क्षेत्रीय
06-Jul-2025
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दोनों भूखंडों का रकबा करीब एक हेक्टेयर गुना (ईएमएस)। कलेक्टर कार्यालय से एक बड़ा और अहम आदेश निकलकर सामने आया है, जिसमें आरोन तहसील के ग्राम आरोन की शासकीय जमीनों को लेकर बड़ा फैसला सुनाया गया है। यह जमीनें कई साल पहले बिना शासन की अनुमति के बेची गई थीं, जिन्हें अब फिर से शासन की संपत्ति घोषित कर दिया गया है। कलेक्टर किशोर कुमार कन्याल ने यह आदेश तहसीलदार अमित जैन की ओर से लगाए गए निगरानी प्रकरण पर सुनाया। मामला ग्राम आरोन के सर्वे नंबर 1120 की जमीन से जुड़ा है, जो पुरानी बंदोबस्त रिकॉर्ड के अनुसार शासकीय भूमि के रूप में दर्ज थी। इस भूमि में से दो टुकड़े सर्वे नंबर 1120/3/1 जिसकी माप 0.469 हेक्टेयर है और 1120/3/2 जिसकी माप 0.523 हेक्टेयर है बिना कलेक्टर की अनुमति के क्रमश: गणेशराम रघुवंशी और कालूराम बंजारा नामक लोगों को बेच दी गई थी। जबकि यह जमीन शासन से पट्टे के रूप में दी गई थी और इसे आगे बेचना या ट्रांसफर करना मना था। तहसीलदार की रिपोर्ट में बताया गया कि इन दोनों भूखंडों को खरीदते समय न तो शासन की मंजूरी ली गई और न ही प्रक्रिया का पालन हुआ। खास बात यह रही कि इनमें से एक खरीदार कालूराम बंजारा वर्तमान में शासकीय सेवा में पटवारी के पद पर कार्यरत है। ऐसे में उस पर मध्यप्रदेश सिविल सेवा (आचरण) नियमों के उल्लंघन का मामला भी बनता है। कलेक्टर ने आदेश में साफ किया कि जब कोई जमीन शासन से पट्टे पर दी जाती है तो उसे बिना अनुमति के न तो बेचा जा सकता है और न ही किसी और को दिया जा सकता है। इस नियम का उल्लंघन हुआ है, इसलिए इन दोनों भूखंडों को शासकीय घोषित किया जा रहा है। आदेश में बताया गया कि जमीनों के पहले भी दो हिस्से सर्वे नंबर 1120/1 और 1120/2 को बिना अनुमति के बेचे जाने के कारण 2013 में शासन के नाम दर्ज किया जा चुका है। अब यह दोनों हिस्से भी उसी श्रेणी में आ गए हैं। कलेक्टर ने तहसीलदार को निर्देश दिए हैं कि राजस्व रिकॉर्ड में संशोधन करते हुए इन दोनों भूखंडों को शासकीय दर्ज किया जाए और इसकी रिपोर्ट 7 दिनों के भीतर प्रस्तुत की जाए। वहीं, कालूराम बंजारा के खिलाफ सिविल सेवा नियमों के उल्लंघन के तहत विभागीय कार्रवाई करने के निर्देश एसडीएम आरोन को दिए गए हैं। यह कार्रवाई इसलिए भी जरूरी मानी जा रही है क्योंकि उन्होंने न केवल नियमों की अनदेखी कर भूमि खरीदी बल्कि खुद राजस्व विभाग का हिस्सा होने के बावजूद प्रक्रिया का उल्लंघन किया। इस मामले में दोनों पक्षों को कई बार कारण बताओ नोटिस जारी किए गए और जवाब भी मांगे गए, लेकिन संतोषजनक दस्तावेज या तथ्य पेश नहीं किए गए। विक्रेताओं की ओर से यह कहा गया कि उनके पूर्वज इस भूमि पर लंबे समय से कब्जा कर खेती कर रहे थे, लेकिन कलेक्टर ने इसे मानने से इंकार कर दिया क्योंकि रिकॉर्ड में जमीन शासकीय ही पाई गई और बिना अनुमति के किए गए विक्रय को कानूनन अमान्य ठहराया गया। बहरहाल कलेक्टर किशोर कन्याल का यह फैसला शासन की भूमि की रक्षा और राजस्व नियमों की सख्ती से पालना सुनिश्चित करने की दिशा में एक मजबूत कदम माना जा रहा है। इससे जिले में ऐसे अन्य विवादित या शासकीय भूमि के अवैध विक्रय मामलों की भी दोबारा जांच की संभावना जताई जा रही है। -  सीताराम नाटानी (ईएमएस)