21-Jun-2025
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-कांग्रेस आलाकमान से दो-दो हाथ करने की तैयारी तिरुवनंतपुरम,(ईएमएस)। पहलगाम हमले के बाद कांग्रेस सहित विपक्ष नरेंद्र मोदी सरकार से सुरक्षातंत्र के फेल होने पर सवाल पूछ रहा था। लेकिन कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने एक बयान दिया, हमें केवल उन हमलों के बारे में पता चलता है, जिन्हें हम विफल करने में असफल रहे। ये किसी भी देश में सामान्य बात है। इजरायल का उदाहरण देकर उन्होंने कहा कि किसी भी देश के पास फूलप्रूफ सुरक्षा नहीं होती है। मोदी सरकार को क्लीन चिट देने वाले थरुर के बयान से कांग्रेस में खलबली मच गई। कांग्रेस के कई नेताओं ने इस बयान की खुली आलोचना की। इसके बाद कयास लगे कि थरूर अब कांग्रेस से विदाई लेने वाले हैं। दो दिन पहले थरूर ने फिर इशारा दिया कि उनका पार्टी नेतृत्व से मतभेद है, जिस पर उपचुनाव के नतीजों के बाद चर्चा करुंगा। फिर भारत सरकार ने ऑपरेशन सिंदूर चलाया। इसके बाद कूटनीतिक पहल करते हुए मोदी सरकार ने 59 सदस्यों वाले सात प्रतिनिधिमंडल को दुनिया के 33 देशों में भेजा। इसमें से एक प्रतिनिधिमंडल की अगुवाई कांग्रेस नेता शशि थरूर को दी गई। मोदी सरकार के इस फैसले से फिर कांग्रेस में विवाद शुरू हुआ। कांग्रेस ने प्रतिनिधिमंडल के लिए पूर्व केंद्रीय मंत्री आनंद शर्मा, सैयद नासिर हुसैन, लोकसभा में उपनेता गौरव गोगोई, पंजाब कांग्रेस अध्यक्ष अमरिंदर राजा सिंह वारिंग का नाम दिया था। बावजूद इसके मोदी सरकार ने कांग्रेस की ओर से पूर्व विदेश मंत्री सलमान खुर्शीद, विदेश राज्य मंत्री रहे शशि थरूर, राज्यसभा सांसद आनंद शर्मा, चंडीगढ़ के सांसद मनीष तिवारी और अमर सिंह को चुना। मोदी सरकार द्वारा चुने गए चार नाम वे थे, जिन नामों को कांग्रेस ने नॉमिनेट नहीं किया था। खुर्शीद और मनीष तिवारी पार्टी हाईकमान की मंशा के विपरीत भी प्रतिनिधिमंडल का हिस्सा बने। लेकिन विवाद शशि थरूर को लेकर ज्यादा हुआ, जिन्हें पांच देशों में सांसदों के प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व किया। थरूर ने बताया कि उन्होंने यह फैसला राष्ट्रहित में लिया है। अपने बयान के बाद शशि थरूर एक बार फिर अपनी ही पार्टी के नेताओं के निशाने पर आ गए। कांग्रेस नेता और राहुल गांधी के करीबी जयराम रमेश ने सांसदों की लिस्ट पर आपत्ति जताकर थरूर को टारगेट किया। उन्होंने पोस्ट में तंज कसते हुए लिखा कि कांग्रेस में होना और कांग्रेस का होना, दोनों में काफी फर्क है। इतना ही नहीं उदित राज ने उन्हें बीजेपी का सुपर प्रवक्ता बता दिया। थरूर और कांग्रेस नेतृत्व के बीच तनाव बयानबाजी से खत्म नहीं हुआ। केरल के नीलांबुर विधानसभा उपचुनाव में थरूर प्रचार के लिए नहीं गए। उन्हें पार्टी ने प्रचार के लिए बुलाया नहीं। हालांकि केरल कांग्रेस ने उनके आरोपों का खंडन किया है। जब इस बारे में थरूर से पूछा गया कि तब उन्होंने दो टूक कहा कि कांग्रेस नेतृत्व से उनके मतभेद हैं। वे उपचुनाव के नतीजों के बाद पार्टी के नेताओं से बात करुंगा। यह भी तय है कि कांग्रेस नेतृत्व थरूर की मांगों पर सहानुभूति से विचार करने के मूड में नहीं है। 23 जून को नीलांबुर सहित विधानसभा उपचुनाव के रिजल्ट आ रहे हैं। इसके बाद तय होगा कि थरूर कौन सा दांव चल सकते है। इस पूरे घटनाक्रम पर राजनीतिक जानकार मानते हैं कि थरूर और गांधी परिवार के रिश्ते 2020 से खराब होने शुरु हो चुके थे। थरूर में जी-23 कहे जाने वाले उन नेताओं में शामिल थे, जिन्होंने संगठन में बदलाव की वकालत की थी। तब यह माना गया कि गुट के नेताओं ने राहुल गांधी के नेतृत्व को चुनौती दी है। नतीजतन उस गुट में शामिल गुलाम नबी आजाद और कपिल सिब्बल को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया। मनीष तिवारी और शशि थरूर जैसे नेता पार्टी में साइड लाइन कर दिए गए। थरूर ने केरल प्रदेश अध्यक्ष की दावेदारी की, जिसे आलाकमान ने सिरे से खारिज किया। अगले साल मई में केरल विधानसभा चुनाव होने हैं। यह थरूर के लिए आखिरी मौके जैसा है। अगर वे राज्य में अपना कद हासिल करने में चूक गए, तब कांग्रेस के भीतर उनकी अंतिम पारी होगी। दूसरी ओर, केरल में पहली बार आने की तैयारी में जुटी बीजेपी को एक चेहरे की तलाश है, जो विधानसभा चुनावों में पार्टी का नेतृत्व कर सके। इसके लिए शशि थरूर मुफीद साबित हो सकते हैं। विधानसभा चुनाव में अगर बीजेपी का वोट प्रतिशत और सीट बढ़ाने में सफल होते हैं, तब बीजेपी उन्हें हिमंत विस्व सरमा और माणिक सरकार जैसा इनाम दे सकती है। आशीष दुबे / 21 जून 2025