लेख
14-Aug-2025
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बीत गए इतने बरस, हुए देश आज़ाद। किसने दी कुर्बानियाँ, किसको मिला प्रसाद॥ आज़ादी के बाद से, दिखा हमें यह रूप। बड़े भवन कुछ खा गए, कुटियाओं की धूप॥ आज़ादी के बाद से, हुई कहीं पर चूक। हाथ कबूतर छोड़कर, थाम रहे बंदूक॥ आज़ादी के बाद से, हुआ निरंतर भान। निर्धन निर्धनतम हुआ, धनी अधिक धनवान॥ बहा कई का जब लहू, मिली हमें सौगात। आज बहाते लोग कुछ, लहू यहाँ बिन बात॥ फंदे पर झूला यहाँ, जब भी एक किसान। नहीं लगा आज़ाद है, मेरा हिंदुस्तान॥ आज़ादी के बाद से, यों बदला परिवेश। शूर्पणखा सा हो गया, जनकसुता का देश॥ कल वे करते आज ये, बंद और घेराव। आज़ादी के बाद से, यही हुआ बदलाव॥ आज़ादी के बाद से, हुई उन्हीं की ऐश। लाठी जिनके पास है, या है ढेरों कैश॥ आज़ादी के बाद जो, धरी रही उम्मीद। रोजे तो हमने रखे, मना रहे वे ईद॥ *** ईएमएस/14/08/2025