मनोरंजन
17-Oct-2025
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मुंबई (ईएमएस)। अभिनेता रोजर मूर की फिल्मों में शुरुआत आसान नहीं रही, कभी टूथपेस्ट के मॉडल बने, कभी विज्ञापनों में मुस्कुराते नज़र आए। लंबे इंतज़ार के बाद 1973 में फिल्म “लाइव एंड लेट डाय” ने उनकी किस्मत बदल दी। मूर ने सीन कॉनरी के बाद जेम्स बॉन्ड का किरदार निभाया, और यह जिम्मेदारी आसान नहीं थी। लेकिन उन्होंने इस किरदार को पूरी तरह नया रूप दिया हिंसा और गुस्से की जगह उन्होंने व्यंग्य और शालीन मुस्कान से दर्शकों को जीता। उनकी मशहूर लाइन “ माय नेम इज बॉन्ड… जेम्स बॉन्ड” तलवार की तरह नहीं, बल्कि रेशमी रूमाल की तरह लगती थी। 45 वर्ष की उम्र में उन्होंने पहली बार बॉन्ड की भूमिका निभाई और 58 वर्ष की उम्र में आखिरी बार। उम्र पर उठे सवालों पर उनका जवाब यादगार था “अगर बॉन्ड गोलियों से बच सकता है, तो उम्र से क्यों नहीं?” मूर का भारत से भी गहरा रिश्ता रहा एक तो अपनी मां की वजह से, और दूसरा फिल्मों के कारण। 1983 में “ऑटोपुसी” की शूटिंग के लिए जब वे उदयपुर आए, तो भारत की भीड़, गर्मी और सुंदरता को पूरे दिल से अपनाया। शूटिंग के दौरान जब एक भारतीय स्टंट कलाकार नाव से गिरने लगा, तो मूर ने बिना झिझक उसे खींचकर बचा लिया। बाद में मुस्कुराते हुए बोले, “ ए बॉन्ड मस्ट सेव लाइव इवन विथआउट केमराज.” भारत को उन्होंने “अव्यवस्था और आकर्षण का संगम” बताया और लिखा “यू डोंट विजिट इंडिया, इंडिया विजिट यू फोरेवर” अपनी आत्मकथा “माय वर्ड इज माय बॉन्ड” में मूर ने लिखा “मैं हीरो नहीं था, बस एक सज्जन आदमी था जिसे कभी-कभी बंदूक थमाई जाती थी।” 23 मई 2017 को रोजर मूर का निधन हो गया, लेकिन वे आज भी दर्शकों के दिलों में ज़िंदा हैं। उन्होंने गोलियों से नहीं, मुस्कान से जीत हासिल की और यही मुस्कान उन्हें अमर बनाती है। मालूम हो कि 14 अक्टूबर 1927 को लंदन में जन्मे रोजर मूर वो अभिनेता थे जिन्होंने जेम्स बॉन्ड के किरदार को नया आयाम दिया। उनके पिता जॉर्ज अल्फ्रेड मूर पेशे से दर्जी और बाद में पुलिसकर्मी बने, जबकि मां लिलियन का जन्म कलकत्ता में हुआ था। अनुशासित माहौल में पले मूर ने शुरुआत में आर्ट स्कूल से चित्रकारी सीखी, लेकिन एक प्रोफेसर के सुझाव “तुम्हें पेंट नहीं, कैमरा संभालना चाहिए” ने उनकी ज़िंदगी की दिशा बदल दी। सुदामा/ईएमएस 17 अक्टूबर 2025