लेख
19-Sep-2025
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भारतीय जनता पार्टी में पिछले एक दशक से एक सवाल बार-बार उठता रहा है- क्या 75 साल की उम्र के बाद नेताओं को सक्रिय राजनीति से हट जाना चाहिए? बीते दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 75 साल के हो गए, पिछले कुछ महीनों से देश में एक बहस चल रही है कि क्या मोदी इस्तीफा देकर मार्गदर्शक मंडल में जाएंगे? जिस तरह से उन्होंने पीएम बनने के बाद पार्टी के बड़े से बड़े नेताओं लाल कृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, यशवंत सिन्हा, अरुण शौरी जैसे दिग्गजों को जबरन मार्गदर्शक मंडल में डाल दिया था l उसी तर्ज पर क्या पीएम मोदी किसी नए व्यक्ति के लिए अपनी कुर्सी छोड़ेंगे? ऐसा लगता नहीं है क्योंकि मोदी सत्ता छोड़ने के मूड में नहीं है, ख़ासकर जब सबकुछ उनके कन्ट्रोल में है तो भला वे क्यों छोड़ देंगे l वैसे भी सत्ता का अपना एक मजा होता है l पिछले महीने आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने कहा था कि एक उम्र के बाद पद छोड़ देना चाहिए, और युवाओं को मौका देना चाहिए l मोहन भागवत के बयान के बाद देश में एक विमर्श छिड़ गया कि मोहन भागवत पीएम मोदी को नसीहत दे रहे हैं कि अब आप 75 साल के हो गए हैं अतः अपनी कुर्सी छोड़ दीजिए l परंतु विज्ञान भवन में आयोजित एक कार्यक्रम में मोहन भागवत अपने बयान से पलट गए l आरएसएस एवं भाजपा में ऐसा कोई नियम नहीं है कि एक उम्र के बाद कुर्सी या पद त्याग देना चाहिए l इसका सीधा सा अर्थ ये निकलता है कि पीएम मोदी 17 सितम्बर को 75 साल के हुए हैं, वहीँ मोहन भागवत 11 सितंबर को 75 साल के हो गए हैं तो सीधी सी बात है मोहन भागवत पलट गए क्योंकि मोदी से पहले उन्हें इस्तीफ़ा देना पड़ता, और मोहन भागवत भला अपना पद क्यों छोड़ना चाहेंगे? गौरतलब है जब नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाया जा रहा था, तब पार्टी के कई बड़े नेता इस फ़ैसले से सहज नहीं थे l लालकृष्ण आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी जैसे नेता मोदी के ख़‍िलाफ़ थे l मोदी को पता था कि अगर इन्हें सरकार में जगह दी गई तो उनकी स्वतंत्रता प्रभावित होगी l तभी एक तर्क गढ़ा गया कि 75 साल की उम्र के बाद नेता सक्रिय राजनीति से हट जाएँगे.भाजपा की ओर से इस नियम का कभी भी औपचारिक रूप से एलान नहीं किया गया यह पार्टी संविधान में भी दर्ज नहीं है, उस वक़्त भाजपा के नेता और प्रवक्ता ऑफ़ द रिकॉर्ड यह बातें पत्रकारों को बताते थे, इसका एक नैरेटिव बनाया गया था, औपचारिक रूप से कभी कुछ नहीं कहा गया l इसके बाद आडवाणी, जोशी एवं दूसरे वरिष्ठ नेताओं को 2014 में एक मार्गदर्शक मंडल का हिस्सा बनाया गया l जानकारी के मुताब‍िक़ इसकी आज तक एक भी बैठक नहीं हुई l इस नियम को औपचारिक रूप से सबसे पहले आनंदीबेन पटेल ने स्वीकार किया था l आनंदीबेन ने साल 2016 में गुजरात की मुख्यमंत्री पद से इस्तीफ़ा द‍िया था l तब उन्होंने कहा था, मैं भी नवंबर में 75 साल की होने जा रही हूँ, मैं हमेशा से ही बीजेपी की विचारधारा, सिद्धांत और अनुशासन से प्रेरित हूँ, इसका आज तक पालन करती आई हूँ, पिछले कुछ समय से पार्टी में 75 से ऊपर उम्र के नेता और कार्यकर्ता स्वेच्छा से अपना पद छोड़ रहे हैं, जिससे युवाओं को मौक़ा मिले, यह एक बहुत अच्छी परंपरा है, मेरे भी नवंबर महीने में 75 साल पूरे होने जा रहे हैं l बीजेपी का 75 साल वाला नियम असल में एक सॉफ़्ट गाइडलाइन था न कि सख़्त प्रावधान l मोदी ने इसका इस्तेमाल वरिष्ठ नेताओं को सम्मानजनक तरीक़े से साइडलाइन करने के लिए किया l नजमा हेपतुल्ला और कलराज मिश्र केन्द्री य कैबिनेट का ह‍िस्सान थे, इसके बाद वे गवर्नर बने l तब ऐसी चर्चा थी क‍ि उम्र की वजह से ऐसा हुआ है l बीएस येदियुरप्पा ने भी जब कनार्टक का मुख्यमंत्री पद छोड़ा था तब उनकी उम्र 78 साल थी, वहाँ भी कारण उम्र बताया गया l मोहन भागवत एवं पीएम मोदी ने 75 साल की उम्र में नेताओ का मार्गदर्शक मंडल में भेजने का जो नियम बनाया था जाहिर होता है कि अपने सीनियर नेताओं की राजनीतिक परियां तो खत्म करना उदेश्य था l साथ ही कोई ऊपर अंकुश न रह जाए और कोई प्रतिद्वंदिता न रह जाए l कुलमिलाकर कहा जा सकता है कि 75 की उम्र में मार्गदर्शन मंडल महज एक राजनीतिक हथियार था जिसे बड़ी होशियारी से चलाया गया l कुछ महीनों से भाजपा के प्रवक्ताओं ने एक राग अलापना शुरू कर दिया है कि पार्टी के संविधान में ऐसा कुछ नहीं लिखा कि 75 साल की उम्र में नेताओ को रिटायर हो जाना चाहिए l इसलिए राजनीति में शुचिता जैसी बातेँ अब हवा हो गई हैं l (लेखक पत्रकार हैं ) (यह लेखक के व्य‎‎‎क्तिगत ‎विचार हैं इससे संपादक का सहमत होना अ‎निवार्य नहीं है) .../ 19 ‎सितम्बर /2025