अब जबकि दुनिया स्वचालन की दिशा में तेजी से आगे बढ़ रही है, भारत सरकार ने हाल ही में रोजगार से जुड़ी प्रोत्साहन (ईएलआई) योजना को स्वीकृति दी है। यह एक बेहद ही सामयिक और सोचा-समझा कदम है। लगभग एक लाख करोड़ रुपये के परिव्यय वाली यह योजना भारत के उभरते रोजगार परिदृश्य, विशेषकर मैन्यूफैक्चरिंग क्षेत्र, में एक साहसिक नीतिगत हस्तक्षेप है। अगले दो वर्षों में 3.5 करोड़ से अधिक नौकरियों के सृजन को समर्थन देने के उद्देश्य से तैयार की गई यह ईएलआई योजना महज एक आर्थिक उपाय भर नहीं है - यह भारत की श्रमशक्ति के भविष्य में एक ऐसा रणनीतिक निवेश है, जो सीधे तौर पर सरकार के विकसित भारत@2047 के विजन का समर्थन करता है। ईएलआई देश में रोजगार सृजन का एक प्रमुख उत्प्रेरक बनने जा रहा है। कई अन्य ऐसे देशों के उलट, जहां आबादी शीघ्र ही घटने लगेगी या घट चुकी है, भारत में अभी भी कार्यशील आयु वर्ग की एक ऐसी बड़ी आबादी है, जिसे रोजगार के अधिक अवसरों की जरूरत है। ईएलआई योजना का उद्देश्य नौकरी चाहने वालों और नौकरी देने वालों के बीच ही नहीं बल्कि इससे भी अधिक महत्वपूर्ण रूप से अनौपचारिक कार्य एवं औपचारिक रोजगार के बीच की खाई को पाटना है। रोजगार संबंधी तात्कालिक नतीजों से परे जाकर, इस बात पर गौर करना महत्वपूर्ण है कि ईएलआई योजना विभिन्न सतत विकास लक्ष्यों (एसडीजी) की दिशा में भारत की प्रगति को मजबूत करती है। खासतौर पर, औपचारिक व दीर्घकालिक रोजगार को प्रोत्साहित करके एसडीजी 8 (सभ्य कार्य तथा आर्थिक विकास) और कम वेतन पाने वालों एवं पहली बार नौकरी चाहने वालों को लक्षित वित्तीय सहायता प्रदान करके एसडीजी 1 (गरीबी उन्मूलन) तथा एसडीजी 10 (असमानताओं में कमी) के संदर्भ में। आधार-समर्थ प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण प्रणाली (डीबीटी सिस्टम) के जरिए ईपीएफओ पंजीकरण एवं संवितरण के साथ इस योजना का जुड़ाव न केवल रोजगार सृजन बल्कि सामाजिक सुरक्षा कवरेज का विस्तार भी सुनिश्चित करता है, जोकि एक न्यायसंगत और समावेशी अर्थव्यवस्था के निर्माण की दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण है। भारत द्वारा किए गए ऐसे प्रयासों को मान्यता देते हुए, अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) ने हाल ही में भारत की इस उपलब्धि को स्वीकार किया और आधिकारिक तौर पर अपने डैशबोर्ड पर इस तथ्य को प्रकाशित किया कि भारत की 64.3 प्रतिशत आबादी (2015 में 19 प्रतिशत की तुलना में), यानी 94 करोड़ से अधिक लोग अब कम से कम एक सामाजिक सुरक्षा लाभ के दायरे में हैं। मैन्यूफैक्चरिंग पर जोर खासतौर पर स्वागत योग्य है। जैसे-जैसे वैश्विक मूल्य श्रृंखलाएं नए सिरे से बदल रही हैं, भारत भी कपड़ा, इलेक्ट्रॉनिक्स, ऑटोमोबाइल, उपभोक्ता वस्तुओं और फार्मास्यूटिकल्स जैसे क्षेत्रों में एक विश्वसनीय विकल्प के रूप में तेजी से उभर रहा है। इन क्षेत्रों में दीर्घकालिक रोजगार सृजन का समर्थन करके, ईएलआई योजना पीएलआई योजनाओं, ‘मेक इन इंडिया’ तथा ‘स्किल इंडिया’ जैसी मौजूदा पहलों का पूरक बनने के साथ-साथ शहरी व अर्द्ध-शहरी, दोनों समूहों में औद्योगिक विकास को गति देगी। अक्सर लागत संबंधी चिंताओं के कारण औपचारिक भर्ती को बढ़ाने में बाधाओं का सामना करने वाले सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यमों (एमएसएमई) को यह योजना महत्वपूर्ण राहत प्रदान करती है। नियोक्ता-पक्ष के प्रोत्साहन नई भर्ती की सीमांत लागत को कम करते हैं। इससे विस्तार, औपचारिकीकरण और श्रमशक्ति के उन्नयन की प्रक्रिया को बढ़ावा मिलता है। वैश्विक स्तर पर, वेतन से जुड़ी प्रोत्साहन योजनाएं रोजगार को बढ़ावा देने में कारगर साबित हुई हैं। जर्मनी जैसे देश अप्रेंटिसशिप और दीर्घकालिक भर्ती के लिए नियोक्ता सब्सिडी प्रदान करते हैं। दक्षिण कोरिया युवा एवं वृद्ध श्रमिकों के नियोक्ताओं को लक्षित वेतन सहायता प्रदान करता है। सिंगापुर कौशल के उन्नयन (अपस्किलिंग) और रोजगार को कायम रखने के लिए वित्तीय सहायता प्रदान करता है। संयुक्त राज्य अमेरिका में कार्य अवसर कर क्रेडिट (डब्ल्यूओटीसी) की व्यवस्था है, जो वंचित समूहों के व्यक्तियों की भर्ती करने वाले नियोक्ताओं को पुरस्कृत करता है। भारत की ईएलआई योजना हमारे विशाल अनौपचारिक श्रम बाजार, जनसांख्यिकीय लाभांश और डिजिटल बुनियादी ढांचे के विस्तार जैसी स्थानीय जरूरतों के अनुरूप वैश्विक स्तर की सर्वश्रेष्ठ कार्यप्रणालियों का समावेश करती है। ईएलआई योजना भारत की रोजगार नीति की परिपक्वता - अल्पकालिक राहत से हटकर दीर्घकालिक श्रम बाजार के विकास की दिशा में बदलाव - को दर्शाती है। ढलती उम्र वाली आबादी के साथ-साथ डिजिटल और हरित बदलावों जैसे व्यापक वैश्विक रुझानों की पृष्ठभूमि में, ऐसी कारगर नीतियां अधिक संख्या में लोगों को गुणवत्तापूर्ण नौकरियां सुलभ कराने की दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं। फिक्की में, हम अपने सदस्यों से इस योजना का सदुपयोग करने हेतु आगे आने का आग्रह करते हैं। नियोक्ताओं- खासकर सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यमों (एमएसएमई) से जुड़े- को इसे वित्तीय लाभ से कहीं आगे बढ़कर देखना चाहिए। यह योजना परिचालन को बढ़ाने, युवा प्रतिभाओं का दोहन करने, वेतन भुगतान प्रणाली (पेरोल) का औपचारिकीकरण करने और स्थायी आर्थिक मूल्य सृजित करने का एक उपकरण है। उद्योग जगत के एक शीर्ष चैंबर के रूप में, फिक्की इस उद्देश्य का समर्थन करने के लिए प्रतिबद्ध है। (महानिदेशक, फिक्की) ईएमएस/ 10 जुलाई 25