क्षेत्रीय
06-Aug-2025
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धार (ईएमएस)। भाई-बहन के प्रेम का प्रतीक ये पर्व देशभर में धूमधाम से मनाया जाता है। मालवा के प्रसिद्ध ज्योतिष गुरु डॉ. अशोक शास्त्री ने बताया कि , हर साल श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को राखी का पर्व मनाया जाता है। इस दिन बहनें अपने भाईयों की कलाई में राखी बांधकर लंबी आयु और अच्छे स्वास्थ्य की कामना करती हैं। वहीं, दूसरी ओर भाई बहन की सुरक्षा का वचन देने के साथ उपहार देते हैं। श्रावण मास की पूर्णिमा तिथि 9 अगस्त को दोपहर 1 : 24 बजे तक रहेगी । रक्षाबंधन उदया तिथि के हिसाब से रक्षाबंधन का पर्व 9 अगस्त को मनाया जाएगा। डॉ. अशोक शास्त्री के अनुसार रक्षाबंधन के दिन भाईयों को राखी बांधने का शुभ मुहूर्त सुबह 5 : 35 बजे से दोपहर 1 : 24 बजे तक रहेगा। इसके बाद भाद्रपद माह की प्रतिपदा तिथि आरंभ हो जाएगी। रक्षाबंधन के दिन भद्रा काल का साया नहीं रहेगा, क्योंकि भद्रा है जो 8 अगस्त को मध्य रात्रि पश्चात 01 : 52 बजे तक रहेगी । डॉ. अशोक शास्त्री के अनुसार रक्षाबंधन पर काफी शुभ योगों का निर्माण हो रहा है। इस दिन सौभाग्य के साथ सर्वार्थ सिद्धि योग का निर्माण हो रहा है। इसके अलावा ग्रहों की स्थिति के हिसाब से नवपंचम, प्रतियुति, मालव्य, बुधादित्य जैसे राजयोगों का निर्माण होगा। ब्रह्म मुहूर्त- सुबह 4 : 22 से 5 : 04 बजे तक अभिजीत मुहूर्त- दोपहर 12 : 17 से 12 : 53 बजे तक रहेगा। सौभाग्य योग- सुबह 4 : 8 बजे से 10 अगस्त को दोपहर 2 : 15 बजे तक सर्वार्थ सिद्धि योग- 9 अगस्त को दोपहर 2 : 23 बजे तक । डॉ. अशोक शास्त्री के मुताबिक़ रक्षाबंधन मनाने के पीछे कई धार्मिक मान्यताएं प्रचलित है, द्रौपदी, मां लक्ष्मी से लेकर इंद्राणी तक संबंधित है। हिंदू ग्रंथों के अनुसार कहा जाता है कि जब असुरों और देवताओं के बीच चल रहे युद्ध में इंद्रदेव हार गए थे। तब उनकी पत्नी इंद्राणी ने उनकी सुरक्षा से दृढ़ होकर और युद्ध जीतने के लिए इंद्र की कलाई पर एक पवित्र पीला धागा बांधा था। इससे वह विजयी हुए थे। जब राजा बाली ने भगवान विष्णु से वचन लेकर उन्हें अपने साथ पातालोक में रख लिया था। ऐसे में मां लक्ष्मी ने राक्षस राजा बाली की कलाई पर राखी बांधी और उनसे उपहार के रूप में भगवान विष्णु की वापसी का अनुरोध किया था। महाभारत काल में रानी द्रौपदी ने एक बार कृष्ण की चोट को ठीक करने के लिए उनकी कलाई पर अपनी पोशाक से फाड़े हुए पीले कपड़े का एक टुकड़ा बांध दिया था। कृष्ण इस कृत्य से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने घोषणा की कि उसने उन्हें अपना भाई बना दिया है और अब उनकी रक्षा करने की जिम्मेदारी उनकी। जब दुर्धोयन के साथ चौसर में पांडव हार रहे थे, तो उन्होंने दौपद्री को भी दांव पर लगा दिया था। लेकिन वह दौपद्री को भी हार गए। ऐसे में चीर हरण के समय दौपद्री ने श्री कृष्ण को याद किया था और तब कान्हा ने दौपद्री की लाज की रक्षा की थी। रॉकी/06/08/2025