन करते हुए उन्हें स्कूली शिक्षा से वंचित करता है, बाल श्रम के अंतर्गत आता है। अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन के अनुसार, बाल श्रम 18 वर्ष से कम उम्र के बच्चों द्वारा किया जाने वाला वह काम है जो किसी भी तरह से उनका शोषण करता है, उन्हें मानसिक, शारीरिक या सामाजिक नुकसान पहुँचाता है, या उन्हें जानलेवा खतरे में डालता है। बाल मजदूरी (निषेध एवं नियमन) अधिनियम, 1986 के अनुसार, 14 वर्ष से कम आयु के किसी बच्चे को किसी कारखाने या खनन कार्य में लगाया जाना अथवा अन्य किसी जोखिम पूर्ण रोजगार में नियुक्त किया जाना, बाल श्रम के अंतर्गत आता है। भारतीय संविधान के भाग तीन अनुच्छेद 24 में 14 वर्ष से कम आयु के बच्चों को खतरनाक एवं खादानों में कार्यों में संलिप्त करना प्रतिबंधित किया गया है।अनुच्छेद 32 में भी बाल श्रम का प्रतिषेध और कार्यस्थल पर युवाओं का संरक्षण की चर्चा की गई है। बावजूद इसके कृषि, उद्योग और सेवा क्षेत्रों जैसे कालीन बुनाई, परिधान निर्माण, घरेलू सेवा, गन्ना खेतों, मत्स्य पालन, खनन, होटल,ढ़ाबा,ईंट भट्ठों, भवन निर्माण स्थलों पर बाल श्रमिकों की उपलब्धता सहर्ष ही देखी जा सकती है। गरीबी, अशिक्षा, जागरूकता का अभाव,पारिवारिक परिस्थिति जन्य परिवेश, अपर्याप्त सामाजिक सुरक्षा, सस्ते श्रम की माँग आदि स्थितियां बाल श्रमिक की संख्या में वृद्धि के प्रमुख कारक हैं। भारतीय जनगणना 2011 के अनुसार 1.01 करोड़ बाल श्रमिक का आकलन किया गया था, जबकि वर्तमान में यह संख्या दो करोड़ के लगभग मानी जा रही है, वैसे सरकारी अनुमान के अनुसार लगभग 1 करोड़ 70 लाख भारतीय बच्चे बाल श्रमिक हैं, जो बेहद चिंताजनक है। यूपी, एमपी बिहार, राजस्थान महाराष्ट्र आदि राज्यों में बाल श्रम के मामले ज्यादा देखने को मिलते हैं। वैश्विक स्तर पर समय के साथ बाल श्रम में गिरावट देखने को मिली है, लेकिन पिछले कुछ वर्षों में कोविड-19 महामारी, युद्धों और संकटों के कारण उत्पन्न परिस्थितियों ने परिवारों को गरीबी की ओर तथा बचपन को बाल श्रम की ओर धकेलने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। यद्यपि भारत में अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन और यूनिसेफ के अलावा बाल श्रम उन्मूलन के लिए बाल श्रम (निषेध और विनियमन) अधिनियम (1986), राष्ट्रीय बाल श्रम परियोजना (एनसीएलपी), राष्ट्रीय बाल श्रम उन्मूलन प्राधिकरण (1994),शिक्षा अधिकार अधिनियम(2009), भारत सरकार बाल श्रम (निषेध और विनियमन) संशोधन अधिनियम(2016), कैलाश सत्यार्थी चिल्ड्रेन्स फाउंडेशन, बाल रक्षा भारत, चाइल्डलाइन इंडिया फाउंडेशन आदि अधिनियम तथा सरकारी एवं गैर-सरकारी संगठन वर्षों से संघर्षरत हैं, तथापि बाल श्रम (निषेध और विनियमन) अधिनियम का सख्ती से अनुपालन, शिक्षा का प्रचार-प्रसार, गरीब परिवारों को आर्थिक सहायता, बाल श्रम से पीड़ित बच्चों को पुनर्वास कार्यक्रमों के साथ ही मानवाधिकार संरक्षण एवं जन जागरूकता से बाल श्रम जैसी चुनौतियों से समय रहते निपटा जा सकता है। ईएमएस / 11 जून 25