लेख
11-Jul-2025


हेमंत सोरेन शायद पहले मुख्यमंत्री होंगें जिन्होंने यूरोपीय देशों की यात्रा के बाद झारखंड को यूरोप बनाने की वकालत नहीं की। मुख्यमंत्री ने कहा कि झारखंड का मिज़ाज अन्य इलाकों से अलग है। हम खूबियों को जरूर अपनाएं लेकिन अपनी जड़ों को हटाकार सबकुछ बदलने की कोशिश आत्मघाती हो सकती है। झारखंड में पेसा के क्रियान्वयन में छठी अनुसूची के पैटर्न यानि स्वायतशासी जिला परिषद के अनुपालन के बिना पेसा को बेमतलब घोषित किये जाने के अभियान को इसी संदर्भ से जोड़कर देखने की जरूरत है। पेसा की धारा 4 (o) में उल्लेख है कि राज्य विधानमंडल अनुसूचित क्षेत्रों में जिला स्तर पर पंचायतों में प्रशासनिक व्यवस्था तैयार करते समय संविधान की छठी अनुसूची के पैटर्न का पालन करने का प्रयास करेगा। छठी अनुसूची का उद्देश्य है —पूर्वोत्तर भारत के आदिवासी समुदायों को उनकी विशिष्ट सामाजिक, सांस्कृतिक, भाषाई और भौगोलिक संरचना के अनुरूप प्रशासनिक स्वायत्ता प्रदान करना। यह एक अनूठी व्यवस्था है जिसमें राज्य विधानसभाओं के समानांतर ‘स्वायत्त जिला परिषदों’ और ‘क्षेत्रीय परिषदों’ की स्थापना की गई है। लेकिन एक सवाल लगातार बहस में है—क्या छठी अनुसूची में ग्रामसभा की कोई भूमिका है? यदि है, तो क्या वह वास्तविक निर्णय लेने वाली संस्था है या केवल परामर्शदात्री निकाय? क्या यह संरचना पंचायती राज और स्थानीय स्वशासन की आत्मा का सम्मान करती है? **छठी अनुसूची: मूल संरचना और लक्ष्य* *पूर्वोत्तर भारत के चार राज्यों असम, मिज़ोरम, त्रिपुरा और मेघालय में स्वायत्त जिला परिषदें (एडीसी) बनाई गईं। इन परिषदों को कुछ अधिनियम बनाने, कर लगाने, न्यायालय चलाने, भूमि प्रबंधन और स्थानीय प्रशासनिक निर्णय लेने के अधिकार दिए गए। लेकिन ध्यान दें कि इस ढांचे में ग्राम सभा का ज़िक्र कहीं प्रत्यक्ष रूप से संविधान में नहीं है। इसका अर्थ हुआ कि ग्रामसभा जैसी पारंपरिक संस्थाएं स्वायत्त परिषदों की अधीनता में चली जाती हैं और उनकी स्वतंत्र शक्ति सीमित हो जाती है। छठी अनुसूची में ग्रामसभा का सीधा उल्लेख नहीं मिलता। जहाँ परिषदों ने ग्रामसभाओं को अपनाया है, वहाँ उनके कुछ कार्य निर्धारित किए गए हैं। ग्राम सभा पारंपरिक रीति से स्थानीय झगड़ों, भूमि विवादों आदि का समाधान कर सकती है। योजनाओं का प्रस्ताव देना, प्राथमिकता तय करना, मजदूरी का निर्धारण ग्राम सभा के कार्य क्षेत्र में होगा। नशा, बाल विवाह, घरेलू हिंसा जैसे मुद्दों पर सामूहिक निर्णय का अधिकार ग्राम सभाओं का होगा। सामुदायिक वनों का संरक्षण, पारंपरिक जैव-विविधता की रक्षा आदि पर ग्राम सभाएं विचार कर सकती हैं। *न्यायिक और प्रशासनिक सीमाएँ* छठी अनुसूची में परिषदों को न्यायिक अधिकार भी दिए गए हैं। लेकिन ग्रामसभा की इस न्यायिक प्रक्रिया में कोई भूमिका नहीं मिलती। कौंसिल कोर्ट स्थानीय विवादों पर निर्णय करते हैं, पर ग्रामसभा की राय केवल ‘सामाजिक सहमति’ तक सीमित रहती है। बोडोलैंड में कई गाँवों की शिकायत रही है कि विकास योजनाएं ऊपर से तय होती हैं, गाँवों की प्राथमिकताओं की उपेक्षा होती है। खासी और जयंतिया हिल्स में ग्रामसभा आधारित परंपरागत ढांचे (डोलोई, सायेम, नोकमा) को परिषदें नजरअंदाज़ कर रही हैं। इससे गाँवों में प्रशासनिक अव्यवस्था और पारंपरिक विश्वास का संकट उत्पन्न हुआ है। त्रिपुरा के ट्राइबल एरियाज ऑटोनॉमस डिस्ट्रिक्ट काउंसिल में ग्रामसभाओं को बहुत सीमित अधिकार दिए गए हैं। आदिवासी समुदायों ने कई बार परिषद के ‘अधिनायकवादी रवैये’ पर सवाल उठाए हैं। *शक्ति के कई केंद्र* पाँचवीं अनुसूची की तरह जनजातीय परामर्शदात्री परिषद की अवधारणा छठी अनुसूची वाले राज्यों में नहीं है। जनजातीय परामर्शदात्री परिषद को पाँचवीं अनुसूचित क्षेत्र के मामलों में विधायी शक्ति है। पंचायती राज व्यवस्था में 73वें संशोधन द्वारा विभिन्न स्तरों पर महिलाओं के लिये सभी पंचायत सीटों में से कम से कम एक तिहाई सीटों (झारखंड में 50 फीसदी) के आरक्षण की दी गई है। इसके विपरीत छठी अनुसूचियों में महिलाओं के प्रतिनिधित्व एवं लैंगिक समानता का कोई उल्लेख नहीं है। ज़िला परिषदों की स्वायत्तता और शक्ति स्वायत्त ज़िला परिषदों के कार्यकलाप को संचालित करने वाले अभिजात वर्ग के एक छोटे समूह के हाथों में होती है। विकास के मामले में और निर्णय लेने की प्रक्रिया में पाँचवीं अनुसूचित क्षेत्र की ग्राम सभाओं की तुलना में छठी अनुसूची में स्थानीय हितधारकों की भागीदारी बेहद कम होती है और एक तरह से उनके लोकतांत्रिक अधिकारों से उन्हें वंचित रखा जाता है। जबकि पाँचवीं अनुसूचित क्षेत्र की त्रिस्तरीय पंचायत व्यवस्था में (74 वें संशोधन नगर निकायों के) जिला योजना समिति जैसी संवैधानिक संस्था का प्रावधान है। छठी अनुसूची ने राज्यपाल को अत्यधिक शक्तियाँ प्रदान की हैं। कई स्वायत्त ज़िला परिषदों के सदस्यों का मत है कि राज्यपाल मंत्रियों के हाथों की कठपुतली मात्र होते हैं। यह सही है कि अनुसूचित जनजातियों के विभिन्न समूहों में गाँव के ऊपर स्वशासी संस्थाएं हैं। कई जगहों पर यह सांकेतिक मात्र रह गया है बावजूद इसके स्थानीय समुदायों का लगाव इन संस्थाओं के प्रति है। छठी अनुसूची के ऑटोनॉमस डिस्ट्रिक्ट काउंसिल की तर्ज पर झारखंड में इन संस्थाओं को नियमावली में जगह देने की बात की जा रही है। यह विकल्प तो हो सकता है लेकिन इसके लिए पूरी प्रशासनिक ढांचे को शीर्षासन की जरूरत पड़ेगी। राज्य की विधान सभा की 28 सीटें अनुसूचित जनजाति समुदाय के लिए आरक्षित है और बावजूद इसके आदिवासियों के हितों की उपेक्षा हो रही है तो सोचना चाहिए कि विधान बनाने की और कितनी संस्थाएं चाहिए? पाँचवीं अनुसूची की सबसे बड़ी खूबी यह है कि यह ग्रामसभा को सर्वोच्च निर्णयकारी संस्था मानती है। इसके तहत वर्ष 1996 में बना पेसा कानून एक क्रांतिकारी कदम था, जिसने ग्रामसभा को प्रशासनिक, सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक निर्णयों में प्रमुख भूमिका दी। इसके उलट छठी अनुसूची में स्वायत्त जिला परिषद और क्षेत्रीय परिषद जैसे ढांचे बनाए गए हैं। ये परिषदें निर्वाचित जनप्रतिनिधियों से बनी होती हैं। ग्रामसभा जैसे विकेन्द्रीकृत ढाँचे की बजाय, छठी अनुसूची में सत्ता परिषदों में सिमट जाती है। निर्णय गाँव में नहीं होते, बल्कि जिला मुख्यालय में बैठे निर्वाचित प्रतिनिधि लेते हैं। इससे स्थानीय स्वायत्ता खो जाती है। जब निर्णय परिषद के हाथों में जाता है, तो उसमें प्रशासनिक और राजनैतिक दखल बढ़ता है। यह आदिवासी परंपरा के ‘सहमति’ आधारित तंत्र को बहुमत के खेल में बदल देता है, जो अक्सर पैसे, दबाव और दलालों के ज़रिए नियंत्रित होता है। यहाँ यह कहना अतिशयोक्ति नहीं कि छठी अनुसूची की संरचना आदिवासियों के लिए नहीं बल्कि राज्य सरकारों और उनके राजनीतिक एजेंटों के लिए सुविधाजनक होती है, ताकि ग्रामसभा को निष्क्रिय कर विकास परियोजनाओं की राह आसान हो। लेकिन आज जब झारखंड जैसे पाँचवीं अनुसूची क्षेत्र में, शासन और प्रशासन बार-बार छठी अनुसूची की तरह स्वायत्त परिषद की तर्ज़ पर संस्था बनाने की बात उठती है, तो सवाल उठता है—क्या यह सचमुच आदिवासियों को सशक्त करने की कोशिश है या फिर उनकी ग्राम सभाओं की आत्मा को कुचलने की एक योजना? संविधान की भावना है कि सत्ता नीचे से ऊपर की ओर जाए। लेकिन छठी अनुसूची की परिषदें ऊपर से नीचे का शासन चलाती हैं। ईएमएस/11जुलाई2025