06-Jul-2025
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नई दिल्ली (ईएमएस)। भारत में आम धारणा प्रचलित है कि अगर छिपकली किसी खाने के सामान में गिर जाए तो वह जहरीला हो जाता है। कई बार अखबारों में भी ऐसी खबरें पढ़ने को मिलती हैं कि दूध में छिपकली गिरने से कोई बीमार पड़ गया या मौत हो गई। लेकिन वैज्ञानिक नजरिए से देखें तो यह पूरी तरह सच नहीं है। दरअसल सामान्य घरेलू छिपकलियां विषैली नहीं होतीं। इनके शरीर में कोई विष ग्रंथि नहीं होती जो दूध को जहरीला बना दे। दुनिया में कुछ गिनी-चुनी छिपकली प्रजातियां जैसे मेक्सिको की गिला मॉन्स्टर या बीडेड लिज़र्ड विषैली होती हैं लेकिन वे भारत में नहीं पाई जातीं। इसलिए भारत में दूध में गिरने वाली आम छिपकली से दूध जहरीला नहीं बनता। हां, छिपकली के शरीर पर गंदगी और बैक्टीरिया जैसे साल्मोनेला हो सकते हैं। अगर वह दूध में गिरे और देर तक उसमें रहे, तो ये बैक्टीरिया दूध में फैल सकते हैं। इससे दूध दूषित हो सकता है और उसे पीने से पेट दर्द, उल्टी या दस्त जैसी समस्याएं हो सकती हैं। किसी की मौत की संभावना इससे नहीं होती, बल्कि समस्या बैक्टीरियल संक्रमण से होती है, जहर से नहीं। अगर छिपकली मर जाए और उसका शरीर दूध में सड़ने लगे तो दूध की गंध और स्वाद खराब हो सकता है और उसमें हानिकारक बैक्टीरिया पनप सकते हैं। भारत में आमतौर पर दूध को उबाला जाता है। उबालने से बैक्टीरिया और रोगजनक काफी हद तक नष्ट हो जाते हैं। हालांकि, छिपकली के अवशेष दूध में रह सकते हैं और स्वच्छता के लिहाज से वह दूध पीने योग्य नहीं माना जाएगा। वैज्ञानिक दृष्टि से देखें तो दूध में छिपकली गिरने पर उसे “जहरीला” कहना एक मिथक है। फिर भी, स्वास्थ्य और स्वच्छता के लिहाज से ऐसा दूध फेंक देना और नया दूध इस्तेमाल करना सबसे सुरक्षित तरीका है। दिलचस्प बात यह है कि दुनिया के कई देशों में छिपकलियां खाई भी जाती हैं। वियतनाम, थाईलैंड, फिलीपींस, नाइजीरिया, घाना, ऑस्ट्रेलिया और मेक्सिको के कुछ हिस्सों में लोग मॉनिटर लिज़र्ड और इगुआना जैसी छिपकलियों को पकाकर खाते हैं। हालांकि भारत में यह प्रथा आम नहीं है और केवल कुछ आदिवासी इलाकों में सीमित तौर पर ऐसा होता है। हमारे घरों में अक्सर दीवारों और छत पर छिपकलियां दिख जाती हैं। कई बार डर और घृणा के कारण लोग इन्हें घर से बाहर निकालने की कोशिश करते हैं। सुदामा/ईएमएस 06 जुलाई 2025