लेख
16-Aug-2025
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एक प्रजातांत्रिक देश में चुनाव और निष्पक्ष न्याय ये दो प्रमुख तत्व काफी अहमियत रखते है और जब इन्ही के सामने सवालिया निशान खड़े किए जाए तो फिर प्रजातंत्र की मान्यता पर आंच आना स्वाभाविक है, आज इसी अजीब परिस्थिति से भारत गुजरने को मजबूर है। भारत के सभी विपक्षी दल इस संगीन आरोप पर एकमत है कि भारतीय न्याय पालिका और चुनाव आयोग दोनों ही निष्पक्षता की अग्निपरीक्षा में खरे नही उतर रहे है, दोनों ही प्रमुख अंगों पर सत्ता के इशारे पर काम करने का गंभीर आरोप है, यदि प्रजातंत्र को पवित्र रखने वाला उसका प्रमुख अंग न्याय पालिका गंभीर सवालों के घेरे में है और प्रजातंत्र की मुख्य कड़ी चुनाव आयोग की निष्पक्षता पर अंगुलिया उठाई जा रही है तो फिर प्रजातंत्र कैसे सही सलामत रह सकता है। कैसे प्रतिपक्षी दल किसी भी मुद्दें पर एकमत होते नही है, हर एक प्रतिपक्षी दल की ‘‘अपनी ढपली-अपना राग’’ होता है, लेकिन इस बार यह किंवदती यहां असत्य साबित हो रही है, क्योंकि चुनावी शुद्धता के सवाल पर सभी प्रतिपक्षी दल एक साथ है और सभी एक स्वर से आयोग की निष्पक्षता पर सवाल खड़े कर रहे है और इस सवाल का जन्म बिहार के मतदाता विशेष गहन पुनरीक्षण (एस.आई.आर.) की कोंख से हुआ है, प्रमुख प्रतिपक्षी दल कांग्रेस के शीर्ष नेता तथा लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष श्री राहुल गांधी जहां खुलेतौर पर चुनाव आयोग को सत्तारूढ़ भाजपा का एजेंट बता रहे है वहीं उत्तरप्रदेश की प्रमुख विरोधी पार्टी समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव भी राहुल गांधी के साथ खड़े नजर आ रहे है। कुल मिलाकर कांग्रेस व समाजवादी पार्टी दोनों के ही निशाने पर चुनाव आयोग है और उसकी शुद्धता पर तकरार छिड़ी है, राहुल गांधी ने जहां ‘वोटचोरी’ को मुख्य मुद्रा बना लिया है, वहीं अखिलेश यादव भी अपने प्रदेश में सीमित रहकर देशव्यापी मामले उठा रहे है। आज देश के राजनीतिक गलियारों में बिहार के भावी विधानसभा चुनाव और इसी के चलते मतदाता सूची में से लाखों मतदाताओं के नाम गायब कर देने के आरोपों को हवा देने का काम चल रहा है। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की राजनीतिक भूमिका और भाजपा व मोदी से उनकी निकटता भी चर्चा का विषय बनी हुई है और इसी सवाल के साथ साम्प्रदायिकता को भी जोड़ दिया गया है, मुस्लिम वोटों को लेकर सवाल खड़े किए जा रहे है। अर्थात् कुल मिलाकर इस प्रक्रिया द्वारा लोकतंत्र का खुलकर मजाब उड़ाने की तैयारी की जा रही है, क्या यह किसी प्रजातंत्रीय देश के लिए उचित माना जा सकता है? इसी मुद्दें पर इनदिनों देश की राजनीति काफी गर्म है, करीब तीन सौ सांसदों ने इसी मुद्दें पर संसद से चुनाव आयोग मुख्यालय तक मार्च भी निकाला था, अर्थात् शायद पहली बार सभी प्रतिपक्षी दल एकजुट हुए है तो वह चुनाव आयोग का कथित पक्षपात और मोदी का विरोध है। ....और यह सही भी परिलक्षित हो रहा है कि आजादी के बाद से अब तक के पचहत्तर वर्षों में पहली बार न्याय पालिका और चुनाव आयोग पर पक्षपात और सरकारी तंत्र बनने के गंभीर आरोप लगे है, सबसे बड़ा मुद्दा न्याय पालिका का है, जिस पर देश की जनता का पूरा भरोसा है। (यह लेखक के व्य‎‎‎क्तिगत ‎विचार हैं इससे संपादक का सहमत होना अ‎निवार्य नहीं है) .../ 16 अगस्त /2025