लेख
14-Sep-2025
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- विश्वेश्वरैया का सपना और आज की सफलता (अभियंता दिवस (15 सितम्बर) पर विशेष) इंजीनियरिंग अब एक बेहद विस्तृत क्षेत्र है। वर्तमान समय में देश में कई महत्वपूर्ण विषयों में इंजीनियरिंग की पढ़ाई कराई जाती है। प्रतिवर्ष 15 सितम्बर को भारत में ‘इंजीनियर्स डे’ (अभियंता दिवस) मनाया जाता है और आज के समय में अभियंता दिवस मनाने का उद्देश्य भारत में विद्यार्थियों को इस क्षेत्र में आने के लिए प्रेरित करना भी है। इंजीनियर अपनी कुशलता से विभिन्न प्रकार के निर्माण कार्यों को गति प्रदान कर देश को समृद्ध और विकसित बनाने में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। राज्य तथा देश के विकास में इंजीनियरों के महत्वपूर्ण योगदान के चलते ही भारत आज इंजीनियरिंग तथा आईटी के क्षेत्र में दुनिया का अग्रणी देश है। सही मायनों में देश के विकास के धुरी इंजीनियर ही हैं, जिनका देश के विकास में सबसे महत्वपूर्ण योगदान होता है। दरअसल आपदा प्रबंधन से लेकर निर्माण तक कोई भी कार्य इंजीनियरों के बिना सम्पन्न नहीं हो सकता। मानव जीवन में रचनात्मक बदलाव का श्रेय इंजीनियरों को ही जाता है। देश की आजादी के बाद प्रतिभावान इंजीनियरों ने नए भारत के निर्माण तथा विकास में उल्लेखनीय योगदान दिया है। शहरों तथा गांवों के समग्र विकास के लिए सड़कों, पुलों, सिंचाई जलाशयों सहित अधोसंरचना के निर्माण के लिए निरंतर कार्य हो रहे हैं। देश में प्रतिवर्ष अभियंता दिवस इसीलिए मनाया जाता है ताकि देशभर के इंजीनियरों को प्रोत्साहित किया जा सके और हमारे इंजीनियर अपने ज्ञान और कौशल की बदौलत देश को तरक्की की नई राह पर आगे ले जाएं। इंजीनियरिंग के बारे में अमेरिका के जाने-माने इंजीनियर हेनरी पेट्रोस्की ने कहा था कि विज्ञान का अर्थ है जानना जबकि इंजीनियरिंग का अर्थ है करना अथवा करके दिखाना। भारत के महान अभियंता और भारत रत्न से सम्मानित मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया के जन्मदिन को ही भारत में इंजीनियर्स डे के रूप में मनाया जाता है, जो वास्तव में अभियंताओं का संकल्प दिवस माना जाता है। इस वर्ष यह दिवस ‘डीप टेक और इंजीनियरिंग उत्कृष्टता: भारत के टेकएड को आगे बढ़ाना’ थीम के साथ मनाया जा रहा है, जो भारत की तकनीकी यात्रा में एक नया अध्याय जोड़ रही है। भारत के महान इंजीनियरों में से एक मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया द्वारा इंजीनियरिंग के क्षेत्र में दिया गया असाधारण योगदान अविस्मरणीय है, जिन्हें भारतीय सिविल इंजीनियरिंग का जनक तथा आधुनिक भारत का विश्वककर्मा भी कहा जाता है। देशभर में बने कई नदियों के बांधों और पुलों को सफल बनाने के पीछे कर्नाटक में मैसूर के कोलार जिले में 15 सितम्बर 1860 को जन्मे विश्वेश्वरैया का बहुत बड़ा योगदान रहा। एक इंजीनियर के रूप में उन्होंने देश में मैसूर में कृष्णाराज सागर बांध, पुणे के खड़कवासला जलाशय में बांध, ग्वालियर में तिगरा बांध इत्यादि कई महत्वपूर्ण बांध बनवाए। हैदराबाद शहर को बनाने का पूरा श्रेय भी ‘फादर ऑफ मॉडर्न मैसूर स्टेट’ कहे जाने वाले विश्वेश्वरैया को ही जाता है। दरअसल मैसूर सरकार के साथ मिलकर उन्होंने मैसूर संदल ऑयल एंड सोप फैक्टरी, मैसूर आयरन एंड स्टील फैक्ट्री, मैसूर चैम्बर्स ऑफ कॉमर्स, स्टेट बैंक ऑफ मैसूर, विश्वेश्वरैया कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग, परजीवी प्रयोगशाला, श्री जयचमराजेंद्र पॉलीटेक्निक संस्थान, बैंगलोर एग्रीकल्चरल यूनिवर्सिटी, सेंचुरी क्लब इत्यादि कई फैक्ट्रियों और शैक्षणिक संस्थानों की स्थापना करवाई थी। विश्वेश्वरैया द्वारा शुरू की गई बहुत सी परियोजनाओं के कारण देश आज गर्व का अनुभव करता है। उन्होंने एक बाढ़ सुरक्षा प्रणाली तैयार की थी, जिसके बाद वे देशभर में विख्यात हो गए थे। विशाखापत्तनम बंदरगाह की समुद्री कटाव से सुरक्षा के लिए एक प्रणाली विकसित करने में भी उन्होंने बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। घर-घर में प्राकृतिक जल स्रोतों से पानी पहुंचाने की व्यवस्था करने के अलावा गंदे पानी की निकासी के लिए नाली-नालों की समुचित व्यवस्था भी विश्वेश्वरैया ने ही की थी। तिरुमला और तिरुपति के बीच सड़क निर्माण के लिए योजना को अपनाने में उन्होंने बड़ी भूमिका निभाई थी। उनके इन प्रयासों ने ही आधुनिक भारत की रचना करने के साथ देश को एक नया रूप भी प्रदान किया। 1955 में उन्हें सर्वाेच्च भारतीय सम्मान ‘भारत रत्न’ से सम्मानित किया गया। इंजीनियरिंग के क्षेत्र में एम विश्वेश्वरैया के उल्लेखनीय योगदान के मद्देनजर वर्ष 1968 में उनकी जन्मतिथि को भारत सरकार द्वारा ‘अभियंता दिवस’ घोषित किया गया। तभी से प्रतिवर्ष 15 सितम्बर को अभियंता दिवस मनाया जाता है। विश्वेश्वरैया की जयंती पर मनाया जाने वाला यह दिवस वास्तव में देश के विकास में योगदान देने और देश का मान बढ़ाने वाले इंजीनियरों के सम्मान में समर्पित होता है। शुरुआती पढ़ाई मैसूर में करने के बाद विश्वेश्वरैया ने 1881 में मद्रास यूनिवर्सिटी के सेंट्रल कॉलेज से बीए की परीक्षा उत्तीर्ण की। उसके बाद मैसूर सरकार से उन्हें सहायता मिली और उन्होंने पूना के साइंस कॉलेज में इंजीनियरिंग के लिए दाखिला लिया। 1883 की एल.सी.ई. और एफ.सी.ई. परीक्षा में उन्होंने प्रथम स्थान हासिल किया और उनकी योग्यता को देखते बॉम्बे सरकार ने उन्हें नासिक में सहायक अभियंता के पद पर नियुक्त किया। एक इंजीनियर के रूप में उसके बाद उन्होंने अनेक अद्भुत कार्यों को अंजाम दिया। विश्वेश्वरैया एक आदर्शवादी और अनुशासन प्रिय व्यक्ति थे, जो अपने हर कार्य को परफैक्शन के साथ करते थे। 92 वर्ष की आयु में भी वे बिना किसी सहारे के चलते थे और सामाजिक तौर पर सक्रिय रहते थे। कोई भाषण देने से पहले वे स्वयं उसे लिखते थे और फिर कई बार उसका अभ्यास करते थे। अपनी योग्यता से उन्होंने बड़े-बड़े ब्रिटिश इंजीनियरों के समक्ष भी अपनी योग्यता और प्रतिभा का लोहा मनवाया। 1905 में उन्हें ब्रिटिश शासन द्वारा ‘कमांडर ऑफ द ऑर्डर ऑफ द इंडियन एंपायर’ से सम्मानित किया गया था। विश्वेश्वरैया वर्ष 1912 से 1918 तक मैसूर के 19वें दीवान रहे। 1903 में विश्वेश्वरैया ने पुणे के खड़कवासला जलाशय में ऐसा बांध बनवाया, जिसमें इस्पात के ऐसे दरवाजे थे, जो बाढ़ के दबाब को भी झेल सकते थे और इससे बांध को भी कोई नुकसान नहीं पहुंचता था। उस बांध की सफलता के बाद उन्होंने ग्वालियर में तिगरा बांध भी बनवाया। 1932 में कावेरी नदी पर बने कृष्णा राज सागर बांध के निर्माण परियोजना में वे चीफ इंजीनियर थे। हालांकि उस बांध के निर्माण का कार्य बेहद कठिन कार्य था क्योंकि उस समय देश में सीमेंट का उत्पादन नहीं होता था लेकिन दृढ़ इरादों के धनी विश्वेश्वरैया ने इंजीनियरों के साथ मिलकर सीमेंट से कहीं ज्यादा मजबूत ‘मोर्टार’ तैयार किया और उससे उस बांध का निर्माण कराया, जिसमें कावेरी, हेमावती और लक्ष्मण तीर्थ नदियां आपस में मिलती है। उस समय इस बांध को एशिया का सबसे बड़ा बांध कहा जाता था। इंजीनियरिंग के क्षेत्र में ऐसे ही अद्भुत कार्यों के कारण विश्वेश्वरैया के जन्मदिन को उन्हें सम्मान प्रदान करने के उद्देश्य से अभियंता दिवस के रूप में मनाया जाता है। 14 अप्रैल 1962 को 101 वर्ष की आयु में विश्वेश्वरैया का निधन बेंगलुरू में हुआ। भारत में जहां प्रतिवर्ष 15 सितम्बर को अभियंता दिवस मनाया जाता है, वहीं कई अन्य देशों में भी यह दिवस अलग-अलग अवसरों पर मनाया जाता है। यह दिवस ईरान में 24 फरवरी, बेल्जियम में 20 मार्च, आइसलैंड में 10 अप्रैल, बांग्लादेश में 7 मई, पेरू में 8 जून, इटली में 15 जून, अर्जेंटीना में 16 जून, मैक्सिको में 1 जुलाई, कोलम्बिया में 17 अगस्त, रोमानिया में 14 सितम्बर और तुर्की में 5 दिसम्बर को मनाया जाता है। वैसे भारत सहित सभी देशों में इस दिवस के आयोजन का मूल उद्देश्य अपने देश के इंजीनियरों के प्रति सम्मान व्यक्त करना तथा उनके कार्य की सराहना करना ही है। (लेखक साढ़े तीन दशक से पत्रकारिता में निरंतर सक्रिय वरिष्ठ पत्रकार हैं) ईएमएस / 14 सितम्बर 25