ज़रा हटके
03-Aug-2025
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लंदन (ईएमएस)। अल्ट्रा-प्रोसेस्ड फूड्स धीरे-धीरे लोगों को नशे की तरह अपनी गिरफ्त में ले रहे हैं। ताजा अध्ययन में 36 देशों की करीब 300 रिसर्च का विश्लेषण किया गया, जिससे पता चला कि ये प्रोसेस्ड खाद्य पदार्थ दिमाग पर वैसा ही प्रभाव डालते हैं जैसा शराब या कोकीन जैसी ड्रग्स डालती हैं। शोध की मुख्य लेखिका एशले गियरहार्ट ने बताया कि किसी को सेब या दाल-चावल की लत नहीं लगती, लेकिन अल्ट्रा-प्रोसेस्ड फूड इस तरह डिजाइन किए जाते हैं कि वे हमारे दिमाग को तेज़ी से उत्तेजित करें और बार-बार खाने की इच्छा पैदा करें। यह प्रक्रिया उस हिस्से को एक्टिव करती है जो हमें खुशी या इनाम का अनुभव कराता है, यही कारण है कि लोग जानबूझकर भी इनसे दूरी नहीं बना पाते। न्यूरोइमेजिंग, यानी दिमाग की स्कैनिंग, से भी पुष्टि हुई कि जो लोग इन चीज़ों का अत्यधिक सेवन करते हैं, उनके दिमाग में वही बदलाव दिखते हैं जैसे किसी नशे की लत वाले व्यक्ति में होते हैं। इससे यह साफ होता है कि अल्ट्रा-प्रोसेस्ड फूड दिमागी और शारीरिक स्वास्थ्य दोनों के लिए गंभीर खतरा बन सकते हैं। दिलचस्प बात यह है कि कुछ दवाएं जो इन फूड्स की तलब को कम करती हैं, वही दवाएं नशे की लत के इलाज में भी असरदार पाई गई हैं। यह दर्शाता है कि इन दोनों प्रकार की लतों की न्यूरोलॉजिकल प्रकृति समान है। इस शोध में शामिल दूसरी लेखिका एरिका ला. फाटा ने सवाल उठाया कि जब नाइट्रस ऑक्साइड और कैफीन जैसी चीजों को मानसिक विकारों की सूची में शामिल कर लिया गया है, तो प्रोसेस्ड फूड की लत को अब तक क्यों नज़रअंदाज़ किया गया है? उनके अनुसार अब समय आ गया है कि इस विषय को उतनी ही गंभीरता से लिया जाए जितनी अन्य नशों को दी जाती है। शोधकर्ताओं ने सुझाव दिया कि स्वास्थ्य नीतियों में बदलाव लाकर इस लत को गंभीरता से पहचाना जाए। इसके लिए सरकारों, डॉक्टरों और स्वास्थ्य विशेषज्ञों को मिलकर काम करना चाहिए, साथ ही बच्चों के लिए इन खाद्य पदार्थों के विज्ञापन पर प्रतिबंध, चेतावनी लेबल और व्यापक जागरूकता अभियान चलाने जैसे कदम उठाए जाने चाहिए। सुदामा/ईएमएस 03 अगस्त 2025