अमेरिका में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) की तेज़ रफ्तार ने टेक उद्योग की तस्वीर ही बदल कर रख दी है। बड़ी आईटी कंपनियाँ अब ऐसे दौर में पहुँच चुकी हैं, जहाँ मशीनें इंसानों से कहीं ज़्यादा तेज़, सटीक और सस्ती साबित हो रही हैं। जो प्रोजेक्ट पहले किसी इंजीनियर को दो साल पूरे करने में लगते थे, अब एआई से उन्हें महज़ 20-30 दिनों में पूरा हो रहे हैं। कंपनियों के लिए यह तकनीकी एक क्रांति की तरह है। यह एक वरदान भी है, जो सोचते हैं उसे कुछ ही समय में पूरा कर लेते हैं। उत्पादकता बढ़ी है, लागत घट गई है। मानव संसाधन जिसमें इंजीनियरों और कर्मचारियों की एक बड़ी फौज काम करती थी, उनके लिए यह बदलाव किसी डरावने सपने के साकार होने की तरह है। अमेरिका में इसका असर दिखना शुरू हो गया है। अमेरिका की दिग्गज कंपनियाँ मानव संसाधन का “री-स्ट्रक्चरिंग” कर “एआई एडॉप्शन” के नाम पर कर्मचारियों से इस्तीफा लेकर उन्हें नौकरी से हटा रही हैं। जिनकी सेवा अवधि 10 साल से कम है। उन्हें तीन महीने का वेतन देकर बाहर का रास्ता दिखाया जा रहा है। वहीं, पुराने कर्मचारियों को 18 महीने का वेतन देकर बाहर का रास्ता दिखाया जा रहा है। यह एक तरह की गुपचुप छंटनी है। जिसमें कंपनियाँ ‘टर्मिनेशन’ शब्द से बचते हुए बदलाव का नाम देकर हजारों नौकरियाँ को खत्म कर रही हैं। इससे अमेरिका जैसे देश में जहां एच-1वीजा लेकर जो लाखों लोग काम कर रहे हैं, उनके सामने अस्तित्व का संकट खड़ा हो गया है। अमेरिका के वर्तमान राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप जिस तरह से वीजा पर शुल्क लगा रहे हैं, बार-बार नियम बदल रहे हैं, उसे अमेरिका में रह रहे प्रवासी भारतीयों के लिए एक तरफ कुआं और दूसरी तरफ खाई बताया जा रहा है। यह लहर अब भारत पहुँच चुकी है। टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज़ (टीसीएस) इन्फोसिस, विप्रो और एक्सेंचर जैसी कंपनियाँ भी “एआई स्किलिंग” के नाम पर कर्मचारियों की छंटनी दबे-छुपे तरीके से कर रही हैं। टीसीएस में इंजीनियरों को एआई और मशीन लर्निंग की ट्रेनिंग दी जा रही है, जो इस नए दौर की परीक्षा में पास नहीं होते हैं, उन्हें कंपनी से बाहर निकालने की तैयारी तरह-तरह से की जा रही है। जो कर्मचारी वर्तमान तकनीकी पर अपेक्षित परिणाम नहीं दे पा रहे हैं, उन्हें सुनयोजित तरीके से कंपनी से बाहर निकालने के लिए तरह-तरह के प्रयास शुरू हो गए हैं। भारत में भी जल्द ही बड़े पैमाने पर इसका असर दिखना शुरू हो जाएगा। सरकार और दूसरे संगठनों द्वारा लगातार एआई को प्रमोट किया जा रहा है। जैसे-जैसे एआई में काम बढ़ता जाएगा, मानव संसाधन कम होता चला जाएगा। इसका अगला कदम इस्तीफा और छटनी के रूप में भारत में भी शुरू हो चुका है। कर्मचारियों के लिए यह स्थिति बेहद चुनौतीपूर्ण है। सोशल मीडिया पर ऐसे कई उदाहरण सामने आ चुके हैं। जहाँ बिना किसी स्पष्ट कारण के इंजीनियरों एवं अन्य कर्मचारियों को अचानक नौकरी से निकाल दिया गया है। यह एक व्यक्ति या एक परिवार के लिए संकट नहीं है, बल्कि एक व्यापक सामाजिक और आर्थिक चुनौती बनकर सामने आ गया है। बेंगलुरु, पुणे, चेन्नई और हैदराबाद जैसे आईटी हब में बड़े पैमाने पर हजारों लोगों की नौकरियाँ जाती दिख रही हैं। तो उसका असर रियल एस्टेट, परिवहन, हॉस्पिटैलिटी और स्थानीय व्यवसायों तक पहुंचेगा जिसके कारण लाखों लोग बेरोजगार होंगे। यह सच है, एआई के ज़रिए कंपनियाँ अधिक कुशल हो रही हैं। यह भी उतना ही सच है, इससे मानव श्रम का महत्व तेजी से घट रहा है। आने वाले वर्षों में गिने चुने वही इंजीनियर और कर्मचारी मैदान में टिक पाएँगे जो खुद को एआई, मशीन लर्निंग, डेटा साइंस और रोबोटिक्स जैसी तकनीकों से लैस करेंगे। अब डिग्री और पिछले वर्षों के अनुभव का कोई महत्व नहीं रह गया है। सब काम सॉफ्टवेयर और मशीन करने लगी हैं। इसका असर सारी दुनिया में पड़ना शुरू हो गया है। भारत भी इससे अछूता नहीं है। एआई की अपडेटेड स्किल ही करियर और नौकरी की गारंटी होगी। एआई अब केवल एक तकनीक नहीं, बल्कि उद्योगों कृषि कार्यों एवं रोजगार के भविष्य में निर्णायक स्थिति बन गई है। अमेरिका से उठी छंटनी की लहर भारत तक पहुँच चुकी है। ‘सुरक्षित’ मानी जाने वाली आईटी नौकरियाँ भी अब सुरक्षित नहीं हैं। आने वाले समय में तकनीकी ही तय करेगी, कौन आगे बढ़ेगा और कौन तकनीकी दौड़ में पीछे छूटकर बेरोजगार हो जाएगा। एआई युग की यही सच्चाई है। जो खुद को बदलना सीखेगा, वही अपने भविष्य को सुरक्षित रख पाएगा। वैसे जिस तरह से मानव संसाधन की जगह तकनीकी और मशीने लेती चली जा रही हैं, इसका असर दुनिया के सभी देशों में देखने को मिलेगा। करोड़ों लोगों को काम नहीं मिलेगा। ऐसी स्थिति में इतनी बड़ी जनसंख्या को किस तरह से रोजगार से जोड़कर रखा जा सकता है? तकनीकी के इस दौर में एक नई चुनौती सामाजिक, शासन-प्रशासन के सामने वैश्विक स्तर पर खड़ी होती चली जा रही है। इसका जवाब किसी के पास नहीं है। तकनीकी का यह प्रभाव शुरुआती दौर में है, आगे चलकर यह बहुत सारी मुश्किलें खड़ी करने वाली है। जिस तरह से दुनिया में बेरोजगारी और आर्थिक संकट बढ़ रहा है, यदि समय रहते इसका कोई बेहतर रास्ता नहीं निकला गया तो बहुत भयानक दुष्परिणाम आने वाले वर्षों में देखने को मिल सकते हैं। ईएमएस / 13 अक्टूबर 25