ब्रह्माकुमारीज़ संस्था के महासचिव रहे बीके निर्वेर भाई इतने सहज व सरल थे कि जब भी मैं माउंट आबू जाता और उनके आवास पर जाकर मिलने की इच्छा होती तो वे बड़े स्नेह व सम्मान के साथ मिलते थे।मैंने उन्हें अपनी समय समय पर कई पुस्तकें भेंट की तो वे बड़े चाव से उन्हें पढ़ते थे।उन्होंने एक बार स्वयं पर लिखी एक पुस्तक मुझे दी और उसमें छपे यादगार फोटोज के बारे में विस्तार से बताया।वे भरपूर सौगात देना भी नही भूलते थे।मेरी उनसे जब भी मुलाकात हुई तो कविराज बीके विवेक भाई ही माध्यम बने।वे ही अपनी गाड़ी में बैठाकर ले जाते और फिर सहजता से हमारी मुलाकात करा देते,इस मुलाकात में निर्वेर भाई शिव बाबा याद है न पूछना ,कभी नही भूलते थे। उनका जन्म 20 नवंबर सन 1938 को पंजाब में हुआ था।वे एक अच्छे सुसंस्कृत और धार्मिक हिंदू परिवार से थे। वे हाई स्कूल में रहते हुए स्वामी विवेकानंद और स्वामी रामतीर्थ की रचनाएं पढ़ते थे। इससे उनमें अच्छे संस्कार आए और आध्यात्मिक सत्य को जानने की इच्छा जागृत हुई। वे पंजाब में पले-बढ़े और उन्होंने अपना स्कूली जीवन सुचारू रूप से बिताया। भारत की आज़ादी के बाद उन्होंने कॉलेज से स्नातक पास की और फिर नौ साल तक भारतीय नौसेना में सेवा की, जहां उन्होंने इलेक्ट्रॉनिक्स इंजीनियर के रूप में प्रशिक्षण प्राप्त किया।सन 1959 की बात है, जब निर्वेर भाई अपने गृह राज्य पंजाब में थे, तब उनके क्षेत्र में ब्रह्माकुमारी केंद्र खोला गया था।निर्वेर भाई एक आध्यात्मिक साधक होने के नाते संस्थान की कक्षा में भाग लेने गए ,तब से वह संस्थान से जुड़े और संस्थान के इतने बड़े पद पर रहे।सन 1982 में, उन्होंने संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय में आयोजित निरस्त्रीकरण पर दूसरे विशेष सत्र में विश्वविद्यालय का प्रतिनिधित्व किया, जहां उन्होंने आधिकारिक तौर पर संयुक्त राष्ट्र महासचिव जेवियर पेरेज़ डी कुएलर और अन्य गणमान्य व्यक्तियों से मुलाकात की।सन 1999 में इंटरनेशनल पेंगुइन पब्लिशिंग हाउस द्वारा राइजिंग पर्सनालिटीज ऑफ इंडिया अवार्ड से उन्हें नवाजा गया। सन 2001 में गुजरात के राज्यपाल द्वारा गुजरात गौरव पुरस्कार के तहत मोरारजी देसाई शांति शिक्षा अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार वर्ष 2001 दिया गया। निर्वेर भाई एक पवित्र स्वभाव और दयालु हृदय से संपन्न शख्सियत थे।वह लोगों को सम्मान, शांति और कल्याण का जीवन जीने में मदद करने के उद्देश्य से समाज की सेवा के लिए हमेशा तैयार रहते थे।पिछले वर्ष लंबी बीमारी के बाद 18 सितंबर की रात साढ़े ग्यारह बजे अहमदाबाद में उन्होंने अंतिम सांस ली थी।बाद में उनका अंतिम संस्कार माउंट आबू में किया गया।लेकिन आज भी उन्हें उनके चाहने वाले भुला नही पाए।उनके द्वारा की गई ईश्वरीय सेवा व राजयोग साधना सदैव याद रहेगी।ब्रह्माकुमारीज़ संस्था के विश्वव्यापी विस्तार में उनकी अहम भूमिका रही है। डॉ श्रीगोपाल नारसन /19 सितंबर2025