(निष्काम कर्म योगी अटल बिहारी वाजपेई की पुण्यतिथि पर विशेष) पाठशाला से लेकर कॉलेज तक ओजस्वी और चुटीले भाषण व वाद विवाद प्रतियोगिता में निरंतर भागीदारी ने अटल जी के व्यक्तित्व के उस पहलू को सबसे ज्यादा निखारा जो उनकी लोकप्रियता का सबसे बड़ा आधार था ।अटल जी ने वाणी की ओजस्वता के साथ कलम की तेजस्विता का बखूबी समन्वय किया,अटल जी ने पांचजन्य व राष्ट्रधर्म का संपादन भी किया। दिलचस्प बात यह है कि अटल जी सिर्फ संपादकीय ही नहीं लिखते थे ,बल्कि लखनऊ में आमीनाबाद की मारवाड़ी गली में पंडित दीनदयाल उपाध्याय के साथ राष्ट्रधर्म के बंडल भी बाधते थे।वे संयुक्त राष्ट्र में हिंदी में भाषण देने वाले पहले भारतीय नेता थे, इतना ही नहीं उन्होंने 1998में परमाणु विस्फोट का निर्णय कर भारत को नई पहचान दी, 25दिसम्बर2014को अटल जी को भारत रत्न से सम्मानित किए जाने का केन्द्र सरकार द्वारा फैसला किया गया और 27 मार्च 2015को तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने स्वयं उनके दिल्ली स्थित आवास पर पहुंचकर भारत रत्न से सम्मानित किया था, राजनीति और लोकप्रियता में हर समकालीन से काफी ऊंचे भारत रत्न से सम्मानित और तीन बार देश के प्रधानमंत्री रहे अटल बिहारी वाजपेई ने देश के आजाद होने से पूर्व और आजाद होने के पश्चात अपना संपूर्ण जीवन देश और देशवासियों के कल्याण के लिए समर्पित कर दिया उनकी वाणी से असाधारण शब्दों को सुनकर जनसामान्य उत्साहित होते रहे और उनके कार्यों से हिंदुस्तान का मस्तक ऊंचा हुआ ,को परमपिता परमेश्वर ने वह रुखियाई कभी नहीं दी जो शिखर पर बैठे लोगों में देखने को अक्सर मिलती है ।कड़वा सच तो यह है कि यही अद्भुत कला उनके जन जन का लोकप्रिय नेता होने की सबसे अहम वजह थी। व्यक्तित्व के रोम- रोम में रची बसी ठेठ भारतीय संस्कृति भोजन से लेकर व्यवहार तक ख़ालिस स्थान भारतीय संस्कार राजनीति की रपटीली राह पर सरपट चलते हुए भी साहित्य से गहरा नाता ,अनुभवों को पंक्तियों में ढाल लेने की कवित्व प्रतिभा यह सब अटल जी के ही व्यक्तित्व के आयाम थे ।इन्हीं गुणों ने उन्हें जमीनी नेता बनने में अहम भूमिका अदा की। 25 सितंबर 1924 को ग्वालियर के शिंदे की छावनी में कमल सिंह का बाग स्थित कृष्ण बिहारी वाजपेई के घर में जब अटल जी जन्मे उसे दिन क्रिसमस का दिन था। गिरजाघर की घंटियों के मध्य अटल जी के घर में थाली बजी थी । उनके पिता उत्तर प्रदेश के बटेश्वर से ग्वालियर रियासत में शिक्षक की नौकरी करने आए थे। मां कृष्णा की अटल सातवीं में संतान थे। धार्मिक और ज्योतिषी बाबा श्यामलाल वाजपेई के संस्कारों बटेश्वर मंदिर में देवी प्रार्थना और घुट्टी में मिली रामचरितमानस ने अटल जी को उतना ही धार्मिक बनाया जितना एक सामान्य भारतीय होता है ।घनाक्षरी व सवैया छंदों के महारथी पिता कृष्ण बिहारी वाजपेई ने अटल जी को जो संस्कार दिए वह बचपन से लेकर चाहे वह आपातकाल की जेल यात्रा हो या फिर राजनीतिक जीवन के उतार चढ़ाव हर जगह काम आते रहे। मध्यवर्ग की शिक्षक के बेटे अटल को चरित्र का जो पाठ पढ़ाया गया था वहां उनकी अंतिम सांस तक साथ रहा ।पिता द्वारा पारिवारिक गुरु से अटल जी की पट्टी पुजाई और फिर प्रारंभ हुई शिक्षक पिता की अपने बेटे को दीक्षा। गोरखी स्कूल से मिडिल और ग्वालियर के विक्टोरिया कॉलेज से जो वर्तमान में एम एल बी कॉलेज कहलाता है से ग्रेजुएशन किया। कानपुर के डीएवी कॉलेज से राजनीति शास्त्र से ग्रेजुएशन किया।अटल जी ने कानून की तालीम अपने पिता के साथ की। दोनों एक साथ हॉस्टल में रहते थे और एक साथ ही कालेज में जाते थे । हालांकि बीच में उन्हें कानून की पढ़ाई छोड़ने पड़ी ।अटल जब क्लास में नहीं होते तो प्रोफेसर पूछ बैठे पंडित जी आपके साहबजादे कहां है। वह जवाब देते कमरे की कुंडली लगाकर आते ही होंगे। 15 साल की आयु में ही अटल जी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़ गए थे। नारायण राव तरटे उस वक्त ग्वालियर में प्रचारक थे ।वाजपेई जी के जीवन में आए हुए सबसे महत्वपूर्ण लोगों में नारायण राव तराटे भी है ।संघ के संस्कारों में अटल जी ने बच्चन के चर्चित गीत मिट्टी का तन क्षण भर जीवन मेरा परिचय के आधार पर अपनी जग प्रसिद्ध कविता लिखी जो उन्होंने 1942 में लखनऊ के कालीचरण हाई स्कूल में लगे शिविर में पहली बार प्रस्तुत की थी। उक्त कविता थी।हिन्दू तन मन हिन्दू जीवन रग रग हिन्दू मेरा परिचय। अटल जी ने बी ए में हिंदी ,संस्कृत और अंग्रेजी तीनों साहित्य एक साथ पढे जो उन दिनों सिर्फ आगरा विश्वविद्यालय में ही पढ़ाई जाते थे ।अटल जी ने एम ए में विश्वविद्यालय में द्वितीय स्थान प्राप्त किया और अपनी वाक प्रतिभा और निखरी तथा उन्हें कानपुरिया तहजीब की ठसक के साथ कन्नौजी और बैसवारी भाषा के संस्कार मिले । किशोरवस्था में पहली बार रटकर भाषण देने की छूट होने के बावजूद अटल जी ने प्रत्युत्पन्नमति के आधार पर भाषण देने की जो गांठ बांधी थी वह फरवरी 2009 में ब्रेन स्ट्रोक होने के पूर्व तक उनके साथ रही । स्कूल से लेकर कॉलेज तक ओजस्वी और चुटीले भाषण व बाद विवाद प्रतियोगिता में निरंतर भागीदारी ने अटल जी के व्यक्तित्व के उस पहलू को सबसे ज्यादा निखारा जो उनकी लोकप्रियता का सबसे बड़ा आधार था। अटल जी की वक्तव्य शैली के कारण लाखों लोग उनके भाषणों को तन्मयता और तत्लीनता के साथ सुनते थे। अटल संयुक्त राष्ट्र में हिंदी में भाषण देने वाले पहले भारतीय नेता थे ।अटल जी ने सन 1998 में परमाणु विस्फोट का निर्णय कर भारत को नई पहचान दी ।25 दिसंबर 2014 को अटल जी को केंद्र सरकार द्वारा उनके 90 वे जन्म दिवस पर भारत रत्न से सम्मानित करने का निर्णय लिया गया और 27 मार्च 2015 अटल जी को भारत रत्न देने के लिए राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी स्वयं उनके दिल्ली स्थित शासकीय आवास पर गए थे। वाणी की ओजस्वता के साथ कलम की तेजस्विता का समन्वय किया अटल ने पांचजन्य व राष्ट्र धर्म का संपादन कर । रोचक बात यह है कि अटल जी सिर्फ संपादकीय ही नहीं लिखते थे बल्कि लखनऊ के में अमीनाबाद की मारवाड़ी गली में पंडित दीनदयाल उपाध्याय के साथ राष्ट्र धर्म के बंडल भी बांधते थे ।राष्ट्र धर्म का प्रथम अंक अटल जी ने ही निकाला था । राष्ट्रधर्म को मिली अपार सफलता के पश्चात ही प्रवेशांक निकला। पत्रकारिता से उनका संबंध बाद में देनिक स्वदेश ,काशी से प्रकाशित होने वाली पत्रिका चेतना और अल्प समय तक दैनिक वीर अर्जुन के साथ रहा।1951में श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने जनसंघ की नींव रखी तब अटल जी संस्थापक सदस्यों में से एक थे ।अक्टूबर 1951 में जनसंघ के दिल्ली में हुए प्रथम अधिवेशन के पश्चात 1954 में अटल जी ने लखनऊ से पहला लोकसभा चुनाव लड़ा लेकिन दुर्भाग्यवश वे पराजित हो गए। 1957 में मथुरा, लखनऊ और बलरामपुर से लोकसभा का चुनाव लड़ा लेकिन मथुरा और लखनऊ में वे पराजित हो गए हालांकि बलरामपुर से जीतकर वे लोकसभा में पहुंचे ।तब वह महज 33 साल के सबसे युवा सांसद थे। यह पहला मौका था जब लोकसभा में जनसंघ के चार सांसद थे। प्रतिपक्ष के नेता की उनकी भूमिका भारत ही नहीं दुनिया के सभी लोकतांत्रिक देशों के नेताओं के लिए मांडल के तौर पर मानी जा सकती है। अटल जी ने करोड़ों भारतवासी को अपने रसीले भाषणों से जिस तरह मंत्र मुग्ध किया है वैसा देश के किसी नेता ने नहीं किया। अटल की इस भाषण कला ने जवाहर लाल नेहरू तक को अपना कायल बनाया।तीसरी लोकसभा का चुनाव वे बलरामपुर से हारे लेकिन राज्य सभा में चुनकर पहुंचे। 1962से1967के दौर में युद्ध, नेहरू जी का निधन फिर लाल बहादुर शास्त्री जी के निधन की घटनाओं सहित तकरीबन 50सालों तक प्रतिपक्ष में रहने के बाबजूद उनके भाषणों या लेखों में कभी भी कटुता दिखाई नहीं पड़ी ,हालांकि उन्होंने सरकारी नीतियों की आलोचना करने या मजाक उड़ाने में कभी कोताही नहीं की। किसी भी लोकतंत्र के लिए गर्व की बात हो सकती है कि कोई नेता 60 साल राजनीति करें और उसके पूरे राजनीतिक जीवन में ऐसा एक भी उदाहरण आप न बता सके जो कटुता है या मर्यादाहीनता का पर्याय माना जा सके। प्रतिपक्ष में रहते हुए सत्ता पक्ष के उजाले को उजला कहने की उदारता कितने नेताओं में होती है ।भारतीय संसद ने उन्हें सर्वश्रेष्ठ सांसद की उपाधि उनकी इस सिद्धहस्ता की वजह से ही दी थी। प्रतिपक्ष के नेता की उनकी भूमिका भारत ही नहीं दुनिया के सभी लोकतांत्रिक देशों के नेताओं के लिए मॉडल के तौर पर मानी जाती है। अटल जी के भाषण संसदीय इतिहास की धरोहर है। चौथी लोकसभा में अटल पुनः बलरामपुर से जीते। जब 1975में इंदिरा गांधी ने इमरजेंसी लगाई तब अटल जी को जेल जाना पड़ा, जेल यात्रा ने अटल जी को राजनीति की कुछ नई नसीहतें दी और इसी दौरान कैदी जीवन की अपनी कविताएं लिखी ।1977में अटल जी विदेश मंत्री बने। इसी साल यू एन ए में उन्होंने हिंदी में भाषण दिया। कुल मिलाकर अटल जी 1957 से 1998 तक पृथक पृथक संसदीय क्षेत्रों से निर्वाचित होकर लोकसभा में पहुंचे।दो बार वे राज्य सभा सदस्य भी चुने गए। अटल जी 63सालों तक सक्रिय राजनीति में रहे। अटल जी पहले गैर कांग्रेसी प्रधानमंत्री थे। जिन्होंने 5साल सरकार चलाई। अटल बिहारी वाजपेई भाजपा के एक मात्र नेता थे जिनकी सराहना नेहरू जी करते थे। उनकी राजनीतिक परिपक्वता के कारण इंदिरा गांधी उनसे गंभीर मामलों में सलाह लिया करती थी और इसी परिपक्वता के कारण नरसिम्हा राव ने उन्हें यूं ए ई भेजा। राजनीति की रपटीली राहों पर फिसलते संभलते अटल जिस शिखर पर पहुंचे वहां पर भी उनके संस्कार साथ रहे। एक सामान्य भारतीय की तरह अपयश से भय वाजपेई जी की ताउम्र पूंजी रही।जो हजारों नेताओं की भीड़ में सबसे अलग खड़ा करती है और अजात शत्रु नेता बनती है, लेकिन संघर्ष का बोध उनके इस शिखर पर उनके पहुंचने के बाद भी उनके साथ रहा। राजनीति के अजातशत्रु भारत रत्न से सम्मानित पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई ने 16अगस्त2018की शाम तकरीबन 5 बजे 93 वर्ष की आयु में अपने गरिमा पूर्ण राजनयिक जीवन के बाद अपनी कर्मभूमि दिल्ली में अंतिम सांस ले ली हो मगर उनके आचार विचार और जीवन दर्शन को हिन्दुस्तान के सवा करोड़ देशवासी कभी भी भूल नहीं पायेंगे। (लेखक के विषय में--मध्य प्रदेश शासन से मान्यता प्राप्त स्वतंत्र पत्रकार है) (यह लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं इससे संपादक का सहमत होना अनिवार्य नहीं है) .../ 14 अगस्त /2025