ऑक्सफोर्ड (ईएमएस)। ऑर्बिटिंग स्पेसक्राफ्ट ने मंगल ग्रह के उत्तरी ध्रुवीय क्षेत्र में बने विशाल भंवर के भीतर ओजोन की अप्रत्याशित परत दर्ज की है। मंगल ग्रह को लेकर वैज्ञानिकों की इस चौकाने वाली खोज ने यह सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या कभी मंगल पर भी धरती जैसी ओजोन लेयर मौजूद थी, जो सतह को खतरनाक पराबैंगनी (यूवी) किरणों से बचाती थी। ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के डॉ. केविन ओल्सन ने यूरोप्लैनेट साइंस कांग्रेस और डिविजन ऑफ प्लानेटरी साइंसेज की बैठक में बताया कि मंगल के उत्तरी ध्रुवीय क्षेत्र में सर्दियों के दौरान तापमान -148 सेंटीग्रेड तक गिर जाता है। मंगल का झुकाव धरती से मिलता-जुलता है, जिसके कारण वहां भी मौसम बदलते हैं और ध्रुवीय क्षेत्र कई महीनों तक अंधेरे में डूबे रहते हैं। इन परिस्थितियों में हवा का बेहद ठंडा और सूखा भंवर बनता है, जिससे वातावरण में मौजूद थोड़ी-सी नमी भी जमकर बर्फ के रूप में गिर जाती है। आमतौर पर सूर्य की यूवी किरणें पानी के अणुओं को तोड़कर हाइड्रोजन ऑक्साइड बनाती हैं, जो ओजोन को नष्ट कर देती है। लेकिन जब ध्रुवीय भंवर में नमी जम जाती है, तो यह प्रक्रिया रुक जाती है और ओजोन वहां जमा होने लगता है। इसी वजह से वैज्ञानिकों ने इस भंवर में ओजोन की परत का अप्रत्याशित उछाल दर्ज किया। डॉ. ओल्सन का मानना है कि ओजोन बेहद अहम गैस है। यह न सिर्फ वातावरण की रासायनिक गतिशीलता को बताती है, बल्कि यह भी संकेत देती है कि समय के साथ मंगल का माहौल कैसे बदला। यदि कभी मंगल पर स्थायी ओजोन परत रही होगी, तो संभव है कि ग्रह की सतह खतरनाक विकिरणों से सुरक्षित रही हो और वहां जीवन के लिए परिस्थितियां अधिक अनुकूल रही हों। मंगल पर जीवन के रहस्य को उजागर करने के लिए यूरोपियन स्पेस एजेंसी 2028 में एक्सोमार्स रोसालिंड फ्रांकलिन रोवर लॉन्च करने जा रही है। इसका लक्ष्य ग्रह पर जीवन के प्राचीन सबूत खोजना है। यदि भविष्य की खोजों में यह पुष्टि हो जाती है कि मंगल पर कभी ओजोन परत जैसी सुरक्षात्मक ढाल मौजूद थी, तो यह खोज न केवल मंगल बल्कि पूरे ब्रह्मांड में जीवन की तलाश को नई दिशा दे सकती है। यह खोज हमें यह समझाती है कि मंगल सिर्फ लाल धूल और बंजर मैदानों का ग्रह नहीं, बल्कि अतीत में शायद धरती जैसा सुरक्षित ठिकाना भी रहा होगा। सुदामा/ईएमएस 24 सितंबर 2025