नई दिल्ली (ईएमएस)। आयुर्वेद में बासी भोजन को पुनःउष्णीत यानी बार-बार गर्म किया हुआ भोजन कहा गया है। चरक संहिता में स्पष्ट रूप से उल्लेख है कि “नवन्नं बलवर्धनम्, पूतिमन्नं रोगकरम्” अर्थात ताज़ा भोजन बल और ऊर्जा को बढ़ाता है, जबकि बासी भोजन शरीर में रोगों को जन्म देता है। विशेषज्ञों के अनुसार बासी भोजन पचने में भारी होता है। इसमें आम (टॉक्सिन्स) बनने की संभावना अधिक रहती है और बार-बार गर्म करने की वजह से इसमें मौजूद प्राकृतिक रस और पोषण पूरी तरह नष्ट हो जाते हैं। यही कारण है कि बासी खाना शरीर को लाभ देने के बजाय नुकसान पहुंचाता है और इससे गैस, कब्ज़, अपच जैसी दिक्कतें हो सकती हैं। लंबे समय तक नियमित रूप से बासी भोजन करने से पाचन तंत्र कमजोर पड़ सकता है और रोग प्रतिरोधक क्षमता पर भी असर पड़ता है। हालांकि आयुर्वेद में कुछ अपवाद भी बताए गए हैं। जैसे कि पकाए हुए चावल अगर रातभर पानी में भिगोकर रखे जाएं तो सुबह उनका सेवन स्वास्थ्य के लिए लाभकारी माना जाता है। यह प्रोबायोटिक की तरह काम करता है और आंतों के स्वास्थ्य को बेहतर बनाता है। इसी तरह, एक दिन पुराना दही अगले दिन और भी गुणकारी माना गया है। ऐसे उदाहरण बताते हैं कि हर बासी भोजन नुकसानदायक नहीं होता, बल्कि कुछ खास परिस्थितियों में उसका सेवन लाभकारी भी हो सकता है। विशेषज्ञों का कहना है कि यदि कभी मजबूरी में बासी भोजन करना पड़े तो उसमें थोड़ी अदरक, काली मिर्च या नींबू डालकर खाना चाहिए। ये प्राकृतिक तत्व पाचन को आसान बनाते हैं और भोजन के दुष्प्रभाव को कुछ हद तक कम कर देते हैं। आयुर्वेद का स्पष्ट मत है कि ताज़ा भोजन ही औषधि है और बासी भोजन रोग का कारण। आधुनिक जीवनशैली में जहां अक्सर लोग सुविधा के लिए भोजन को स्टोर कर अगले दिन इस्तेमाल करते हैं, वहां यह समझना ज़रूरी है कि ताज़ा भोजन ही शरीर को वास्तविक ऊर्जा और सेहत प्रदान करता है। सुदामा/ईएमएस 01 सितंबर 2025