ज़रा हटके
05-Sep-2025
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कैनबरा,(ईएमएस)। ऑस्ट्रेलिया के वैज्ञानिकों ने चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में एक बड़ी सफलता हासिल कर ली है। क्वींसलैंड विश्वविद्यालय के फ्रेजर इंस्टीट्यूट की टीम ने छह सालों की कड़ी मेहनत के बाद लैब में ऐसी इंसानी त्वचा तैयार की है, जो न केवल जीवित त्वचा जैसी दिखती है, बल्कि महसूस करने की क्षमता भी रखती है। यह दुनिया का पहला ‘ह्यूमन स्किन ऑर्गेनॉइड’ है, जिसमें अपनी रक्त आपूर्ति, कोशिकाएं, रक्त वाहिकाएं और रोमकूप भी मौजूद हैं। इस खोज की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसे मानव त्वचा कोशिकाओं को स्टेम सेल में रीप्रोग्राम कर विकसित किया गया है। इससे पहले तक बनाए गए त्वचा मॉडल केवल एक पतली परत और सीमित कोशिकाओं तक ही सिमित थे। लेकिन नया मॉडल अधिक जटिल और जीवंत है, जो प्राकृतिक त्वचा की कार्यप्रणाली को करीब से दोहराता है। वैज्ञानिकों का कहना है कि यह तकनीक दुर्लभ आनुवंशिक बीमारियों के अध्ययन और नए इलाजों के विकास में क्रांतिकारी साबित होगी। खासतौर पर सोरायसिस, एटॉपिक डर्मेटाइटिस और स्क्लेरोडर्मा जैसे सामान्य रोगों के साथ-साथ एपिडर्मोलाइसिस बुलोसा (ईबी) जैसी दुर्लभ बीमारियों में, जो ‘बटरफ्लाई डिज़ीज़’ के नाम से जानी जाती है। इस बीमारी में मरीज की त्वचा तितली के पंखों जितनी नाजुक हो जाती है। दुनिया भर में हर साल करीब 3 लाख मेलानोमा और 12 से 63 लाख गैर-मेलानोमा त्वचा कैंसर के मामले सामने आते हैं। इनमें सबसे अधिक मामले क्वींसलैंड में दर्ज होते हैं। वैज्ञानिकों का मानना है कि भविष्य में यह तकनीक जलने, गंभीर चोट और त्वचा कैंसर जैसी स्थितियों में स्किन ग्राफ्टिंग के लिए नई उम्मीद बन सकती है। सबसे खास बात यह है कि नए विकसित किए गए ऑर्गेनॉइड्स केवल सुरक्षा परत की तरह नहीं होंगे, बल्कि इनमें संवेदनशीलता, बाल और स्वेद ग्रंथियां भी मौजूद होंगी। यानी कि प्रत्यारोपित की गई त्वचा न केवल शरीर को ढकेगी बल्कि मरीज को वास्तविक त्वचा जैसी अनुभूति भी कराएगी। हालांकि, इंसानी उपयोग तक पहुंचने से पहले इस तकनीक को अभी कई और प्रयोगों और जटिल चरणों से गुजरना होगा। लेकिन वैज्ञानिकों का मानना है कि यह उपलब्धि चिकित्सा विज्ञान के लिए भविष्य में एक नए युग की शुरुआत कर सकती है। हिदायत/ईएमएस 05 सितंबर 2025