विश्व में देवभूमि के नाम से विख्यात हिमाचल में बाढ़ व भूस्खलन की घटनांए निर्बाध हो रही हैं।किन्नौर से लेकर भरमौर तक बेरहम प्रकृति के तांडव की एक व्यापक व भयावह त्रासदी के बाद धीरे धीरे जीवन पटरी पर लौटने लगा था लेकिन बेरहम बरसात की रफतार थमने का नाम नहीं ले रही है मंडी ,कुल्लु,चंबा,सरकाघाट,में बरसात का कहर लगातार जारी है।बरसात ने बुजुर्गों से लेकर अबोध ब मासूम बच्चों को काल के गाल में समा लिया है बरसात का यह खौफनाक मंजर बहुत ही खतरनाक होता जा रहा है। ताजा घटनाक्रम में 16 सितंबर 2025 को मंगलवार को पहली घटना धर्मपुर में सोन खडड में आई बाढ़ से दस साल बाद तबाही की इबारत लिखी है भारी बरसात व बादल फटने से धर्मपुर में बस अडडे में भंयकर व भयावह तबाही हुई है लगभग 20 बसें क्षतिग्रस्त हो चुकी हंै तथा बस अडडे में दुकानों को भी क्षति हुई है। साल 2015 में भी सोन खडड में आई बाढ़ से काफी नुक्सान हुआ था। बीती घटनाओं से सबक सीख होता तो आज यह मंजर न होता लेकिन एक बार सोन खडड का रौद्र रुप बस अडडे को तबाह कर गया। दस साल बाद फिर से बाढ़ का यह मंजर हुआ है। दूसरी घटना में संुदर नगर के निहरी में भूस्खलन होने से परिवार के तीन लोगों की मौत हो गई मृतकों में दो महिलाएं और एक आठ माह के बच्चे की मौत हो गई। यह त्रासदी कब थमेगी हर जिला में लाशों के अंबार लग रहे हैं।सराज,निरमंड ,सैंज में बहुत मानवीय त्रासदीयां हो चुकी हैं। पिछले तीन महीनों से बरसात की यह रफतार सैंकड़ों लोगों का जीवन लील चुकी है।बाढ़ में दब चूके लोग अब तक नहीं मिल सके हैं। त्रासदी में खोये अपनों के गम में रात दिन रोते रहे लोगों की आखों के आंसू सूख चुके हैं आखें पथरा गई हैं क्योकि आखों के सामने सब उजड़ गया आशियाने उजड़ चुके हैं। अपनों को खोने का गम क्या होता है यह वही जान सकता है जिसने आखों के सामने अपनों को बहते देखा हो। तिनका तिनका बिखरा है अब मुआबजा मिलेगा तभी नए आशियाने बन सकते हैं। उम्र भर की पसीने की कमाई से बनाए घर तबाह हाक गए। पल भर में सब तबाह हो गया आलिशान आशियाने मिटटी में मिल गए अब मलवे के ढेर ही बचे हैं। 30 जून से उथल पुथल मची हुई है। सराज से शुरु हुए त्रासदी के आगाज का अंजाम हर जिला भुगत रहा है। प्रकृति के प्रकोप से कोई भी जिला अछूता नहीं रहा है।विकास के नाम पर पहाड़ों को छलनी करने से मानव बाज नही आ रहा है और सजा भुगत रहा है।प्रकृति से खिलवाड़ की कीमत चुकानी ही पडेगी।पहाड़ खोखले होते जा रहे हैं पहाड़ों की बुनियादें हिल चुकी हैं और पहाड़ दरक रहे हैं। अंधाधुध खनन से पहाड़ों को काटा जा रहा है नतीजन पूरे के पूरे पहाड़ जमीन पर धराशायी हो रहे है और तबाही मचा रहे हैं। बरसात के कहर ने जनजीवन अस्त व्यस्त हो चुका है।हजारों लोग मौत के मुहं में समा चुके हैं।बरसात के रौद्र रुप से हर तरफ तबाही का मंजर हुआ है। आज मानव अपनी करनी पर पछतावा कर रहा है लेकिन अब कोई चारा नजर नहीं आ रहा है। लाचार व बेसहारा हो चुका मानव अब आंसू बहा रहा है।मानव अपनी गलतियों का नतीजा भुगत रहा है। काश पूर्व में यह गलतियां न की होती तो आज यह दुर्गति ना होती मगर माया में अंधा हो चुका इनसान बेहोश हो चुका था तब तक होश आया सब कुछ तबाह हो गया अब अपने किए कर्मौं का फल प्राप्त कर रहा है। प्रतिवर्ष प्राकृतिक आपदाएं अपना जलवा दिखाती रहती है तो कभी बाढ का रौद्र रुप जिंदगियां लीलता है।कहते हैं कि प्राकृतिक आपदाओं को रोक तो नहीं सकते परन्तु अपने विवेक व ज्ञान से अपने आप को सुरक्षित कर सकते हैं।देश के हर राज्य में बरसात का कहर बरप रहा है। प्रतिवर्ष लाखों लोग आपदा का दंश झेल रहे हैं।हादसों में लोग अपंग हो रहे हैं बच्चे अनाथ होते जा रहे है।प्रकृति से छेड़छाड़ बंद करनी होगी तभी इन हादसों पर रोक लग सकती है। अगर अब भी प्रकृति से खिलवाड़ बंद नहीं किया तो मानव को ऐसी सजाएं मिलती रहेगी। आपदाओं से सबक सीखना चाहिए ताकि आने वाले भविष्य को सुऱिक्षत किया जा सके। हर त्रासदी के बाद बचाव पर चर्चा होती है लेकिन ऐसी त्रासदियां रुकती नहीं हैं। प्रकृति के इस विनाशकारी विभीषिका से बहुत मानवीय तबाही हो रही हैं।परिवार के परिवार उजड़ गए हैं। देश के हर गांव व शहर में बरसात का कहर बरपता जा रहा है।प्रकृति ने मानव को समय समय पर आगाह किया लेकिन आधुनिक मानव मनमानी कर रहा है ओर असमय ही काल के गाल में समाता जा रहा है। मानव को इन त्रासदियों को अनदेखा नहीं करना चाहिए।सर्तकता बरतनी चाहिए कुदरत से छेड़छाड़ पूर्ण रुप से बंद करनी होगी तभी इन हादसों पर रोक लग सकती है। (वरिष्ठ पत्रकार) (यह लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं इससे संपादक का सहमत होना अनिवार्य नहीं है) .../ 19 सितम्बर /2025