क्षेत्रीय
21-Jul-2025


भविष्य की आहट / डा. रवीन्द्र अरजरिया बालासोर जिले के फकीर मोहन कालेज काण्ड ने व्यवस्था-तंत्र की संवेदनशीलता और कार्यपालिका की कार्यप्रणाली पर एक बार फिर सवालिया निशान लगा दिये हैं। अभी यह आग ठंडी भी नहीं हुई है कि दक्षिण कन्नड जिले के एक निजी कालेज में कार्यरत दो पुरुष शिक्षकों व्दारा छात्रा का यौन उत्पीडन करने का मामला सामने आ गया। पीडिता के अनुसार नोट्स देने के नाम पर पहले एक शिक्षक ने उसे बैंगलुरु बुलाया और अपने मित्र के घर पर ले जाकर बलात्कार किया, जिसका अश्लील वीडियो भी बना लिया गया। बाद में इसी वीडियो को वायरल करने की घमकी देकर दूसरे शिक्षक के सामने परोस दिया। बालासोर और मुडबिद्री की घटनाओं से जहां एक ओर शिक्षा के मंदिरों को राजनैतिक अखाडा बनाकर स्वार्थ सिद्ध के केन्द्र बनाने की मंशा जाहिर हुई वहीं गुरुता का पशुता में परिवर्तित होता चेहरा भी उजागर हुआ। शिक्षा जगत में यौन उत्पीडन से लेकर आर्थिक शोषण की नित नई दास्तानें सामने आ रहीं है। छात्र राजनीति के नाम पर दलगत संगठन मैदान में उतारे गये हैं जिनका उपयोग राजनैतिक दलों के दिग्गजों व्दारा निहित स्वार्थों के लिए किया जा रहा है। इस तरह के कालेजों, विश्वविद्यालयों तथा अन्य शैक्षणिक संस्थानों में छात्रों तथा शिक्षकों की सुंयुक्त गिरोहबंदी चल रही है जिनकी आपसी प्रतिस्पर्धा अब गैंगवार में बदल चुकी है। छात्र-संघ के चुनावों में यह गिरोह वर्चस्व की जंग में सरेआम कूद जाते हैं। शिक्षण संस्थानों के महात्वपूर्ण पदों पर खद्दरधारियों के ही चहेतों की नियुक्ति के अनेक मामले सामने आते रहे हैं। शिक्षा के मंदिर अब राजनीति के युद्ध क्षेत्र बन गये हैं। जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय इसका जीता जागता उदाहरण है जिसका परिवर्तित स्वरूप ही लखनऊ, बनारस, अलीगढ, हैदराबाद, कोलकता सहित समूचे देश में देखा जा सकता है। कहीं लाल सलाम बोलकर ऐतिहासिक तथ्यों को विकृत कर छात्रों के मध्य परोसा जा रहा है कहीं मनगढन्त इतिहास की दुहाई पर बरगलाने का काम चल रहा है। कोई साम्प्रदायिकता फैलाकर अपनी गोटियां लाल करने में मगन है तो कोई अल्पसंख्यक के नाम पर अपनी स्वार्थपूर्ति में जुटा है। उज्ज्वल भविष्य के सपने संजोने वाले नवनिहालों को राजनीति के दलदल में घसीटने कुटिल चालें निरंतर चल रहीं हैं। ईमानदार करदाताओं के खून पसीने की कमाई से कार्यपालिका को बेतहाशा सुविधायें मुहैया कराने के बाद भी उसका एक बडा भाग अपने दायित्वों के प्रति निरंतर उदासीनता बरत रहा है। ओडिसा के फकीर मोहन कालेज काण्ड जैसे अनगिनत काण्ड समूचे देश में दबे पडे हैं जहां पर कालेज प्रशासन से लेकर स्थानीय प्रशासन, पुलिस प्रशासन सहित वरिष्ठतम अधिकारियों व्दारा बरती जा रही मनमानियों तले पीडियों पर दमनचक्र तेजी से घूम रहा है। बालासोन जिले के कालेज की पीडित बी. एड. छात्रा ने छः माह पहले शिक्षा विभाग के विभागाध्यक्ष समीर कुमार साहू व्दारा यौन उत्पीडन करने की शिकायत कालेज की शिकायत समिति के समक्ष की थी, जिस पर कोई कार्यवाही नहीं की गई। शिकायत के उपरान्त आरोपी समीर ने अपने पक्ष में 71 छात्रों के हस्ताक्षर युक्त एक पत्र कालेज प्रशासन को सौंपा जिसमें पीडिता एवं उसके सहयोगियों को निलम्बित करने की मांग की गई थी। सूत्रों की मानें तो पीडिता को कालेज के प्रिंसिपल दिलीप कुमार घोष ने अपने कार्यालय में बुलाकर समीर के विरुद्ध की गई शिकायत वापिस लेने तथा मांफी मांगने के लिए मजबूर किया था। प्रिंसपल कार्यालय से निकलने के बाद ही पीडिता ने कालेज परिसर में ही अग्निस्नान कर लिया था। मामला उजागर होते ही समूचे देश में आक्रोश की लहर फैल गई। पूरे घटनाक्रम को एक दृष्टि में देखें तो 12 जुलाई को कालेज तंत्र से न्याय न मिलने पर पीडिता ने कालेज परिसर में अग्निस्नान किया, 13 जुलाई को कालेज के शिक्षा विभाग के विभागाध्यक्ष समीर कुमार साहू गिरफ्तार किया गया तथा प्रिंसपल दिलीप कुमार घोष को हिरासत में लिया गया, 14 जुलाई को आरोपियों से गहन पूछताछ में घटनाक्रम के पीछे के अनेक सूत्र निकल कर सामने आये और प्रिंसपल दिलीप को गिरफ्तार किया गया, केन्द्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेन्द्र प्रधान ने 90 प्रतिशत जल चुकी पीडिता के हालचाल जानने हेतु बर्न वार्ड का दौरा किया, देश की राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने ओडीसा के मुख्यमंत्री, राज्यपाल, केन्द्रीय मंत्री सहित वार्ड का दौरा किया, इसी दिन 11.54 बजे पीडिता की मौत हो गई। औपचारिकतायें निभाते हुए राज्य सरकार, यूजीसी, स्थानीय प्रशासन आदि ने अनेक जांच समितियां बनाईं। यौन उत्पीडन, प्रशासनिक उदासीनता और लालफीताशाही की मनमानियों के विरोध में वातावरण गर्म होने लगा। अनेक दबे-कुचले पीडितों में भी न्याय पाने की आस जगी और कन्नड काण्ड उजागर हुआ। राजनैतिक झंडे तले संचालित हो रहीं छात्र शाखाओं से जुडकर स्वार्थी शिक्षकों, कर्मचारियों, अधिकारियों का एक बडा वर्ग अपनी स्वार्थपूर्ति में लगा हुआ है ताकि वे सत्ताधारी दल के कद्दावर नेताओं के प्रभाव से निजी स्वार्थों, लिप्साओं और ललासाओं को पूरा कर सकें। सूत्रों के अनुसार शिक्षा तंत्र पर माफियों को शिकंजा पूरी तरह से कस चुका है। मान्यता दिलाने, सम्बद्ध कराने, पाठ्यक्रम प्रभावित कराने, छात्रवृत्ति की राशि आवंटित कराने, आडिट कराने, औपचारिकतायें पूरी कराने जैसे सभी कार्यों के रेट निर्धारित हैं। विभाग के अधिकारियों-कर्मचारियों का स्थानान्तरण, पद स्थापना, विभाग आवंटन, कार्य विभाजन जैसे सरकारी कार्य अब माफियों के इशारे पर ही होने की स्थितियां सामने आ रहीं हैं। चर्चा है कि इन माफियों को सफेदपोश नेताओं, राजनैतिक दलों और कार्यपालिका के वरिष्ठतम अधिकारियों का खुला संरक्षण प्राप्त है। शिक्षा माफियों के साथ मिलकर बनाया गया यह गठबंधन स्वार्थ के धरातल पर लाभ के भवनों की खुलेआम आधारशिला रख रहा है। ऐसे में अगर आम आवाम जागरूक होकर आगे नहीं आया तो शिक्षा माफियों के स्वार्थकुण्ड में प्रतिभाओं की आहुतियां होती रहेंगी और अतीतकालीन गुरुकुल अपने स्वरुप की पुनर्स्थापना हेतु तरसता रहेगा। इस बार बस इतना ही। अगले सप्ताह एक नई आहट के साथ फिर मुलाकात होगी। - उन्नत पचौरी, छतरपुर