पेगासस जासूसी कांड का भूत एक बार फिर वैश्विक मंच अमेरिका मैं जिंदा होकर सामने आया है। इस बार अमेरिका की अदालत में पेगासस ने जो जानकारी दी है, उसमें भारत में 100 लोगों की जासूसी की जानकारी भी सामने आई है। जिसके कारण भारत भी कटघरे में खड़ा हो गया है। अमेरिका की कैलिफोर्निया स्थित फेडरल डिस्ट्रिक्ट कोर्ट में चल रहे व्हाट्सएप बनाम एनएसओ केस में जो दस्तावेज दाखिल किये गये हैं, उन्होंने भारत सहित 51 देशों में 1223 लोगों की जासूसी किए जाने की पुष्टि की गई है। इस सूची में भारत 100 लोगों की जासूसी के साथ दूसरे स्थान पर है। यह भारत के लिए गंभीर चिंता का विषय है। भारत सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में यह कहकर जांच टलवा दी थी। यह ‘राष्ट्रीय सुरक्षा’ का मामला है। जबकि पेगासस बनाने वाली कंपनी एनएसओ स्पष्ट कर चुकी है, यह सॉफ्टवेयर केवल सरकारों को ही बेचा जाता है। जब सरकार खरीददार है, तो सरकार इसके लिए जिम्मेदार भी है। भारत की सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में कहा था, सरकार ने जांच में कोई सहयोग नहीं दिया। जिसके कारण कमेटी कुछ उल्लेखनीय जांच नहीं कर पाई। अब सवाल यह है, जब अमेरिका की अदालत में सबूतों के साथ जासूसी की पुष्टि हो गई है, उसके बाद भी भारत सरकार और सुप्रीम कोर्ट चुप क्यों है? भारत सरकार को क्या यह स्वीकार नहीं करना चाहिए कि सरकार ने इसका उपयोग राष्ट्रीय हित के लिए किया है। वह कौन से राष्ट्रीय हित थे, यह भी सरकार को सुप्रीम कोर्ट में बताना चाहिए। सरकार ने सत्ता पर पकड़ मजबूत करने के लिए अपनी मशीनरी का इस्तेमाल विरोधियों, पत्रकारों, जजों और मंत्रियों तक की निगरानी के लिए किया है। यह स्पष्ट होना जरूरी हो गया है। कांग्रेस नेता रणदीप सुरजेवाला जैसे नेताओं ने आज सवाल पूछा है। यह सॉफ्टवेयर खरीदा किसने है? किस विभाग के बजट से खरीदा गया है? किस एजेंसी ने निगरानी के लिए इसका इस्तेमाल किया? क्या सरकार अब भी जानकारी देने से बचेगी? लोकतंत्र की पारदर्शिता इसी में है। जब सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों तक की निगरानी पेगासस सॉफ्टवेयर के माध्यम से किए जाने के आरोप लग रहे हों तो ऐसी स्थिति में सरकार और संबंधित विभाग की जवाबदेही तय होना ही चाहिये। भारत जैसे लोकतांत्रिक देश जिसमें लिखित नियम और कानून का अस्तित्व है यदि उस देश में जवाबदेही तय ना हो, तो अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारत की साख और अस्तित्व संकट में पड़ना तय है। भारत की संप्रभुता और नागरिकों के मौलिक और कानूनी अधिकारों को सत्ता में बैठे हुए लोगों की मनमानी और अपारदर्शी प्रक्रियाओं की भेंट चढ़ा दिया जाएगा। अमेरिका की कोर्ट में जब एनएसओ ने दस्तावेजों के साथ यह स्वीकार कर लिया है कि उसने 51 देशों में 1223 लोगों की जासूसी की है, जिसमें भारत भी शामिल है। सुप्रीम कोर्ट के पास सीलबंद रिपोर्ट मौजूद है। जो सुप्रीम कोर्ट ने अभी तक नहीं खोली है। सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त कमेटी को सरकार ने कोई जानकारी नहीं दी थी। इस मामले में अब सुप्रीम कोर्ट की जिम्मेदारी है। वह इस मामले की पुन: सुनवाई शुरु करे। सील बंद लिफाफे को सार्वजनिक करे। सुप्रीम कोर्ट सभी पक्षों को सुनने के बाद इसमें अपना फैसला दे। इस जासूसी में सुप्रीम कोर्ट के भी जज शामिल किए गए थे। जिसके कारण यह मामला और भी गंभीर हो जाता है। सुप्रीम कोर्ट ने यदि इस मामले की सुनवाई जल्द शुरू नहीं की तो इसका असर न्यायपालिका की साख पर भी पडना तय है। सरकार को भी जनता को सच बताने के लिए अब सामने आना चाहिए। राष्ट्रीय हित को साधने के लिए यदि यह जासूसी कराई गई थी तो सरकार को स्थिति स्पष्ट करनी होगी। वरना पेगासस का भूत भारत की लोकतांत्रिक आत्मा को लंबे समय तक डराता और धमकाता रहेगा। जिसके कारण भारत आंतरिक और वैश्विक मंच पर बहुत कमजोर होगा। अतः इस मामले में सुप्रीम कोर्ट की सबसे बड़ी जिम्मेदारी है। सरकार आज भी यह कहती है, कि उसे सुप्रीम कोर्ट से क्लीन चिट मिल चुकी है। इस मामले में कहीं ना कहीं न्यायपालिका पर भी प्रश्न चिन्ह लगने लगे हैं। वर्तमान स्थिति को देखते हुए जल्द से जल्द इस मामले में दूध का दूध और पानी का पानी होना जरूरी है। ईएमएस / 27 जून 25