क्षेत्रीय
16-Aug-2025
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प्रदेश स्तर के नेता को जिला अध्यक्षी, कांग्रेस में समीकरणों की नई बिसात गुना (ईएमएस) । गुना। प्रदेश कांग्रेस ने शनिवार को जिला अध्यक्षों की नई सूची जारी कर दी, जिसमें गुना की कमान पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के पुत्र और राघौगढ़ विधायक जयवर्धन सिंह को सौंपी गई है। लंबे समय से संगठन में बदलाव की चर्चा चल रही थी और करीब दो महीने पहले नियुक्त पर्यवेक्षकों ने कार्यकर्ताओं और नेताओं से रायशुमारी कर रिपोर्ट सौंपी थी। इसके बाद आलाकमान ने जयवर्धन को यह बड़ी जिम्मेदारी दी। उन्हें कांग्रेस का उभरता हुआ चेहरा माना जाता है। जिले में उनकी स्वीकार्यता सबसे अधिक है और यही वजह है कि पार्टी ने उन पर भरोसा जताया। सिंधिया के गढ़ माने जाने वाले गुना में कांग्रेस को फिर से मजबूत करने की मंशा से यह नियुक्ति की गई है। वे वर्तमान में राघौगढ़ से विधायक हैं और लगातार तीसरी बार विधानसभा पहुंचे हैं। राजनीतिक सफर और व्यक्तिगत पृष्ठभूमि जयवर्धन की राजनीतिक यात्रा भी खास रही है। उनका जन्म 9 जुलाई 1986 को हुआ। शुरुआती पढ़ाई देहरादून के दून स्कूल से की। दिल्ली विश्वविद्यालय से बी.कॉम (ऑनर्स) करने के बाद उन्होंने न्यूयॉर्क के कोलंबिया विश्वविद्यालय से लोक प्रशासन में स्नातकोत्तर किया। पढ़ाई पूरी करने के बाद 2011 में राजनीति में आने की इच्छा जताई, लेकिन पिता दिग्विजय सिंह शुरू में सहमत नहीं हुए। बाद में राघौगढ़ की जनता के बीच सात दिन रहने की शर्त पूरी करने पर उन्हें राजनीति में प्रवेश की मंजूरी मिली। 2013 में उन्होंने पहली बार राघौगढ़ से चुनाव लड़ा और बड़ी जीत दर्ज की। 2018 में दोबारा विधायक बने और कमलनाथ सरकार में शहरी विकास एवं आवास मंत्री का पद संभाला। उस समय वे महज 32 वर्ष के थे और प्रदेश कैबिनेट के सबसे युवा मंत्री बने। हालांकि 2023 के विधानसभा चुनाव में उन्हें कड़ी टक्कर मिली और वे केवल 4500 मतों से जीत दर्ज कर पाए। इसके बावजूद उनकी सक्रियता और लोकप्रियता कायम रही और अब कांग्रेस ने उन्हें संगठन की कमान सौंपी है। जीतू पटवारी और कांग्रेस के समीकरण कांग्रेस आलाकमान द्वारा जयवर्धन सिंह जैसे प्रदेश स्तरीय नेता को गुना जिले की कमान सौंपे जाने को लेकर राजनीति में गहरी सुगबुगाहट है। कुछ लोग इसे कांग्रेस की संगठनात्मक मजबूती की ठोस रणनीति मान रहे हैं, जिसके तहत सिंधिया के गढ़ में कांग्रेस ने बराबरी का बड़ा चेहरा खड़ा कर दिया है। वहीं, दूसरी ओर कई राजनीतिक विश्लेषक इसे जयवर्धन सिंह का राजनीतिक डिमोशन मानते हैं। उनका कहना है कि प्रदेश स्तर पर तेजी से लोकप्रिय और सक्रिय हो रहे जयवर्धन सिंह को सीमित करने के लिए यह कदम उठाया गया, ताकि उनकी बढ़ती राजनीतिक पकड़ पर नियंत्रण रखा जा सके। सूत्रों के अनुसार उनकी बढ़ती स्वीकार्यता ने कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष जीतू पटवारी तक को सतर्क कर दिया था। यही वजह है कि आलाकमान ने न केवल जयवर्धन बल्कि कुछ अन्य नेताओं को भी जिलों की कमान देकर उनके कद को प्रदेश स्तर से नीचे खींचने का संकेत दिया है। हालांकि, कांग्रेस का एक बड़ा धड़ा इस फैसले को सिंधिया के खिलाफ सीधी रणनीति मान रहा है। उनका तर्क है कि जिस तरह सिंधिया भाजपा में केंद्रीय मंत्री बनकर अपनी पकड़ मजबूत कर चुके हैं, उसी तरह कांग्रेस ने गुना में उनके सामने उसी कद का नेता खड़ा करने की कोशिश की है। कुल मिलाकर यह नियुक्ति कांग्रेस की अंदरूनी खींचतान और भविष्य की चुनावी बिसात से जुड़ी हुई है, जिसके राजनीतिक निहितार्थ दूरगामी हो सकते हैं। गुटबाजी को साधने की चुनौती गुना कांग्रेस में लंबे समय से गुटबाजी सबसे बड़ी चुनौती रही है। यहां आधा दर्जन गुट सक्रिय बताए जाते हैं। सिंधिया के कांग्रेस छोडक़र भाजपा में जाने के बाद से ही संगठन में असंतुलन और बढ़ गया। इससे कार्यकर्ता असमंजस की स्थिति में रहे और पार्टी कमजोर होती गई। जयवर्धन सिंह के जिलाध्यक्ष बनने से अब यह उम्मीद है कि गुटबाजी को साधने और सभी गुटों को एकजुट करने का प्रयास सफल हो सकेगा। उल्लेखनीय है कि 2020 में सिंधिया के भाजपा में जाने के बाद से कांग्रेस लगातार यहां संगठन को खड़ा करने की कवायद कर रही थी। जयवर्धन का युवा चेहरा, सक्रियता और परिवार की राजनीतिक विरासत कांग्रेस को इस मिशन में मददगार साबित हो सकती है। कांग्रेस कार्यकर्ताओं में उत्साह, भाजपा के लिए चुनौती जिले में कांग्रेस कार्यकर्ताओं के बीच जयवर्धन की नियुक्ति को लेकर उत्साह है। उनका मानना है कि उनकी सक्रियता और संगठनात्मक क्षमता से कांग्रेस का जनाधार और मजबूत होगा। वहीं, राजनीतिक जानकारों का कहना है कि भाजपा के लिए यह नियुक्ति बड़ी चुनौती साबित हो सकती है, क्योंकि गुना में जयवर्धन जैसे युवा और ऊर्जावान नेता के सामने भाजपा को अपने संगठन और नेतृत्व को और अधिक मजबूत करना होगा। कुल मिलाकर, जयवर्धन सिंह की यह नियुक्ति न केवल गुना बल्कि प्रदेश की राजनीति में भी अहम मोड़ साबित हो सकती है। यह देखना दिलचस्प होगा कि वे इस जिम्मेदारी को किस तरह निभाते हैं और कांग्रेस के लिए जिले में किस हद तक नई ऊर्जा और मजबूती लेकर आते हैं। सीताराम नाटानी (ईएमएस)