हाल ही में अमेरिका और पाकिस्तान के बीच हुए व्यापार समझौते ने अंतरराष्ट्रीय रणनीतिक समीकरणों में एक नई हलचल पैदा कर दी है। इस समझौते के तहत अमेरिका ने पाकिस्तान को व्यापक आर्थिक सहायता देने और व्यापार में रियायतों की घोषणा की है। इसके साथ ही, अमेरिका ने भारत से आयातित कुछ प्रमुख वस्तुओं पर न्यूनतम 25 प्रतिशत टैरिफ लागू कर दिया है। यह न केवल भारत के लिए एक बडा आर्थिक झटका है बल्कि इससे अमेरिका की विदेश नीति और भारत को लेकर उसकी प्राथमिकताओं पर गंभीर सवाल उठने लगे हैं। अमेरिका द्वारा पाकिस्तान को दी गई आर्थिक सहायता और व्यापारिक छूट को कूटनीतिक दृष्टि से देखा जाए, तो अमेरिका की यह नीति भारत को उपेक्षित और दंडित करने की रणनीति का संकेत देती है। खासकर ऐसे समय में जब भारत, चीन और रूस के साथ अपने संबंधों को संतुलित कर रहा है। ऐसे समय पर अमेरिका द्वारा जो टैरिफ बढ़ाया गया है उससे स्पष्ट रूप से पता लगता है, अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप भारत के साथ दुर्भावना के साथ काम कर रहे हैं। अमेरिका का पाकिस्तान की ओर झुकाव स्पष्ट रूप से अमेरिका के दबाव की राजनीति है। यह कदम भारत के निर्यातकों को सीधा नुकसान पहुंचाएगा। खासकर स्टील, कपड़ा और आईटी सेवाओं जैसे क्षेत्रों में भारत के निर्यातक काफी परेशान होंगे, उन्हें नया बाजार खोजना होगा। भारत को इस परिस्थिति में बहुत ही संतुलित सोच-समझकर बिना किसी दबाव के स्पष्ट रुख अपनाने की आवश्यकता है। त्वरित प्रतिक्रिया के रूप में राजनयिक विरोध या व्यापारिक वार्ताओं की जल्दबाजी से बचना होगा। भारत को वैश्विक व्यापार संधि तथा वैश्विक मंचों पर अमेरिका के इस निर्णय को चुनौती देनी चाहिए। इसके साथ ही, भारत को घरेलू उद्योगों को प्रोत्साहित करने और नए बाजारों की तलाश करना समय की मांग है। भारत को यह समझना होगा कि अमेरिका-पाकिस्तान का व्यापार समझौता केवल आर्थिक नहीं, बल्कि रणनीतिक चाल है। जिस तरह से रूस और चीन आपस में नजदीक आ रहे हैं भारत का कारोबार चीन के साथ सबसे ज्यादा है। डॉलर मुद्रा को ब्रिक्स के देश चुनौती दे रहे हैं। ब्रिक्स संगठन में भारत भी शामिल है। अमेरिका को एशिया के देशों में भारत या पाकिस्तान किसी एक से संबंध रखना रणनीतिक रूप से बहुत जरूरी है। भारत की नजदीकी चीन और रूस के साथ है। इससे संकेत मिलता है, अमेरिका अपने पुराने पाकिस्तान जैसे साझेदारों पर फिर से भरोसा जताने लगा है। भले ही वो साझेदार स्थायित्व और पारदर्शिता के पैमाने पर कमजोर क्यों ना हों। भारत को अपनी विदेश नीति को और सशक्त, स्पष्ट और दीर्घकालिक दृष्टिकोण के आधार पर पुनर्विचार करते हुए नई नीति बनाने की जरूरत है। भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के साथ दोस्ती, रूस और चीन के साथ व्यापार बढ़ाने के कारण वैश्विक व्यापार में जो प्रतिस्पर्धा बढ़ी है, वह भारत के लिए इस समय सबसे बड़ी चुनौती है। वर्तमान घटनाक्रम भारत के लिए एक बडी चेतावनी है। अंतरराष्ट्रीय संबंध व्यक्तिगत मित्रता के स्थान पर नहीं, बल्कि सामयिक, आर्थिक राजनायिक और सामरिक हितों पर आधारित होते हैं। भारत को अब आत्मनिर्भरता, रणनीतिक व्यापार साझेदारियों और बहुपक्षीय मंचों से मिल रही वैश्विक चुनौती का जवाब देना होगा। यही समय है,जब भारत को आर्थिक और कूटनीतिक मोर्चों पर मजबूती से खड़ा होना पड़ेगा। वैश्विक व्यापार संधि के बाद जिस तरह से वैश्विक स्तर पर बाजार सारे देशों के लिए खुले हैं उसमें चीन ने सबसे ज्यादा फायदा उठाया है। इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है। चीन का उत्पादन आज विश्व के अधिकांश देशों तक पहुंच रहा है। पिछले दो दशक में उसने तकनीकी के आधार पर जो विकास किया है। चीन के उत्पाद कम कीमत के होने के कारण सारे विश्व के देशों को उसके ऊपर निर्भर होना पड़ रहा है। भारत की 70 करोड़ की आबादी युवा है। चीन ने जिस तरह से अपनी आबादी का उपयोग, उद्योग और व्यापार के क्षेत्र में किया है। जिस तरह की तकनीकी सफलता हासिल की है। उसमें भारत बहुत पिछड़ गया है। अमेरिका से जो चुनौती भारत को मिली है। यह भारत के लिए एक अवसर के रूप में सामने है। भारत सरकार को अपने सारे नियम और कानून इस तरह से बनाना होंगे। भारत के अंदर उद्योग और व्यापार के क्षेत्र में नागरिकों को स्वतंत्रता पूर्वक काम करने की स्थिति बने। तकनीकी विकास के क्षेत्र में सरकार द्वारा प्रोत्साहन दिया जाए। भारत सरकार चीन से सबक ले, पिछले तीन दशक में चीन ने जिस तेजी के साथ आर्थिक और तकनीकी के क्षेत्र में प्रगति की है। भारत व्यापार और उद्योग के मुकाबले में लगातार वैश्विक स्तर पर पिछड़ता चला जा रहा है। यदि भारत सरकार समय रहते जाग जाए ,तो कुछ ही वर्षों में चुनौतियों का सामना आसानी के साथ किया जा सकता है। इसके लिए देश में नया माहौल तैयार करना होगा। धार्मिक उन्माद से बचना होगा। युवाओं को रोजगार के अवसर उपलब्ध कराने होंगे। इस बात का ध्यान रखा जाएगा, तो भारत जल्द ही इस चुनौती से बाहर निकल आएगा। भारत आज एक बड़ी अर्थव्यवस्था है। भारत के लोग सारी दुनिया में डंका बजा रहे हैं। भारत में उन्हें वह अवसर नहीं मिल रहे हैं। पिछले 11 वर्षों में 17,10890 लोग भारतीय नागरिकता को छोड़कर विदेशों में बस गए हैं। दुनिया के अन्य देशों में जो अवसर उनके लिए हैं, वह भारत में नहीं है। इस बात का ध्यान रखते हुए सरकार को अपनी नीतियों में बदलाव करना पड़ेगा। ईएमएस/31/07/2025