- 68 कोर्स 176 विद्यार्थी,15 शिक्षकों के सहारे विश्वविद्यालय - किसी भी मानदंड का पालन नहीं भोपाल (ईएमएस)। मध्य प्रदेश अजब गजब है। इसकी पुष्टि मध्य प्रदेश में चल रहे अटल बिहारी वाजपई हिंदी विश्वविद्यालय से होती है। हिंदी में उच्च शिक्षा की पढ़ाई कराने के लिए पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई के नाम पर हिंदी दिवस पर इस विश्वविद्यालय को बड़े जोर-शोर से शुरू किया गया था। 2012-13 से यह विश्वविद्यालय कार्यरत है। एक दशक से ज्यादा हो जाने के बाद भी इस विश्वविद्यालय में छात्रों की संख्या हर साल घटती चली जा रही है। विश्वविद्यालय द्वारा 68 कोर्स शुरू किए गए हैं। 231 को शुरू करने का लक्ष्य विश्वविद्यालय ने बनाया था। वर्ष 2025-26 में मात्र 174 नए छात्रों ने प्रवेश लिया है। इससे यहां की पढ़ाई के बारे में अंदाजा लगाया जा सकता है। सबसे बडे आश्चर्य की बात यह है,68 विषयों को पढाने के लिए मात्र 15 शिक्षक विश्वविद्यालय में काम कर रहे हैं। आसानी से समझा जा सकता है जिन विद्यार्थियों ने यहां प्रवेश लिया है। उन्हें किस तरह की शिक्षा मिल रही होगी। विश्वविद्यालय को शुरू करने के लिए 450 करोड रुपए का बजट विश्वविद्यालय द्वारा मांगा गया था। सरकार ने 157 करोड रुपए स्वीकृत किए थे। एक दशक से ज्यादा समय बीत जाने के बाद भी अभी तक विश्वविद्यालय को मात्र 50 करोड रुपए की धन-राशि मिली है। मध्य प्रदेश सरकार से हर साल लगभग चार करोड रुपए की ग्रांट विश्वविद्यालय को मिलती है। जो विभिन्न खर्चों और वेतन में खर्च हो जाती है। जो विद्यार्थी यहां पर प्रवेश लेते हैं। वह सब भगवान के भरोसे शिक्षा प्राप्त कर डिग्री ले लेते हैं। पिछले 12 वर्षों में इस विश्वविद्यालय में मात्र 4973 विद्यार्थियों ने प्रवेश लिया है। उच्च शिक्षा के लिए विभिन्न विषयों के लिए हिंदी में जो पाठ्यक्रम तैयार किए जाने थे। वह भी अभी तक तैयार नहीं हो पाए हैं। हिंदी भाषा में उच्च शिक्षा और शोध को बढ़ाने के लिए इस विश्वविद्यालय की स्थापना की गई थी। यह विश्वविद्यालय सरकार की लाल फीताशाही का शिकार होकर कछुए की तरह चल रहा है। प्रारंभ के 5 वर्षों में ऐसा लगता था। अटल बिहारी वाजपई हिंदी विश्वविद्यालय, हिंदी में उच्च शिक्षा के लिए बड़ी तेजी के साथ आगे बढ़ेगा। हिंदी भाषी राज्यों के लिए शिक्षा का बहुत बड़ा केंद्र बनेगा। जैसे-जैसे समय बीतता जा रहा है। उसके साथ ही यह आशा खत्म होती जा रही है। सरकार ने अटल बिहारी वाजपई हिंदी विश्वविद्यालय को, हिंदी के नाम पर प्रशंसा के रूप में किया जा रहा है। कुछ लोगों के भरण पोषण के लिए यह विश्वविद्यालय चल रहा है। वर्तमान स्थिति को देखते हुए यही लग रहा है। एसजे / 14 सितम्बर 25