बिहार में परदेशी नेता महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस कहते हैं कि बिहार का विकास रूकने नहीं देंगे। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के बुलेट ट्रेन की तरह बिहार का विकास हो रहा है। प्रधानमंत्री का जो रेल है न, उसने विकास की कैसी रफ्तार पकड़ी है, इसका उदाहरण बताता हूं। 4 अक्टूबर को मेरा आई फोन एक पाकेटमार ने भागलपुर स्टेशन पर ट्रेन चढ़ते वक्त चुरा ली।ट्रेन चल चुकी थी और मधुपुर जाना जरूरी था। मैं जब मधुपुर स्टेशन पहुंचा तो वहां के रेल थाना में प्राथमिकी दर्ज करवा दी। रेल थाना ने प्राथमिकी की एक प्रति दी। उस प्रति को जब भागलपुर रेल थानाध्यक्ष को दिखाया गया तो उसने कहा कि जब आनलाइन मेरे पास यह आयेगी तो मैं कार्रवाई शुरू करूंगा। आज चौदह दिन बीत गए हैं। वह प्राथमिकी आनलाइन नहीं हुई। जब मैंने वहां के एक दोस्त को थाने पर भेजा तो बताया कि फलां बाबू करते हैं। वे बाबू खुद से नहीं करते। उनसे करवाना पड़ता है। करवाने का मतलब तो समझ ही रहे होंगे। विकास का यह रफ्तार है और बिहार के विकास के बारे में मत पूछिए। टका के बिना किसी दफ्तर का काम करा लीजिए तो समझिए कि गंगा स्नान हो गया और सीधे स्वर्ग का टिकट मिल गया। टिकट से याद आया। बिहार हर पार्टी टिकट ही बांट रहा है और टिकटार्थी पार्टी - वाटी नहीं देख रहा। जहां से मिल जाय , वहां उन्होंने लाइन लगा दी। न विचार का ख्याल, न स्वाभिमान का ख्याल। बंद से बदतर स्थिति है। इस हिसाब से देखें तो बिहार का विकास द्रूतगामी है। ह्यूमन वैल्यू की गिरावट अभूतपूर्व है। बिहार में हर कुछ का रिकॉर्ड टूटता है। टिकट बंटवारे का भी रिकॉर्ड टूटा। सीट बंटी नहीं, सिंबल बंटने लगा। बाद में सीट का बंटवारा हुआ। उम्मीदवार सिंबल लिए घूम रहे हैं। उन्हें समझ में नहीं आ रहा कि वे फर्जी उम्मीदवार हैं कि सही उम्मीदवार। नेता आखिर में कह दिया - फ्रैंडली लड़ो। यह कैसी लड़ाई है? दूसरे दलों से दुश्मनों वाली लड़ाई लड़ो और अपने वालों से फ्रैंडली। बड़े बड़े नेता चुनाव में एक दूसरे की कब्र खोदते हैं तो उम्मीदवारों से सतयुग की उम्मीद करें। खैर। नेताओं ने सारे रिकॉर्ड तोड़ देने की कसम खा रखी है। अशोक चौधरी जदयू के मंत्री हैं, बेटी चिराग़ पासवान की पार्टी के सांसद हैं और दामाद बीजेपी का कोटा संभाले हैं। देखा देखी यह लत फैलती - सिकुड़ती रही। किसी का बेटा बीजेपी में है, बाप जदयू में। बेटी को राजद का टिकट चाहिए। विचार बेचारा क्या करें? रात को धर्मनिरपेक्ष है, दिन को धार्मिक है। एक कोई हैं अपर्णा कुमारी। मैं टहलने जाता था तो पोस्टरों में उसकी तस्वीर देखता था। वे नीतीश कुमार का झाल बजाती थी। कल सुना था कि बिहपुर विधानसभा से राजद के टिकट के लिए लाइन में लगी थी। आज अखबार में देख रहा हूं कि मुकेश सहनी की पार्टी से उसे टिकट मिल गया है। जो लाइन लगाते लगाते थक गए, उन्होंने निर्दलीय की पतवार थाम ली है। सभी को एम एल ए बनना है। कुछ लोगों का पेशा गाने बजाने और फिल्मों में नाचने में अच्छा खासा चल रहा था, वे भी एम एल ए बनने आ गये। मुझे बांसुरी बजाने नहीं आती, मुझे बजाने कहिएगा तो बांसुरी कैसी बजेगी? रवि किशन, हेमा मालिनी, मनोज तिवारी आदि राजनीति में क्या कर रहे हैं? सिर्फ हाथ उठाने के। दरअसल इनके लिए सांसद या एम एल ए की कुर्सी शोभा की वस्तु है। रूपया पैसा हो गया, थोड़ी शोहरत भी चाहिए। सांसद या एम एल ए का तमगा लगा कर समाज में घूमने का जो मजा है, उसका लुत्फ उठा रहे हैं। ईएमएस / 18 अक्टूबर 25