लेख
10-Jul-2025
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वर्तमान समाज में सुंदरता की परिभाषा इतनी विकृत हो चुकी है। युवा वर्ग अपने जीवन को दांव पर लगाने में भी संकोच नहीं कर रहा है। अभिनेता शेखर सुमन के बेटे अध्ययन सुमन की प्रेमिका दिवंगत अभिनेत्री सैफाली की असामयिक मृत्यु ने इस विकृत मानसिकता पर हम सभी का ध्यान खींचा है। आज के दौर में खूबसूरत दिखना एक बड़ी मानसिक बीमारी बन गई है। जीवन जीने के लिए सुंदर शरीर का होना जरूरी है? इसको लेकर एक नई मानसिकता युवा वर्ग में देखने को मिल रही है। शरीर की फिटनेस, ग्लोइंग स्किन, परफेक्ट फिगर, इंस्टाग्राम-रेडी चेहरा जैसी सोच ओर मान्यताएं युवा वर्ग, जिसमें लड़के और लड़की दोनों हैं, इस सोच के शिकार हैं। अधेड़ उम्र में यह मानसिकता और भी खतरनाक हो जाती है। जब धीरे-धीरे उम्र का असर शरीर पर दिखने लगता है। अधेड़ वगर् कुंठा का शिकार होने लगाता है। युवाओं में सोशल मीडिया की दिखावटी दुनिया ने सुंदरता के मायने शक्ल-सूरत ड्रेस और बाहरी सौंदर्य तक सीमित कर दिया है। वर्तमान पीढ़ी में आत्म मूल्यांकन का आधार विचार, व्यवहार या ज्ञान नहीं, बल्कि शरीर का सौंदर्य और पहनावा स्टेटस सिम्बल बन गया है। स्किन-फेयरनेस क्रीम, बोटॉक्स, सर्जरी, डाइटिंग, स्टेरॉयड और महंगे कॉस्मेटिक ट्रीटमेंट जैसे रसायनों के पीछे भाग रहे है। युवा, अधेड न केवल अपनी असल पहचान खो बैठते हैं, बल्कि धीरे-धीरे मानसिक बीमार बनाकर अपने जीवन को बर्बाद कर रहे हैं। अब तो हद हो गई है जब युवा और अधेड़ आत्महत्या जैसे कृत्य करने लगे हैं। सुंदर दिखने और फैशन की इस होड़ ने युवाओं के आत्मविश्वास और आत्म-सम्मान को खोखला कर दिया है। बॉलीवुड से लेकर सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर के बाद यह बीमारी अब समाज के मध्यम एवं निम्न वर्ग तक तेजी के साथ फैलती चली जा रही है। सभी नकली और अवास्तविक सौंदर्य मानक के साथ जीने की कोशिश कर रहे हैं। इसके लिए जिस तरह का वह कृत्रिम उपाय अपना रहे हैं। उसके कारण वह कुंठा, मानसिक बीमारी के कारण असमय मौत के मुंह में भी समा रहे हैं। युवा-युवतियों के मन में तेजी के साथ हीन भावना और असुरक्षा जन्म लेती है। जब अवास्तविक सोच ओर अपेक्षाओं को वह पूरा नहीं कर पाते हैं। ऐसी स्थिति में निराशा से भरे हुए लोग आत्महत्या जैसे खतरनाक कदम तक उठा लेते हैं। युवा और अधेड़ जिस तरह से कृत्रिम साधनों का उपयोग दैनिक जीवन में कर रहे हैं। उसके कारण उनके शरीर में इसके घातक परिणाम देखने को मिल रहे हैं। कृत्रिम उपाय के दुष्प्रभाव से उनकी समय के पहले मौत हो जाती है। इस स्थिति को लेकर डॉक्टर भी चिंता करने लगे हैं। सुंदर दिखने की ललक और फैशन हर तरीके के जोखिम को उठाने के लिए लोगों को मजबूर कर रही है। सुंदरता केवल शरीर और चेहरे मोहरे तक सीमित नहीं है। समाज में व्यक्ति की पहचान उसके गुणों, ज्ञान, उपयोगता और उसकी कलाओं के आधार पर होती है। बाहरी आकर्षण कुछ समय के लिए लोगों को आकर्षित कर सकता है। वास्तविक ज्ञान, गुण और कला सम्पूर्ण जीवन की वास्तविक चमक है। अभिभावकों, शिक्षकों और समाज को कृत्रिम सुंदरता और कृत्रिम ज्ञान फैशन के स्थान पर वास्तविक स्वरूप का ज्ञान बच्चों को बचपन से देना होगा। किसी भी व्यक्ति की पहचान उसके आत्म विश्वास, संवेदना, ईमानदारी और चरित्र से बनती हैं। वास्तविकता सारे जीवन काम आती है। भौतिक संसाधनों एवं बाजारवाद की मानसिक बीमारी को समय रहते नहीं रोका गया, तो अगली पीढ़ी एक ऐसे भंवरजाल में फंस जाएगी। जहां से निकल पाना उसके लिये संभव नहीं होगा। जिस तरह से वर्तमान समय में युवा और अधेड़ कृत्रिम संसाधनों के माध्यम से अपने आपको हमेशा युवा होना तय सबसे सुंदर दिखाना चाहते हैं। कुछ समय के लिए तो यह संभव हो सकता है। उसके बाद सारा जीवन कष्ट मय होना तय है। कृत्रिम सौंदर्य और कृत्रिम ज्ञान की कोई वास्तविकता नहीं होती है। जिसके कारण सामान्य जीवन कठिन होता चला जा रहा था। एक बहुत बड़ी आबादी कुंठा एवं मानसिक बीमारी से ग्रसित हो चुकी है। जो मन एवं शरीर को बीमारी बना रहा है। इससे बचने का प्रयास सभी को करना चाहिए। ईएमएस / 10 जुलाई 25