पश्चिमी उत्तर प्रदेश के गढ़ मुक्तेश्वर वह पौराणिक तीर्थ है जहां शिव के गण जय विजय को मुक्ति मिली थी यहां कार्तिक पूर्णिमा पर लगने वाला मेला महाभारत कालीन अतीत से जुड़ा है।भारत की सनातन संस्कृति के लिए यह मेला और यहां का पवित्र गंगा स्नान देश और दुनिया के पर्यटन के लिए भी महत्वपूर्ण स्थान बना है।इस मौके पर दिवंगत मृतकों की स्मृति में दीपदान करने से उनकी आत्मा को शान्ति मिल जाती है ऐसी मान्यता है। लाखों लोग यहां अपने परिजनों की स्मृति में दीपदान करते हैं। आज इस मेले का स्वरूप मिनीकुम्भ बन चुका है दस किलोमीटर क्षेत्रफल से अधिक में फैला यह मेला देश दुनिया के आकर्षण का केंद्र बनता जा रहा है। कार्तिक गंगा मेला केवल स्नान करने तक ही सीमित नहीं है। कार्तिक पूर्णिमा मेला एकता, भाईचारे, सांस्कृतिक विरासत और एकता का प्रतीक है। यहां से देश के विकास को नई दिशा मिलती है। प्रदेश के मानचित्र पर आने के बाद मेला विभिन्न क्षेत्रों में अपनी साख बढ़ा रहा है। अब मेले से प्रदेश को विकास और स्वदेशी का मूल-मंत्र मिल रहा है। दिल्ली से 100 किमी दूर और राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 24 से लगे, गंगा के निचले तट पर स्थित गढ़ मुक्तेश्वर में कार्तिक पूर्णिमा पर आयोजित होने वाला यह मेला यहां अनादिकाल से आ रहा है। जबकि, महाभारत युद्ध के बाद इस स्थान का महत्व और भी अधिक बढ़ गया। मेले का अतीत पांडवों और भगवान श्रीकृष्ण से भी जुड़ा है बताया जाता है कि महाभारत युद्ध के बाद गढ़ मुक्तेश्वर के गंगा तट पर भगवान श्रीकृष्ण के निर्देश पर सम्राट युधिष्ठिर ने कौरवों और पांडवों की सेना के विशाल वीर योद्धाओं और सैनिकों की आत्मा की शांति के लिए उनका तर्पण किया था। एक ओर पौराणिक साक्ष्य और तथ्य गढ़ मुक्तेश्वर के एतिहासिक सांस्कृतिक अध्यात्मिक महत्व को बयान करते हैं, वहीं आज के इतिहासकार और विद्वान भी मानते हैं कि यह स्थान द्वापर युग में भी सबसे पहले प्रसिद्ध हुआ था। क्योंकि शिवपुराण के अनुसार इस गढ़मुक्तेश्वर का प्राचीन नाम शिववल्लभ हुआ, अर्थात जो भगवान शिव का ही एक प्रिय नाम है।पुराणों में गढ़ मुक्तेश्वर की महिमा काशी के समान बताया गया है, क्योंकि गढ़ मुक्तेश्वर में ही भगवान शिव ने अपनी जय और विजय नाम के गणों को महर्षि दुर्वासा के द्वारा पिशाच योनि के श्राप से मुक्ति दिलाई थी। जिसके बाद इस स्थान का नाम गणमुक्तेश्वर यानि कि गणों की मुक्ति करने वाले भगवान शिव के नाम से पड़ा था। गणमुक्तेश्वर का वह प्राचीन और ऐतिहासिक मंदिर आज भी उस पौराणिक घटना का साक्षी है। त्रेता युग में भी गढ़मुकतेश्वर की महिमा का वर्णन है शिव पुराण के अनुसार इसी गढ़ मुक्तेश्वर के क्षेत्र में गंगा नदी के किनारे ही एक घना वन था, जिसे खाण्डव वन के नाम से जाना जाता था। इसी खांडवी वन में भगवान परशुराम ने ही शिवलिंग की स्थापना की थी। त्रेता युग का यही खांडववन, द्वापर युग में यानि महाभारत के काल में खांडव वन के नाम से अस्तित्व में आया और यही खांडव वन बाद में खांडवप्रस्थ कहलाया और उसके बाद इंद्रप्रथ बना। यही खाण्डव वन हस्तिनापुर राज्य के अधीन था इसलिए पांडवों ने खांडव वन में अपना नया राज्य स्थापित किया था।सम्राट् युधिष्ठिर के निर्णय के बाद भगवान परशुराम द्वारा स्थापित शिववर्षपुर यानी गढ़ मुक्तेश्वर के मुक्तेश्वर महादेव मंदिर में पूजा और यज्ञ आदि करके मृतकों की आत्मा की शांति के लिए तर्पण किया गया था। सम्राट् युधिष्ठिर ने जो निर्णय लिया उसके बाद जो तीर्थयात्रा निकली वह कार्तिक शुक्ल अष्टमी का ही दिन था। इसी दिन गौ पूजन करके गढ़ मुक्तेश्वर के गंगा तट पर गंगा मैदान में सम्राट युधिष्ठिर द्वारा धार्मिक संस्कार करके पिंडदान किया गया। यह देवोत्थान एकादशी थी। महाभारत युद्ध में मारे गए लोगों की आत्मा की शांति के लिए यहां एकादशी से चतुर्दशी यज्ञ किया था, और इसके अगले दिन अर्थात पूर्णिमा के दिन गंगा स्नान करके कथा का आयोजन किया गया था। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने घोषणा की है कि इस साल ऐतिहासिक गढ़मुक्तेश्वर मेले को मिनी-कुंभ के रूप में आयोजित किया जाएगा। यह मेला उत्तर प्रदेश की गहरी आस्था, आध्यात्मिकता और सांस्कृतिक विरासत का जीता-जागता प्रतीक है। यह मेला 30 अक्टूबर से 5 नवंबर तक चलेगा। गंगा की कल कल करती पावन लहरों के किनारे दस किलोमीटर के क्षेत्रफल में बसा तंबुओं का अस्थायी नगर और गंगा में दीपदान से तैरते जलते दीपक एक ऐसी मनोहारी छटा दर्शाते हैं जिस को एक बार देख कर ही ह्रदय आस्था और पवित्रता से आह्लादित हो जाता है। राज्य सरकार का लक्ष्य इसे पूरी श्रद्धा, अनुशासन और स्वच्छता के साथ आयोजित करना है, ताकि हर श्रद्धालु शांति और दिव्य आशीर्वाद लेकर लौटे। इस मेले में करीब 50 लाख श्रद्धालुओं के आने की उम्मीद है। रविवार को मुख्यमंत्री ने हापुड़ जिले के गढ़मुक्तेश्वर में होने वाले वार्षिक कार्तिक पूर्णिमा मेले और अमरोहा के तिगरी मेले की तैयारियों की समीक्षा की। मेले की जगहों का हवाई सर्वेक्षण करने के बाद, उन्होंने एक समीक्षा बैठक की और संबंधित विभागों को आवश्यक निर्देश दिए। मुख्यमंत्री ने कहा कि कार्तिक पूर्णिमा पर गंगा के किनारे करीब 40 से 45 लाख श्रद्धालु पवित्र स्नान करने और दीपदान करने आते हैं। मेले का मुख्य स्नान 5नवंबर को है। इस दिन तीस से पचास लाख श्रध्दालुओं के पहुंचने का अनुमान है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने हर कीमत पर मेला किसी अप्रिय घटना से रहित संपन्न कराने की जिम्मेदारी प्रशासन पर सौंपी है। योगी स्वयं मोनिटरिंग कर रहे हैं। (लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं पिछले 38 वर्ष से लेखन और पत्रकारिता से जुड़े हैं) ईएमएस / 05 नवम्बर 25