जैसे जैसे चुनाव के वर्ष का समय नजदीक आता है वैसे वैसे सत्ता में बैठी सरकार भी योजनाओ को गति देने में लग जाती हैं। मध्यप्रदेश के कुछ वर्गो को लुभाने के लिए सरकारी खजाने के भंडार खोल दिए जाते हैं। भाजपा का कांग्रेस के लिए तंज भी वही पुराना वाला शुरू हो जाता कि पूर्व की कांग्रेस सरकार ने वर्षो से इस देश में राज किया लेकिन लोगों के लिए क्या किया केवल मुफ्त की रेवडियां बांटी हैं। लेकिन भाजपा सरकार यह कैसे भूल जाती है कि वो खुद रेवडियां बांटकर ही लगातार चुनाव जीत रही है। दुख इस बात का है कि भाजपा जिन लाड़ली बहनों को हर माह रूपए दे रही है, क्या उन्हें इस बात की जानकारी नही है कि इन बहनों के पढ़े लिखे बेटे बेटियों को भी रोजगार की शक्त जरूरत होगी ? क्या 1250 रुपए में इन बहनों का घर चल सकता है ? आज इनके घरों में बैठे पढ़े लिखे युवाओ के पास कोई विकल्प नही हैं। केवल दूसरे राज्यों में पलायन के सिवा ? मध्यप्रदेश की भाजपा सरकार बेरोजगारी के मुद्दे में पूरी तरह से फेल और मौन रही है। बीते वर्षों में कुंभ के मेले की तरह 12 वर्षों में आई राजस्व विभाग में पटवारी की नौकरी भी खुद भाजपा की भेंट चढ़ गई। प्रदेश में 6 हजार पदों पर 12 लाख आवेदन आए थे जिसमें 4 लाख से अधिक आवेदन करने वाले वो बेरोजगार थे, जिन्होंने इंजिनियर, एम बीए, और पीएचडी की परीक्षा उत्तीर्ण थी। जिसमें स्नातकोत्तर के 01 लाख 80 हजार, एमबीए के 80 हजार, इंजिनियर बीई• और बीटेक के 85 हजार और पीएचडी के 1000 छात्रों ने पटवारी परिक्षा के लिए आवेदन किया था और जिसके के लिए अभ्यर्थी से 300 रूपए फीस भी ली गई थी। इस परीक्षा में ऐसे मेहनतकश ईमानदार प्रतियोगी भी शामिल हुए थे जिनकी तैयारी वर्षों से चल रही थी जिनका परीक्षा में फेल होना संभव ही नही था । दूसरी तरफ भाजपा सरकार के भ्रष्ट तंत्र में उसी वर्ष ग्वालियर के एक ही सेंटर से 7 गधों ने टॉप करके सबको चौंका दिया था। जब हमारे सहयोगी पत्ररकारों इन टॉपर से बात की इनका इंटरव्यू लिया तो इसमें से एक टॉपर ने मध्यप्रदेश की राजधानी को ग्वालियर बनाकर रख दिया था। इससे बड़ी शर्मनाक की बात कुछ और नही हो सकती। एक ही सेंटर से टॉप करने का जब यह मामला सामने आया था उस समय शिवराज सरकार ने अपनी साख बचाने के लिए परीक्षा के बाकी परिणाम भी तुरंत रोक दिए। या यू कहिए कि एक प्रकार से पूरी परीक्षा के परिणाम ही रद्द कर दिए गए। जिन अभ्यर्थीेयों ने मेहनत मजदूरी करके अपनी फीस भरी थी सरकार ने वो भी डकार गई। इन बेरोजगारों से लगभग 3 हजार 600 करोड़ रूपए फीस वसूली गई और न नौकरी मिली और ना ही फीस के रूपए वापस हुए। इस प्रकार सरकार ने उल्टे बेरोजगारों से ही अपनी तिजोरी भर ली । मध्यप्रदेश की भाजपा सरकार ने अपने 22 वर्षों के कार्यकाल में बेरोजगारों को छला है कभी व्यापमं घोटाले में तो कभी पटवारी परीक्षा घोटाले में। यशोधरा राजे सिंधिया ने भी उस समय विधान सभा में इस बात को स्वीकारा था कि प्रदेश के रोजगार कार्यालयों में रजिस्टर्ड शिक्षित बेरोजगारों की संख्या उस समय 37 लाख 80 हजार 679 थी । जिन्हें आज तक रोजगार नही मिला । जिन्होंने इंतजार में अपनी उम्र निकाल दी। सितंबर से दिसंबर 2022 की एक रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि मध्यप्रदेश में 2 करोड़ 50 लाख 97 हजार लोग ऐसे हैं जो बिल्कुल हर तरह के छोटे काम करने को मजबूर हैं, एक इंजिनियर भी मजदूरी करने को मजबूर है। लेकिन इन्हें भी रोजगार नही मिलता। दुख इस बात का है कि इन आंकड़ो में 20 से 24 वर्ष की पढ़ी लिखी युवतियां है जिन्हें 82•41 प्रतिशत काम आज भी नही मिलता। यही वजह है की भाजपा की शिवराज सरकार के 17 वर्षों के दौरान भी प्रदेश में कई छात्र पढ़े लिखे बेरोजगारों ने आत्महत्या कर ली थी। मध्यप्रदेश सरकार के रोजगार देने की पोल खोलती एक रिपोर्ट जिसमें विधान सभा में वर्ष 2021- 22 का आर्थिक सर्वेक्षण पेश किया गया था जिसमें एक वर्ष में 5•51 लाख बेरोजगार युवाओ का बढ़ा हुआ यह आंकड़ा सभी को हैरान करता है ।इसी वर्ष शिक्षित बेरोजगारों की संख्या बढ़कर 95 •07 प्रतिशत हो गई थी लेकिन सरकार ने किसी को भी रोजगार उपलब्ध नही करा पाई। यही वजह रही है कि प्रदेश में लगातार बढ़ती बेरोजगारों की संख्या चरम पर पहुंच गई। दुख और शर्म की बात कि कुछ वर्ष पहले भी विभिन्न विभागों में चपरासी और चौकीदार के पदों की भर्ती भी आई थी। इस चतुर्थ श्रेणी के 1333 पदों के लिए सरकार ने ऑठवी पास योग्यता रखी थी लेकिन मध्यप्रदेश के बहुत बढ़े लिखे बेरोजगार युवाओ का दुर्भाग्य देखिए की रोजगार ना मिलने के चलते उन्होंने यहां पर भी आवेदन किया था जिसमे भी बीटेक, इंजिनियर, एमकाॅम, एम एससी ,और एम ए पढ़ लिखे डिग्री धारियों ने इस पोस्ट के लिए आवेदन किए थे। इसमें कुल 4 लाख आवेदन आए थे जिसमें 62 हजार इन बड़ी डिग्री धारियों के थे। यही वजह रही की इन में से कुछ बेरोजगार को रोजगार नही मिलने से इनमें इस हद तक निराशा थी कि इन्हें अपने उज्जवल भविष्य बनते नही दिखाई दे रहा था इस कारण इन्होंने अत्महत्या कर ली । देश का सबसे बड़ा महा परीक्षा घोटाला मध्यप्रदेश में हुआ है। जिसे व्यापमं परीक्षा कहा जाता था ।इस परीक्षा के माध्यम से बड़े बड़े पदों की सीधी भर्ती की जाती थी। मध्यप्रदेश की भाजपा सरकार जैसे ही सत्ता में आई और आते ही व्यापमं घोटाला का बाजार सजा दिया । इस घोटाले का पहला रूप पीएमटी फर्जीवाड़ से संबंधित था। यह टेस्ट परीक्षा भी 13 विभागों से अधिक में सरकारी नौकरी में सीधी भर्ती के लिए थी। इस व्यापमं परीक्षा में प्रदेश के 75 लाख से अधिक युवाओ के भविष्य के साथ खिलवाड़ प्रदेश की भाजपा सरकार ने किया जिसका इल्ज़ाम भी विपक्ष ने लगाया और दो बार सदन में इस विषय को लेकर हंगामा भी किया गया । इस महा घोटाले के संदर्भ में तो स्वयं मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने वर्ष 2006 में विधान सभा में जांच कराने की बात स्वीकारी थी । मगर हजारों युवाओ को बर्बाद करने वाले इस घोटाले पर अब तक पर्दा ही डालकर रखा गया है । यह घोटाला इतना बड़ा था कि स्वयं सीबीआई ने भी इस घोटाले की व्यापकता को देखते हुए सर्वोच्च अदालत में इसकी जांच में अपनी असमर्थता दिखाई थी। यह बेहद शर्मनाक तथ्य है कि व्यवसायिक परीक्षा मंडल ने न सिर्फ युवाओ के भविष्य को लूटा बल्कि बीते 10 साल में उसने इन बेरोजगार युवाओ से 1046 करोड़ रुपए फीस के रूप में वसूल करके शुध्द रूप से 455 करोड़ रूपया भी कमा लिए। यही नही समय आने पर सबूत मिटाने के लिए भाजपा सरकार ने सतपुड़ भवन व कभी वल्लभ भवन में अग्निदेव का सहारा भी लिया है जिसे प्रदेश का बच्चा-बच्चा भी जानता है। इसके बाद भी सरकार को कोई फर्क नही पड़ा । भाजपा सरकार अपने विकास कार्यों का रिपोर्ट कार्ड जारी करती है। जनता और मीडिया के सामने रिपोर्ट कार्ड से बेरोजगार शब्द भी ही हटा दिया गया। मध्यप्रदेश में बेरोजगारों को भाजपा सरकार ने केवल छला और निराशा ही किया है। और आज दिन तक सरकार ने बेरोजगारों के लिए कोई ठोस और जमीनी विकल्प नही खोज पाई। अब मध्यप्रदेश में पढ़े लिखे युवा जो कभी पलायन नही करते थे अब वो भी अन्य राज्यों में पलायन कर रहें हैं। आप किसी भी रेलवे-स्टेशन पर चले जाइए आपको शिक्षित बेरोजगार पलायन करते नजर आ जाऐंगे। ईएमएस/04/07/2025