लेख
18-Oct-2025
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दीपावली कार्तिक मास की अमावस्या के दिन मनाई जाती है। दीपावली के पावन दिन रात्रि के समय प्रत्येक घर में धनधान्य की अधिष्ठात्री देवी महालक्ष्मीजी, विघ्न-विनाशक गणेश जी और विद्या एवं कला की देवी मातेश्वरी सरस्वती देवी की पूजा-आराधना की जाती है। धर्मग्रंथों के अनुसार कार्तिक अमावस्या को भगवान श्री रामचंद्रजी चौदह वर्ष का वनवास काटकर अयोध्या लौटे थे, तब अयोध्यावासियों ने राम के राज्यारोहण पर दीपमालाएं जलाकर महोत्सव मनाया था। इसलिए भी ये दिन बेहद खास माना जाता है। इसी दिन गुप्तवंशीय महान राजा चंद्रगुप्त विक्रमादित्य ने अपने विक्रम संवत की स्थापना की थी। धर्म, गणित तथा ज्योतिष के दिग्गज विद्वानों को आमन्त्रित कर यह मुहूर्त निकलवाया कि नया संवत चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से मनाया जाए। दीपावली के दिन आतिशबाज़ी की प्रथा के पीछे सम्भवत: यह धारणा है कि दीपावली-अमावस्या से पितरों की रात आरम्भ होती है। कहीं वे मार्ग भटक न जाएं, इसलिए उनके लिए प्रकाश की व्यवस्था इस रूप में की जाती है। इस प्रथा का बंगाल में विशेष प्रचलन है। भारत विविध प्रकार की संस्कृति का देश हैं जहां धार्मिक कारण भी वैज्ञानिकता के साथ सटीक बैठते हैं। यह पक्ष तो पौराणिक हुआ अब दीपावली का कुछ सामाजिक अध्यन कर लेते हैं। दीपावली हिन्दू धर्म का प्रमुख त्यौहार जो सनातन संस्कृति को ऊंचा फलक देता है, दीपावली के दिन पूरा भारतवर्ष उमंगमयी हो जाता है, किसी को कोई समस्या भी हुई तब भी वो आज के दिन को मानता है। दीपावली यूँ तो सनातन संस्कृति का त्योहार है परंतु अब दीपावली धर्मों, मज़हबों, मुल्कों की सीमाएं तोड़कर लोगों को समेट रहा है। दीपावली हिन्दू, मुस्लिम, सिक्ख, ईसाई, जैन सहित विभिन्न वर्गों के लोगों को अपने साथ जोड़ता है। कभी अमेरिका के राष्ट्रपति भवन में दीपावली आयोजित होती है तो कभी यूनाइटेड नेशन में दीपोत्सव का आयोजन होता है। कभी टेम्स नदी के किनारे लन्दन में दीपोत्सव होता है तो कभी दूर सुदूर किसी मरुस्थल पर... पूरी दुनिया में दीपावली को पहुंचाने में प्रवासी भारतीय लोगों का बहुत बड़ा योगदान है जिन्होंने भारतीय संस्कृति के साथ लोगों को जोड़ दिया है। पूरी दुनिया में आप कहीं भी जाएं अपनी संस्कृति को छोड़ना नहीं चाहिए। पूरी दुनिया जिज्ञासु है, वो दुनिया भर की विभिन्न - विभिन्न संस्कृति को जानने समझने के साथ अपनाती है। यही कारण है कि आज दीपोत्सव यानि दीपावली का त्योहार धर्मों, मज़हबों, मुल्कों की दीवार तोड़कर अमेरिका, अफ़्रीका, ऑस्ट्रेलिया, एशिया, सहित पूरी दुनिया के लोगों को आपस में जोड़ रहा है। पूरी दुनिया के लोग प्रेम, सम्मान, शान्ति, भाइचारे, को अपनाते हुए अंधकार पर प्रकाश की विजय, असत्य पर सत्य की विजय के प्रतीक के रूप में दीपावली को मानते हैं। आज के पावन पर्व पर कुछ महान शायरों के शेर पढ़ने चाहिए जो धर्मों, मज़हबों से उठकर मानवीय संवेदनाओं के सेतु का निर्माण करते हैं। शायरों के ये कलाम भारतीय संस्कृति को और भी समृद्ध बनाते हैं। आज की रात दिवाली है दिए रौशन हैं आज की रात ये लगता है मैं सो सकता हूँ - अज़्म शाकरी जलते हैं इक चराग़ की लौ से कई चराग़ दुनिया तेरे ख़याल से रौशन हुई तो है - शहज़ाद अहमद सभी के दीप सुंदर हैं हमारे क्या तुम्हारे क्या उजाला हर तरफ़ है इस किनारे उस किनारे क्या - हफ़ीज़ बनारसी कोई कुछ भी कहे ये शेर हिन्दुस्तानी सनातन संस्कृति एवं आपसी सौहार्दपूर्ण वातावरण की गवाही देते हैं। दीपावली की रौनक लोगों को भले ही एक दिन के लिए प्रकाशवान बनाती है। परंतु दीपावली अपने आप में बहुत ही खास पर्व है जो मानव जीवन शैली को सुधारने एवं स्वच्छता के प्रति लोगों को जागरूक करता है साथ ही समाज में सौहार्दपूर्ण वातावरण की सीख देता है। हमने गांवों, खेडे में बुजुर्गों के मुँह से सुना है - भैया अगर दीपावली न आए तो लोगों के घर गिर जाएं क्योंकि दीपावली पर जिस तरह से लोग साफ़ - सफ़ाई करते हैं उस स्तर की साफ़ सफाई रोज तो करते नहीं हैं, अच्छा है इसी बहाने लोग घर - द्वार की साफ़ -सफ़ाई कर लेते हैं, हमारे पूर्वजों की दूरदृष्टि कितनी प्रासंगिक रही है। दीपावली की चकाचौंध में खुद को गुम होने से बचाना भी है, ख़ासकर बुजुर्गों, बच्चों, बेजुबान जानवरों के प्रति और भी ज़्यादा सजग होने की आवश्यकता है। पटाखों के साथ खिलवाड़ न करें, उचित दूरी से पटाखे चलाएँ, और कोशिश करें कि पटाखे चलाएं ही नहीं क्योंकि दीपावली पटाखा उत्सव नहीं अपितु दीपोत्सव के रूप में मनाया जाता है। भारतीय संस्कृति के अनुसार आदर्शों व सादगी से मनायें। पाश्चात्य जगत् का अंधानुकरण ना करें। मिठाइयों और पकवानों की शुद्धता, पवित्रता का ध्यान रखें। इन्हीं अच्छी ख्वाहिशों के साथ समस्त देशवासियों एवं दुनिया भर के लोगों के लिए अच्छी कामनाएं ये दीपावली बेशुमार खुशियाँ लेकर आए। (लेखक पत्रकार हैं) ईएमएस / 18 अक्टूबर 25