पेरिस (ईएमएस)। रोज़ाना शैंपू करने से बालों और खोपड़ी की प्राकृतिक सेहत पर असर पड़ सकता है। शैंपू का काम गंदगी और तेल हटाना है, मगर यह खोपड़ी के नैचुरल ऑयल (सीबम) को भी साफ कर देता है, जो बालों को मॉइस्चराइज करता है। इससे स्कैल्प ड्राई और बाल कमजोर हो सकते हैं। ताजा शोध के बाद वैज्ञानिकों ने यह दावा किया है। 2021 की एक स्टडी बताती है कि बार-बार शैंपू करने से सीबम प्रोडक्शन असंतुलित हो जाता है और स्कैल्प या तो बहुत सूखी या बहुत ऑयली हो सकती है। डर्मेटोलॉजिस्ट सलाह देते हैं कि रोज़ नहाना फायदेमंद हो सकता है, खासकर भारत जैसे गर्म और धूल भरे देशों में, लेकिन शैंपू हफ्ते में 2–3 बार ही करें। बाकी दिनों में पानी से धोने की सलाह दी जाती है ताकि प्राकृतिक ऑयल बना रहे। जो लोग ज्यादा पसीना निकालते हैं, उन्हें रोज़ शैंपू की जरूरत हो सकती है। रोज़ शैंपू में मौजूद सर्फेक्टेंट्स जैसे सोडियम लॉरिल सल्फेट बालों के प्रोटीन को भी नुकसान पहुंचा सकते हैं। इससे बाल पतले, कमजोर और दोमुंहे हो सकते हैं। कुछ लोगों की स्किन संवेदनशील होती है, जिनमें सल्फेट्स या कृत्रिम खुशबू वाले शैंपू से खुजली और जलन हो सकती है। दुनिया में शैंपू के इस्तेमाल की आदतें अलग हैं। अमेरिका और जापान में लोग हफ्ते में 5–7 बार शैंपू करते हैं। अमेरिका में ड्राई शैंपू भी लोकप्रिय है। जापान में रोज़ाना नहाना और शैंपू करना साफ-सफाई का हिस्सा माना जाता है। ब्राजील जैसे गर्म देशों में लोग दिन में एक-दो बार भी शैंपू करते हैं। दक्षिण कोरिया में भी हेयर केयर बेहद अहम है। भारत में शैंपू का चलन अब भी कम है। गांवों में रीठा, शिकाकाई और हर्बल नुस्खे चलते हैं और शैंपू हफ्ते में 1–2 बार किया जाता है। अफ्रीकी देशों में बालों की बनावट के कारण कभी-कभी 10–15 दिन में एक बार शैंपू किया जाता है। यूरोप में “लो-पू” (कम केमिकल वाला) और “नो-पू” (बिना शैंपू के) आंदोलन बढ़ा है। कोविड के दौरान लोग घर में रहे और कम शैंपू करने से बाल ज्यादा हेल्दी लगे। सुदामा/ईएमएस 10 जुलाई 2025