 
                            देवरी/सागर (ईएमएस)। अर्जुन कॉलोनी के निवासी तिवारी परिवार द्वारा आयोजित भागवत कथा मे़ पूज्य गुरुदेव ने कहा :- “एक महात्माजी ने सवाल किया कि कौन सबसे ज्यादा बोझ उठाकर घूम रहा है ? कोई बोला गधा सबसे ज्यादा बोझ उठाकर घूम रहा है, किसी ने कहा बैल सबसे ज्यादा वजन उठा रहा है ।किसी ने कहा कि सबसे ज्यादा वजन ऊँट उठा रहा है,महात्माजी किसी के भी उत्तर से संतुष्ट नहीं हुए ।भक्तों ने कहा कि महात्माजी आप ही बताओ कि कौन सबसे ज्यादा बोझ उठा रहा है ? महात्माजी ने मुस्कुराकर कहा कि इस धरती पर सबसे ज्यादा बोझ मनुष्य उठाकर घूम रहा है । किसीने बुरा बोल दिया उसका बोझ, किसीने थोड़ी तारीफ कर दी उसका बोझ, भविष्य की चिंता का बोझ, जीवन में जो पाप किए हैं उनका बोझ, न जाने कितने प्रकार के बोझ मनुष्य अपने सिर पर लेकर घूमता रहता है और जब तक मर नहीं जाता तब तक वह बोझ ढोता रहता है,जिस दिन इंसान अपने दिमाग से इस संसार के प्रपंचो का बोझ उतार देगा, सही मायनों में उसी दिन से इंसान जीना शुरु कर पाएगा!पूज्य गुरुदेव ने सभी को सचेत करते हुए यह बताया कि :- “कभी भी हास-परिहास में, भूलकर भी संत महात्माओं का अपमान नहीं करना चाहिए । संत एवं ब्राह्मणों का अपमान ना हो जाए, ना हास-परिहास में, न जानबूझकर, ना अनजाने में । कहीं कोई ऐसा काम मत करना जिससे ब्राह्मण दुःखी या नाराज हो जाए, ब्राह्मण प्रसन्न तो भगवान प्रसन्न होते हैं, इसीलिए भूलकर भी कभी ब्राह्मण देवता को नाराज मत करना । भगवान कहते हैं जो मेरा अपराध करते हैं, मैं सहन कर लेता हूँ लेकिन जो ब्राह्मण देवताओं का अपराध करते हैं, मैं उन्हें माफ नहीं कर पाता । ब्राह्मण देवता का अपराध करने से तो 60,000 वर्ष तक गंदगी का कीड़ा बनकर रहना पड़ता है ।” इस संदर्भ में गुरुदेव ने राजा नृग की कथा सुनाई ।आगे पूज्य गुरुदेव ने राजा परीक्षित द्वारा पूछे गये तीन प्रश्नों का वर्णन करते हुए बताया कि :- “हम सब यात्री हैं, यात्री से बढ़कर हमारी कोई हैसियत नहीं है, कोई औकात नहीं है। जिस दिन यात्रा पूरी हो जाएगी, तुम चाहोगे तब भी तुम यहाँ रुक नहीं पाओगे, तुम्हें जाना ही पड़ेगा । यात्री को अहंकार ज्यादा शोभा नहीं देता है । जब तक यात्रा कर रहे हो, सबसे प्रेम भरा व्यवहार करके यात्रा कर लो । सबको अपना बनाकर यात्रा कर लो । अपनी वाणी व्यवहार स्वभाव से जीवन में किसीका बुरा ना करो, इतने अच्छे से यात्रा करना कि तुम्हारी यात्रा पूरी हो जाए, उसके बाद भी लोग तुम्हारी जय-जयकार करें, तुम्हें याद करें!संसार में रहते हुए संसारवालों से संबंध कैसा होना चाहिए हम लोगों का ? नाव 24 घंटे नदी में रहती है, लेकिन नदी का एक बूंद पानी में नाव के अंदर नहीं आता । यदि नदी का पानी नाव के अंदर आ गया तो क्या होगा ? नाव डूब जाएगी । जिस प्रकार नदी में रहते हुए भी नाव के अंदर नदी का पानी नहीं आता, उसी प्रकार संसार में रहते हुए भी तुम संसार के रंग को अपने जीवन में मत पड़ने देना । संसार में रहकर भजन करो, कथाएँ सुनो, लेकिन दुनियावालों का जो रंग है, तुम्हारे जीवन में न चढ़ने पाए । अर्थात् दुनियावालों से कभी आसक्ति मत करो, सबसे अनासक्त रहो । आसक्ति केवल भगवान से हो, संसारवालों से ना हो ।यहाँ किसको याद किया जाए ? इस संसार में याद रखने जैसी वस्तु केवल एक ही है । यदि आज आपसे कोई दोस्ती का हाथ बढ़ाता है, तो जल्दी से दोस्ती मत कर लेना, इतना याद रखना कि आज जो आपसे हाथ मिला रहे हैं, एक दिन वह मुझे अलविदा कहेंगे या मैं उन्हें अलविदा कहूँगा ?भगवान ने तुम्हें जिंदगी दी है तो और कुछ आए या ना आए लेकिन मृत्यु जरूर आएगी । इसलिए मृत्यु को जरूर याद रखना । जिसने अपनी मृत्यु को याद रखा है वह कभी भगवान से दूर नहीं जा पाया । पल-पल मृत्यु याद रखोगे तो भगवान की तुम्हें याद आती रहेगी ।”पति और पत्नी के रिश्ते कैसे चल पाते हैं ? इस विषय पर प्रकाश डालते हुए पूज्य गुरुदेव ने समझाया कि : “आज के समय में डायवोर्स क्यों ज्यादा बढ़ गए हैं ? क्योंकि सहनशक्ति में कमी आ गई है । ना तो पत्नी सुनने को तैयार है ना पति सुनने को तैयार है ।भगवान श्री कृष्ण और माता रुक्मिणी के हास-परिहास का प्रसंग हमें यही शिक्षा देता है कि यदि गृहस्थी को चलाना है, यदि गृहस्थी को आगे बढ़ाना है,गृहस्थी को स्वर्ग के जैसा बनाना है, तो पति-पत्नी में सहन करने की क्षमता होनी चाहिए । यदि पति-पत्नी को डांटता है तो पत्नी को यह सोचना चाहिए कि मेरा ही तो पति है । पति मेरा परमेश्वर है,मेरा स्वामी है!और यदि कभी पत्नी नाराज हो जाए तो पति को यह सोचना चाहिए कि मेरे घर की लक्ष्मी ही तो है, समझा ही तो रही है,ऐसी पॉजिटिविटी जब आ जाएगी तो घर मंदिर बन जाएगा, घर स्वर्ग बन जाएगा । यह लड़ाई और झगड़े समाप्त हो जाएँगे और पति-पत्नी की जोड़ी स्वर्ग के इंद्र और इंद्राणी के जोड़े के समान हो जाएगी, तत्पश्चात् पूज्य गुरुदेव ने बताया कि :- “जब तक भागवत में श्री सुदामाजी की कथा नहीं सुनाई जाती तब तक भागवत संपन्न नहीं मानी जाती!सुदामाजी को दरिद्र नहीं कहना चाहिये!सुदामाजी गरीब जरूर थे परन्तु दरीद्र नहीं थे । गरीब और दरिद्र में अंतर होता है । जिनके पास रहने के लिए घर ना हो,जिनके पास पेट भरने के लिए अन्न का दाना ना हो,जिनके पास तन ढकने के लिए कपड़ा ना हो, उसे गरीब कहा जाता है,लेकिन दरिद्र नहीं कहा जाता! सुदामाजी गरीब थे, दरिद्र नहीं थे,दरिद्र वो होता है जो लाखों करोड़ों की संपत्ति होने के बावजूद भी दूसरों की संपत्ति हड़पना चाहता हो ।श्रीमद्भागवत में लिखा है “दरिद्र यस्तु असंतुष्ट:!जिसका मन भगवान ने जो दिया है उससे संतुष्ट नहीं है, जो दूसरे का धन छीनना चाहता है, जो दूसरों की संपत्ति हड़पना चाहता है, उसे दरिद्र कहते हैं । लेकिन सुदामाजी तो ऐसे नहीं थे, तो उन्हें बार-बार दरिद्र कहकर उनका अपमान नहीं करना चाहिए। धन्य हैं सुदामाजी,जिन्होंने ना कभी दुनियावालों से मांगा ना कभी भगवान से मांगा । जिस भक्त ने भगवान से भी ना मांगा हो वह भक्त कितना महान होगा ? जिसके जीवन में संतोष रूपी धन आ जाता है वह इंसान शहंशाहों का शहंशाह होता है। बादशाहों का बादशाह होता है और अमीरों का अमीर होता है । आपके जीवन में कितनी भी गरीबी आवे, कितना भी कष्ट आवे, तब भी किसीके आगे हाथ मत फैलाना। भगवान के मंदिर में जाकर सिर पटक पटक के रो लेना लेकिन दुनियावालों के आगे कभी हाथ मत फैलाना!क्योंकि दुनियावाले केवल आपका मजाक उड़ाएँगे!आपके इन आंसुओं की कीमत अगर कोई समझ सकता है तो केवल भगवान समझ सकते हैं । केवल भगवान आपको आपके दु:ख से उबार सकते हैं ।”इस प्रकार पूज्य गुरुदेव ने श्री कृष्ण और सुदामाजी की मित्रता की हृदयविदारक कथा सुनाकर सभी भक्तों को भाव विभोर कर दिया!आज कथा के विश्राम दिवस पर पूज्य गुरुदेव ने सभी भाविक भक्तों से अपने वाणी या व्यवहार द्वारा किसीको कष्ट पहुँचा हो तो उसकी क्षमा याचना कर यह अनुरोध किया कि जो कथा सात दिनों में सुनाई उसे याद रखियेगा,भागवत कथा को सुनते रहियेगा, कथा करवाते रहियेगा। सभी भक्तों ने सजल नेत्रों से भागवत भगवानजी को तथा पूज्य गुरुदेव को भावपूर्ण विदाई दी। निखिल सोधिया (ईएमएस) 30 अक्टूबर 2025