लेख
26-Oct-2025
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 *छठ पर्व की आत्मा हैं लोकगीत  डॉ. नीतू कुमारी नवगीत,लोक गायिका  (बिहार की प्रसिद्ध लोक गायिका) भारत पर्व त्योहारों का देश है। जों हमारी संस्कृति व सभ्यता की पहचान व परचम लहराने का कार्य करती है। पर्व त्यौहार के इस श्रंखला में छठ पर्व लोक आस्था का महापर्व है। पुवांचली खास कर मूलतः बिहार के ग्रामीण क्षेत्रों में मनाया जाने वाला यह पर्व ग्लोबलाइजेशन के दौर में अपनी वैश्विक पहचान बन चुका है। यह त्योहार अब बिहार और पूर्वी भारत में तो धूमधाम से मनाया ही जाता है,बल्कि अब  देश के दूसरे राज्यों में भी काफी उत्साह और उल्लास के साथ मनाया जाता है जहाँ भी बिहार के लोग गए हैं,अपना यह पारंपरिक त्योहार अपने साथ ले गए हैं। यही कारण है कि अब घठ पर्व मॉरीशस, फिजी, सूरीनाम,दक्षिण कोरिया,जर्मनी,संयुक्त राज्य अमेरिका, ब्रिटेन तथा त्रिनिदाद जैसे देशों में भी बड़े ही धूमधाम के साथ मनाया जाता है। प्रकृति से जुड़ा हुआ यह महा उत्सव हमें प्रकृति के मूल रूप से जुड़े रहने के लिए प्रेरित करता है। यह त्योहार हमें बताता है की इस संसार में उदय जितना महत्वपूर्ण है अस्त भी उतना ही महत्वपूर्ण है। अर्थात उसका पुनः उदय होता है। उदय - अस्त जीवन की प्रक्रिया चलती रहती है। क्योंकि छठ एक लोक उत्सव है, तो इसमें स्वाभाविक रूप से लोकगीतों का विशेष महत्व पारंपरिक रूप से रहा है। इस त्योहार से जुड़े हर अनुष्ठान और विधान के लिए दर्जनों लोकगीत हैं जिनके माध्यम से अनुष्ठान और पर्व से जुड़ी हुई पवित्रता को दर्शाया जाता है। छठव्रती महिलाएं गीतों के माध्यम से छठ त्योहार के लिए घर की साफ-सफाई से लेकर गेहूं धोने और दउरा उठाने तक की प्रक्रिया को विस्तार से बताते हुए सूर्य देव और छठी मैया की आराधना करती हैं। छत से जुड़े हुए गीतों में छठ महानुष्ठान की आत्मा बसती है। इन गीतों के माध्यम से कोई अपने लिए धन-धान्य मांगता है,तो कोई अपने लिए संतान। एक लोकगीत में तो छठव्रती महिलाएं छठी मैया से रुनकी झुनकी बेटी मांगती हैं। पुरुष प्रधान समाज में पुत्री की आकांक्षा का यह अद्भुत उदाहरण है। गीत के बोल कुछ इस प्रकार हैं- *रुनकी झुनकी बेटी मांगी ला,पढ़लो पंडितवा दामाद,हे छठी मैया। * छठ  से जुड़े हुए कई गीत ऐसे हैं,जिसमें स्वच्छता और पवित्रता की भावना के दर्शन होते हैं। एक गीत में छठव्रती महिलाएं तोता से अनुरोध करती है कि छठ के त्योहार के लिए सुखाए जा रहे गेहूं को वह जूठा ना करे- *मारबो रे सुगवा धनुष से सुगा गिरे मुरझाए* । कुछ गीतों में छठव्रती महिलाएं अपने पिता,पति अथवा भाई से उन सामग्रियों को लाने की गुजारिश करती हैं,जिसका उपयोग छठ व्रत के दौरान किया जाता है। पटना के हाट से नारियल लाने की मांग की जाती है तो हाजीपुर से केला लेकर आने के लिए कहा जाता है। प्रकृति के इस महापर्व में पूजा की हर सामग्री प्रकृति से जुड़ी हुई है चाहे वह सूप है,या दउरा। घी हो या दीप नारियल, केला, गन्ना, गाजर, अदरक, सुथनी और मूली तो प्रकृति के उपहार हैं ही। सूर्य देव और छठी मैया को अर्घ्य देते समय जल की महत्ता तो है ही। अस्ताचलगामी भास्कर और उदितमान भास्कर को अर्घ्य देने के लिए छठव्रती महिलाएं परिवार के सभी सदस्यों के साथ नदी के तट तक जाती हैं या फिर किसी जलाशय की ओर। छठ के दउरा कोई या तो माथे पर ले जाया जाता है या फिर बहंगी पर। एक लोकगीत इसी पर है- *कांच ही बांस के बहंगिया बहंगी लचकत जाए होई ना बलम जी कहरिया बहंगी घाटे पहुंचाए*। कई लोकगीत ऐसे हैं जिसमें छठव्रती महिलाएं बताती है कि यह महा अनुष्ठान वह किन के लिए कर रही हैं। *हम करीला छठ बरतिया से उनके लागी,हमरो जे बेटा कउनो अइसन बेटा से उनके लागी हम करीला छठ बरतिया से उनके लागी। हमरो जे स्वामी कउनो अइसन स्वामी से उनके लागी हम करीला छठ बरतिया से उनके लागी। * छठ के अधिकांश गीत पारंपरिक हैं और उनकी धुनें भी पारंपरिक हैं। फिर भी कई ऐसी लोक गायिकाएं हुई हैं,जिन्होंने छठ गीतों के गायन के माध्यम से अपनी विशिष्ट पहचान बनाई है। महान लोक गायिका शारदा सिन्हा की आवाज के गुंजित हुए बिना तो छठ पर्व अधूरा ही होता है। भगवान भुवन भास्कर और छठी मैया की आराधना का यह पर्व गीतों के साथ ही प्रारंभ होता है और गीतों के साथ ही समाप्त होता है। दूर-दूर से सिर्फ इस त्योहार को मनाने के लिए घर आने वाले बच्चे अपने स्मृति पटेल में इन्हीं गीतों को सहेज कर पुनः अपने काम पर लौट जाते हैं। छठ के घाट से बहुत दूर, अपने घर-परिवार और शहर से निकलकर दूसरे शहर में अपनी पहचान और हैसियत बनाने के लिए प्रयत्नशील हजारों बिहारी और पूर्वांचली लोगों के लिए छठ के गीत सालों भर उनकी मानसिक दृढ़ता और विश्वास का संबल बनते हैं। सालभर की मेहनत और मशक्कत के बाद एक बार पुनः छठ के वही गीत उन्हें अपने गांव और शहर में वापस आने के लिए आमंत्रित करने लग जाते हैं।                       (प्रस्तृति -विनोद तकियावाला,स्वतंत्र पत्रकार व स्तम्भकार) ईएमएस / 26 अक्टूबर 25