लेख
04-Jul-2025
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भारतीय बैंकों में करोड़ों लोगों की राशि बचत खाते और एफडी के रूप में जमा है। सरकार ने बैंकों को अब दिवालिया कानून के अंतर्गत ला दिया है। बैंक में ग्राहकों की जमा राशि पर पहले एक लाख, बाद में 2 लाख और अब अधिकतम 5 लाख रुपए तक का बीमा किया जाता है। इस बीमा की वर्तमान पाँच लाख रुपए की सीमा को दस लाख तक करने की चर्चाएँ संसद ओर वित्त मंत्रालय में हो रही हैं। सवाल यह है, कि जब सरकारी बैंकिंग को सबसे सुरक्षित समझा जाता था। अब बैंक दिवालिया कानून की जद में आ गए हैं। बैंकों में जमाकर्ता की पूरी रकम सुरक्षित होनी चाहिए। बैंकों में जो राशि जमा है। बैंक डूबने की स्थिति में जमा करता को बैंक में जमा पूरी राशि वापस मिलनी चाहिए। बैंकों के साथ अनुबंध के तहत नागरिक अपनी जीवनभर की बचत बैंकों को सौंपते हैं। डिपॉजिट इंश्योरेंस योजना 1962 से लागू है। आरंभिक सीमा 1,500रुपए थी। बढ़ते-बढ़ते 1993 में इस राशि को एक लाख और 2020 में 5 लाख किया गया। अब वित्त मंत्रालय इस सीमा को संशोधित करने पर विचार कर रहा है। आँकड़े बताते हैं, कि 97.8 प्रतिशत बैंक खाते पूरी तरह से बीमित हैं। इसके बाद भी कुल जमाराशि का केवल 43.1प्रतिशत राशि ही बीमा के दायरे में आती है। बैंक के खाते भले सुरक्षित लगें, पर ₹500000 से अधिक जमा राशि आज भी जोखिम में है। बीमा का मूल उद्देश्य प्रत्येक जमाकर्ता के धन वापसी की गारंटी होनी चाहिए। बीमित बैंक खाते में “मिनिमम गारंटी” का औचित्य बैंक ग्राहकों के साथ धोखाधड़ी है। बैंकों का जोखिम आम जमाकर्ताओं के कंधों पर क्यों डाला जा रहा है। मार्च 2024 तक डिपॉजिट इंश्योरेंस फंड में 1,98,753 करोड़ रुपए उपलब्ध थे। वर्ष 2024 मे बैंकों ने 23,879 करोड़ प्रीमियम जमा किया। बीमा दावों का भुगतान केवल 1,432 करोड़ का हुआ। ये आँकड़े दर्शाते हैं, कोष के पास पर्याप्त राशि उपलब्ध है। बैंक यदि दिवालिया होते हैं, तो अनियंत्रित दावों की स्थिति में यह राशि ऊंट के मुंह में जीरे के समान हो सकती है। इसलिए सरकार और बीमा फंड, बैंकों में जमा राशि को एक निश्चित राशि तक ही बीमा से कवर करने की बात करता है। हालिया मीडिया रिपोर्टों के अनुसार, सरकार 10 लाख या उससे अधिक के विकल्प पर विचार कर रही है। इससे अधिकांश मध्यमवर्गीय खाताधारकों की पूँजी कुछ हद तक सुरक्षित हो जाएगी। मौजूदा नि:शुल्क सीमा 10 लाख के ऊपर की राशि के लिए जमाकर्ता को एक ऐड‑ऑन कवर की सुविधा दी जानी चाहिए। जैसे वाहन बीमा में ऐक्सेसरी को कवर किया जाता है। पिछले 10 साल से बैंकों में जिनके खाते हैं। उन खाता धारकों से सुनयोजित रूप से लूट की जा रही है। पहले एटीएम पर चार्ज लगाया, फिर बैलेंस, एसएमएस, चेक, मिनिमम बैलेंस एवं तरह-तरह के शुल्क वसूल कर बैंक अपने उपभोक्ताओं का शोषण कर रहा है। जिन लोगों की जमा राशि के ब्याज से उनका मासिक खर्च चलता है। बैंक ब्याज दरें घटती चली जा रही हैं। लोग अपना जरूरी खर्च भी पूरा नहीं कर पा रहे हैं। अब बैंकों में जमा राशि भी सुरक्षित नहीं रही। करोड़ों लोगों की जीवन भर की कमाई बैंकों में जमा है। ऐसी स्थिति में लोगों की चिंता बढ़ रही है। केंद्र सरकार जितने भी नियम कायदे कानून बना रही है, उसमें उपभोक्ताओं के हितों का कोई ध्यान नहीं रखा जा रहा है। केंद्र सरकार बैंकों और कॉर्पोरेट हितों का ध्यान रखते हुए बैंक उपभोक्ताओं को बैंक की कमाई का जरिया बना रही है। आयकर के नियम इस तरीके के बना दिए गए हैं। हर लेन-देन बैंक के माध्यम से होते हैं। एक निश्चित राशि से ज्यादा नगद राशि घर पर नहीं रखी जा सकती है। एक निश्चित राशि से ज्यादा का नगद लेन-देन नहीं हो सकता है। बैंकों में जमा रकम से ऑनलाइन धोखाधड़ी हो रही है। सरकार ने बैंक के उपभोक्ताओं को भगवान के भरोसे छोड़ दिया है। हर साल अरबों रुपए की धोखाधड़ी बैंकों से हो रही है। जिनके खाते से धोखाधडी हुई है, वह साइबर क्राइम ब्रांच, पुलिस और बैंकों के चक्कर लगा रहे हैं। न उन्हें पैसा मिल रहा है। उल्टा उनका पैसा मुकदमेबाजी और शिकायतों में खर्च हो रहा है। बैंक खाते अब लोगों के लिए जी का जंजाल बन रहे हैं। बैंक बिना बताए खाते से राशि काट लेता है। उपभोक्ता अपनी लड़ाई लड़ ही नहीं सकता है। बैंक उपभोक्ताओं की शिकायत सुनते नहीं हैं। बैंकिंग लोकपाल के हाथी के दांत हैं। लोकपाल के पास शिकायत करने के बाद उपभोक्ता के हितों का ध्यान नहीं रखा जाता है। बैंकिंग लोकपाल बैंकों का बनकर रह गया है । रिजर्व बैंक के भी बड़े-बड़े दांत दिखाने के जरूर हैं। सरकारी बैंक हों, या प्राइवेट बैंक हों, सब अपनी मनमानी कर रहे हैं। रिजर्व बैंक थोड़ा-मोड़ा जुर्माना करके उन्हें छोड़ देता है। बैंक उपभोक्ता हर तरफ से लूट के शिकार हो रहे हैं। ऐसी स्थिति में अब बैंकों के खिलाफ जनाक्रोष पनपने लगा है। केंद्र सरकार और वित्त मंत्रालय को इस दिशा में सजगता के साथ निर्णय करने की जरूरत है। समय रहते यदि स्थितियों में सुधार नहीं किया गया, तो बैंकिंग व्यवस्था और अर्थव्यवस्था डगमगाते हुए देर नहीं लगेगी। ईएमएस / 04 जुलाई 25