अंतर्राष्ट्रीय
21-Oct-2025


टोक्यो (ईएमएस)। जापान की संसद ने अति-रूढ़िवादी साने ताकाइची को देश की पहली महिला प्रधानमंत्री चुना है। 64 वर्ष की साने ताकाइची लिबरल डेमोक्रेटिक पार्टी (एलडीपी) की सदस्य है। वे अति-रूढ़िवादी और राष्ट्रवादी विचारधारा की समर्थक है। बताया जा रहा हैं कि दिवंगत पूर्व प्रधानमंत्री शिंजो आबे की करीबी राजनीतिक अनुयायी मानी जाती हैं। एलडीपी ने साने ताकाइची का चुनाव सुनिश्चित करने के लिए ओसाका स्थित जापान इनोवेशन पार्टी (जेआईपी), इस इशिन नो काई के नाम से भी जाना जाता है, के साथ अप्रत्याशित गठबंधन किया है। इस गठबंधन के मुख्य कारण जुलाई के चुनावों में एलडीपी की करारी हार के बाद तीन महीने से चल रहे राजनीतिक गतिरोध को समाप्त करना। इतना ही नहीं विपक्षी गुट के बिखरे होने का फायदा उठाकर एलडीपी को सत्ता हासिल करने का मौका देना। ताकाइची के अनुसार, राजनीतिक स्थिरता अभी ज़रूरी है। स्थिरता के बिना, हम मज़बूत अर्थव्यवस्था या कूटनीति के लिए कदम नहीं उठा सकते। बौद्ध समर्थित कोमेइतो पार्टी के साथ अपने लंबे समय से चले आ रहे मध्यमार्गी और शांतिवादी गठबंधन को समाप्त करने के बाद एलडीपी को सत्ता से बेदखल होने से बचाना। इस गठबंधन से सरकार के और अधिक दक्षिणपंथी होने की उम्मीद है, क्योंकि गठबंधन समझौते में साझा राष्ट्रवादी और सुरक्षा-केंद्रित प्राथमिकताओं पर ज़ोर दिया गया है। ताकाइची की सरकार के पास अभी भी संसद के दोनों सदनों में बहुमत नहीं है, जिसका अर्थ है कि उन्हें महत्वपूर्ण कानून पारित करने के लिए अतिरिक्त विपक्षी समूहों को अपने पक्ष में करना होगा। साने ताकाइची के समक्ष मुख्य चुनौतियाँ और एजेंडा सत्तारूढ़ गठबंधन के पास संसद के दोनों सदनों में बहुमत नहीं है, जिससे कानून पारित कराना मुश्किल होगा। कोमेइतो से अलगाव और काले धन के घोटालों के कारण जनता का विश्वास घटा है। जापान में बढ़ती जीवन-यापन की लागत को कम करना और जन-आक्रोश को शांत करना। उन्हें दिसंबर तक एक आर्थिक राहत पैकेज पेश करने का भारी दबाव है। इस सप्ताह के अंत में क्षेत्रीय शिखर सम्मेलन और अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के साथ वार्ता सहित एक व्यस्त एजेंडा है। उनके संशोधनवादी दृष्टिकोण और यासुकुनी तीर्थस्थल की उनकी बार-बार की यात्राएँ चीन और दक्षिण कोरिया के साथ तनाव का कारण बनती हैं। जापान की रक्षा क्षमताओं को मज़बूत करना। आर्थिक विकास को पुनर्जीवित करना। सेना की भूमिका का विस्तार करने के लिए संवैधानिक संशोधनों पर ज़ोर देना। उन्होंने लैंगिक समानता या विविधता सुधारों को बढ़ावा देने में बहुत कम रुचि दिखाई है। वह समलैंगिक विवाह, विवाहित जोड़ों के लिए अलग उपनामों के प्रयोग और शाही परिवार की केवल पुरुषों द्वारा उत्तराधिकार की परंपरा में किसी भी बदलाव का लगातार विरोध करती हैं। आशीष दुबे / 21 अक्टूबर 2025