ज़रा हटके
27-Jun-2025
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सिडनी (ईएमएस)। आस्ट्रेलिया के सिडनी विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों द्वारा किए गए अध्ययन में पाया गया है कि शुगरबैग हनी शहद न केवल गर्म किए जाने पर भी अपनी जीवाणुनाशक ताकत बनाए रखता है, बल्कि लंबे समय तक सुरक्षित रहने के बाद भी अपनी प्रभावशीलता नहीं खोता। इस शहद को स्थानीय लोग शुगरबैग हनी के नाम से जानते हैं और यह परंपरागत रूप से भोजन और औषधीय उपयोगों के लिए इस्तेमाल होता रहा है। इस शहद का उत्पादन ऑस्ट्रोप्लेबिया ऑस्ट्रेलिस जैसी तीन विशेष प्रजातियों की मधुमक्खियों द्वारा किया जाता है। आम यूरोपीय मधुमक्खियों के शहद की एंटीबायोटिक ताकत मुख्यतः हाइड्रोजन पेरोक्साइड पर निर्भर होती है, जो समय और तापमान के साथ कमजोर हो सकती है। लेकिन शुगरबैग हनी की कीटाणु नाशक क्षमता हाइड्रोजन पेरोक्साइड और उससे इतर तत्वों के जरिए काम करती है, जो इसे अधिक स्थिर और प्रभावशाली बनाती है। शोध के प्रमुख लेखक केन्या फर्नांडीस ने बताया कि इस शहद की जीवाणु विरोधी ताकत हर क्षेत्र में लगभग समान पाई गई, जो यह दर्शाता है कि केवल फूल या पौधे नहीं, बल्कि मधुमक्खियां भी इसके खास गुणों में अहम भूमिका निभाती हैं। सिडनी विश्वविद्यालय की प्रोफेसर डी. कार्टर ने कहा कि यह शहद मौसम या वनस्पति के बदलाव से प्रभावित नहीं होता, जबकि आम मधुमक्खियों का शहद इन बातों के अनुसार बदलता है। इसमें यह भी बताया गया है कि बिना डंक वाली मधुमक्खियों का एक छत्ता साल में केवल आधा लीटर शहद पैदा करता है, लेकिन अगर इनका पालन बड़े स्तर पर किया जाए, तो यह शहद सिंथेटिक एंटीबायोटिक्स का एक प्राकृतिक और कारगर विकल्प बन सकता है। यह खोज भविष्य में संक्रमणों के इलाज में एक नई दिशा दे सकती है। मालूम हो कि ऑस्ट्रेलिया में शोधकर्ताओं ने बिना डंक वाली देशी मधुमक्खियों द्वारा बनाए गए एक खास प्रकार के शहद की पहचान की है, जो बैक्टीरिया को मारने की प्रभावशाली क्षमता रखता है। सुदामा/ईएमएस 27 जून 2025