ज़रा हटके
05-Aug-2025
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नई दिल्ली (ईएमएस)। खेतों में अक्सर खरपतवार की तरह दिखने वाला पौधा चिरचिटा आयुर्वेद के खजाने का एक अहम हिस्सा है। यह पौधा कई गंभीर रोगों के उपचार में उपयोगी सिद्ध हो सकता है। इसके कांटेदार बीज हैं, जो कपड़ों और जानवरों के बालों में चिपक जाते हैं। चिरचिटा की ऊंचाई आमतौर पर 1 से 3 फीट तक होती है और इसकी पत्तियां अंडाकार होती हैं। यह खासकर सड़क किनारे, खाली पड़ी जमीन या खेतों की मेंढ़ों पर बिना किसी देखरेख के उगता है। आयुर्वेदिक ग्रंथों में इसका विशेष महत्व बताया गया है। सुश्रुत संहिता में इसे घाव, सूजन और रक्तस्राव को रोकने वाली औषधि माना गया है, जबकि चरक संहिता में इसका उल्लेख फोड़े, चोट और त्वचा रोगों के इलाज में किया गया है। चिरचिटा के पत्ते, जड़, तना और बीज सभी औषधीय गुणों से भरपूर होते हैं। इसकी पत्तियों या जड़ों को पीसकर बनाया गया लेप जोड़ों के दर्द, गठिया और सूजन में राहत देने के लिए प्रयोग में लाया जाता है। यह रक्तसंचार को बेहतर बनाता है और मांसपेशियों की जकड़न को भी कम करता है। यही नहीं, इसका उपयोग दातून के रूप में भी किया जाता है। माना जाता है कि इससे दांत मजबूत होते हैं, मसूड़ों की सूजन कम होती है और मुंह की दुर्गंध भी दूर होती है। चिरचिटा के बीजों का सेवन मूत्र विकारों, पाचन समस्याओं और त्वचा रोगों में लाभदायक बताया गया है। साथ ही, इसके रस को घावों पर लगाने से घाव जल्दी भरते हैं और संक्रमण का खतरा कम होता है। यह पौधा शरीर को भीतर से साफ करने और रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने में भी सहायक माना गया है। हालांकि इसके उपयोग से पहले आयुर्वेद विशेषज्ञ से सलाह लेना जरूरी होता है, क्योंकि हर व्यक्ति का शरीर और रोग अलग होता है। सुदामा/ईएमएस 05 अगस्त 2025