लेख
24-Oct-2025
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वर्तमान में घट रही अनेक घटनाएं हैरान - परेशान करती हैं। हमने कैसा समाज बनाया और हम कहां खड़े हैं? जोकीहाट ( अररिया) की दिल दहलाने वाली एक घटना। पति की उम्र महज 25 वर्ष। नाम मो. सलाम । बेटी साहेमा, उम्र डेढ़ वर्ष। पिता ने डेढ़ वर्ष की पुत्री को न केवल मारा-पीटा, बल्कि पैर से उसका गला तब तक दबाए रखा, जब तक पुत्री ने दम नहीं तोड़ा। कहां जाता है कि पिता नशेड़ी है। समाज में इसकी निम्न तरीके से प्रतिक्रिया हो सकती है। एक हिन्दू कहेगा कि मुसलमान बहुत क्रूर होते हैं। आस पास के लोग कहेंगे कि नशे ने उसे बर्बाद कर दिया। कोई अफसोस जाहिर करेगा-ओह! कैसा जालिम समाज हो गया है। किसी की टिप्पणी होगी- अल्लाह ऐसे लोगों का गुनाह माफ नहीं करेगा। पुलिस हत्यारे को पकड़ कर जेल में डाल देगी। इतने भर से क्या समाज या देश का दायित्व समाप्त हो जाता है? नृशंसता भरी घटनाएं आम हो गई हैं। आदमी खुद से इतना नाराज़ हो गया है कि प्रेम और संवेदना का सोता सूख गया है। सबसे मौजूं सवाल है कि आजादी के बाद हमने कैसी दुनिया बनाई, कौन सा आदर्श कायम किया और समाज में क्या स्थापित करना चाहते हैं? राष्ट्रपति सबरीमाला के अयप्पा मंदिर में माथे पर पोटली रख कर पूजा कर रही है। रह रह कर प्रधानमंत्री त्रिपुंड धारण कर भगवत भजन करते हैं और सरेआम झूठ बोलने से परहेज़ भी नहीं करते। राष्ट्राध्यक्षों का काम क्या है? जनता उन्हें वोट क्यों देती है? इस तरह के आयोजनों में जनता के टैक्स का पैसा खर्च होता है। अगर निजी पूजा करनी है तो निजी खर्च करें। कभी केदारनाथ, कभी बनारस और सार्वजनिक मंचों से झूठे वादे और झूठे प्रसंग। आप सवाल कर सकते हैं कि बच्ची की हत्या और राष्ट्राध्यक्षों की ऐसी कार्रवाई में क्या संबंध है? संबंध है। इससे पता चलता है कि हम कैसा समाज बनाना चाहते हैं? अगर हमने बेईमानी को स्थापित किया तो आगे चल कर जनता भी उसी राह चलेगी। दो ही रास्ते हैं। या तो जनता के अंदर इतनी समझ हो कि बेईमानों को प्रश्रय न दे या फिर नेतृत्व ईमानदारी से काम करें। ग़लत लोगों को प्रश्रय देकर हम एक ऐसा समाज बना रहे हैं जिसमें नैतिकता का कोई मतलब नहीं होगा, अनैतिकता ही राज करेगी। अनैतिक होते समाज में मां बाप कैसे होंगे? जब संवेदना सूख जायेगी, करूणा कोने में आंसू बहायेगी और विवेक और प्रज्ञा नजर नहीं आयेंगे तो समाज कैसी प्रतिक्रिया देगा? गया को गयाजी किया गया। गया को सम्मान मिल गया, लेकिन हाल देखिए। वहां अतरी कोई जगह है। एक दिन सूनी सड़क पर एक पच्चीस वर्षीया महिला रीना देवी को गोली मार दी गई। मारने वाला कोई और नहीं, उसका पति था। ऐसी घटनाएं एक नहीं सैकड़ों घट रही हैं। हम वोट जिसे चाहे दें, मगर इस समाज के बारे में कौन सोचेगा? नेता तो नहीं सोचेंगे। वे कपड़े की तरह विचार और पार्टी बदलते हैं। कलेजे में अनैतिकता घर कर गई है। वे तो गुनाहगार हैं। गुनाहगार को चुनने वाले हम सब को अपने बारे में भी सोचना चाहिए। मैंने सुना है कि गोपालपुर विधानसभा में एक उम्मीदवार हैं जिसके डर से पंचायत में उसके खिलाफ कोई उम्मीदवार खड़ा तक नहीं होता। इतना खौफ है उसका। ऐसे एक नहीं हैं। उनकी संख्या चक्रवृद्धि ब्याज की दर से बढ़ रही है।‌ समाज के शीर्ष पद पर जो जाय, उसके अंदर स्वाभिमान, सत्य, निर्भयता और संवेदना हो। समाज में भी एक आंदोलन की जरूरत है जिसमें संवेदना और सत्य स्थापित हो। ईएमएस / 24 अक्टूबर 25