07-Jul-2025
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* अहिंसा, संयम और तप ही श्रेष्ठ धर्म हैं: आचार्य श्री महाश्रमणजी अहमदाबाद (ईएमएस)| राज्यपाल आचार्य देवव्रत ने कहा कि सच्चा धर्म वही है जो अपने सिद्धांतों को अपनाकर स्वयं भी सुखी हो तथा अपने संपर्क में आने वाले अन्य लोगों को भी सुखी बनाए। इस संसार में धर्म ही है जो मनुष्य को अन्य पशु-पक्षियों से अलग करता है। गांधीनगर के कोबा स्थित प्रेक्षा विश्व भारती में आचार्य श्री महाश्रमणजी के चातुर्मास प्रवेश समारोह में राज्यपाल आचार्य देवव्रत ने कहा कि चातुर्मास के दौरान संत एक ही स्थान पर रहकर लोगों से शास्त्रों और आत्मा-परमात्मा पर चर्चा करते हैं और लोगों की समस्याओं का समाधान कर आत्मा के विकास का मार्ग बताते हैं। हम सभी के लिए यह हर्ष का विषय है कि आचार्य प्रवर श्री महाश्रमणजी चार महीने तक यहां रहेंगे। हमें उनके ज्ञान का लाभ अवश्य उठाना चाहिए। राज्यपाल ने आगे कहा कि महर्षि पतंजलि ने योग सूत्र में आत्मा की उन्नति के लिए यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि का मार्ग दिखाया है। जिसमें यम, अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह इन पांच महाभूतों की बात कही गई है। जो आत्मा की उन्नति का मार्ग दिखाता है। ये पांच महातत्व सम्पूर्ण विश्व में सभी के लिए समान रूप से लागू होते हैं। ये पांच सिद्धांत मानव आत्मा के विकास के लिए आवश्यक हैं। हमारा जीवन केवल खाने-पीने और जीने तक ही सीमित नहीं है, जीवन का सच्चा उद्देश्य आत्मा की उन्नति में निहित है। जीवन का अंतिम लक्ष्य आत्मा का विकास करके मोक्ष प्राप्त करना है। राज्यपाल आचार्य देवव्रत जी ने अहिंसा की परिभाषा देते हुए कहा कि प्राणियों के प्रति दया, करुणा व सहनशीलता का भाव रखना, मन, वाणी व कर्म से किसी का बुरा न सोचना ही सच्ची अहिंसा है। अहिंसा के सिद्धांत के बिना यह संसार जीवित नहीं रह सकता। राज्यपाल ने कहा कि अध्यात्म का मार्ग उसी व्यक्ति के लिए खुलता है जो अहिंसा, दया और सहनशीलता को अपने जीवन में उतारता है। संतों का जीवन परोपकार के लिए होता है। आचार्य श्री महाश्रमणजी ने देशभर में 60 हजार किलोमीटर से अधिक की पदयात्रा की है। वह गांव-गांव जाकर लोगों के बीच रहते हैं, लोगों को उपदेश देते हैं। वह युवाओं को नशे से मुक्त करने के लिए काम करते हैं। वह प्रकृति को बचाने के लिए वृक्षारोपण अभियान चलाते हैं। इसके अलावा वह मानवीय मूल्यों के मूल सिद्धांतों को बचाने के लिए काम कर रहे हैं, जो बहुत सराहनीय है। इस अवसर पर आचार्य श्री महाश्रमण जी ने धर्म की परिभाषा बताते हुए कहा कि धर्म तीन प्रकार के होते हैं, अहिंसा, संयम और तप ये श्रेष्ठ धर्म हैं। प्राणियों के प्रति अहिंसा की भावना, मैत्रीपूर्ण व्यवहार, सभी प्राणियों को अपने समान समझना ही सच्चा धर्म है। हमें दूसरों के साथ वैसा व्यवहार नहीं करना चाहिए जो हमारे प्रति शत्रुतापूर्ण हो। अगर हमें खुशी पसंद है, तो दूसरों को भी खुशी पसंद होनी चाहिए, अगर हम अपमान बर्दाश्त नहीं कर सकते, तो हमें किसी का अपमान नहीं करना चाहिए। सच्ची अहिंसा तब होती है जब हम दूसरों के साथ वैसा व्यवहार करते हैं जैसा हम चाहते हैं कि दूसरे हमारे साथ करें। आचार्य श्री महाश्रमणजी ने आगे कहा कि सच्चा धर्म व्यक्ति को ऊपर उठाता है और जीवन को पवित्र बनाता है। जैन धर्म में चातुर्मास का विशेष महत्व है, जिसमें संत चार माह तक एक स्थान पर रहकर साधना करते हैं और लोगों को उपदेश देते हैं। यह परंपरा भारत की अनमोल आध्यात्मिक विरासत है। इस अवसर पर हम सभी को सच्चे धर्म को अपनाकर सम्पूर्ण विश्व के लिए सुख-शांति का मार्ग प्रशस्त करना चाहिए। आचार्य श्री महाश्रमणजी के चातुर्मास प्रवेश कार्यक्रम में मुख्य मुनि श्री महावीर कुमार, साध्वी प्रमुखा, साध्वी वर्या, आमंत्रित अतिथि, गणमान्य नागरिक और बड़ी संख्या में जैन धर्म के अनुयायी उपस्थित थे। सतीश/07 जुलाई