उज्जैन (ईएमएस)। आज पर्वाधिराज पर्युषण पर्व का प्रथम दिवस है आज का स्वर्णिम सूर्योदय एक नया उल्लास और प्रकाश लेकर उपस्थित हुआ है हमें स्वागत करना है इस अनमोल अलबेले अतिथि का ।यह अतिथि ऐसा है जो हमारे कर्मों के कचरे को लेकर जाता है और क्षमा के हीरे मोती देकर जाता है इसका स्वागत करना है तप के दीप सजाकर । सामायिक के स्वस्तिक बनाकर। पौषध की रंगोली सजाकर इसे हृदय मंदिर में प्रवेश देना है यह आठ दिन हमारे लिए साधना का शिविर है यहां लिया गया प्रशिक्षण वर्षभर जीवन को संचालित करता है इस संदर्भ में साध्वी श्री ने पर्युषण के कर्तव्यों की व्याख्या करते हुए कहा की अमारि प्रवर्तन अर्थात अहिंसा को जीवन में केंद्र स्थान में स्थापित करना है महावीर का दर्शन त्याग प्रधान है धर्म की साधना सुविधा और अनुकूलता से नहीं त्याग और सहिष्णुता से संपन्न होती है इन दिनों में हमें शरीर से संबंधित समस्त सुख सुविधाओं के साधन एवं प्रसाधन सामग्री का त्याग करके केवल आत्मा को तप त्याग से श्रृंगार करना है साध्वी श्री ने कहा अहिंसा प्रत्येक धर्म का प्राण है शरीर में जो महत्व प्राणों का है धर्म में वह महत्व अहिंसा का है हम भाग्यशाली है कि हमें वितराग का धर्म मिला है हमें इन आठ दिनों में जीवन जीने की कला सीखनी ताकि हम वास्तविक अर्थ में जैन बन सके। समाज अध्यक्ष श्री अशोक कोठारी ने बताया कि पर्युषण पर्व के अंतर्गत श्री अवंती पार्श्वनाथ मंदिर में विद्युत साज सज्जा के साथ आकर्षक अंगी में प्रभु पार्श्व के विशेष अंग रचना में दर्शन प्राप्त होगे। श्री अवंती पार्श्वनाथ जैन मूर्तिपूजक ट्रस्ट के समस्त पदाधिकारियों ने पर्युषण पर्व पर धर्म लाभ लेने का अनुरोध किया है। ईएमएस / 20 अगस्त 2025