लेख
04-Nov-2025
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घोटालों की दुनिया में एक नया नाम जुड़ गया है, बंकिम ब्रह्मभट्ट। यह वही गुजराती कारोबारी है, जिसने अमेरिका में बैठकर 44 हजार करोड़ रुपये से अधिक का घोटाला कर दिया है। 1989 में भारत से अमेरिका गया यह शख्स तीन दशकों में अमेरिका का सम्मानित बिजनेसमैन बन गया। अमेरिका में इसकी बड़ी साफ-सुथरी छवि थी। इसने दस्तावेजों में हेरफेर करके अमेरिका में हजारों करोड़ की धोखाधड़ी को अंजाम दिया है। अमेरिका जैसे देश में रहते हुए कई देशों तक में यह धोखाधड़ी करता रहा। खास बात यह है कि अमेरिका इसकी धोखाधड़ी और गड़बड़ी को नहीं पकड़ पाया। अब परतें खुलीं, तो सामने आया, उसकी कंपनी की चमक पूरी तरह कागज़ी और फर्जी दस्तावेजों पर टिकी हुई थी। उसने हजारों नकली इनवॉइस बनवाकर कंपनियों के नाम पर फर्जी ईमेल और फोन नंबर तक गढ़ लिए, ताकि बैंक और फाइनेंस कंपनियों को उसके द्वारा की जा रही धोखाधड़ी और गड़बड़ी का पता ना लगे। उसका कारोबार अमेरिका में कागजों पर फलफूल रहा था। कंपनी के इसी धोखे में आकर अमेरिकी फाइनेंस कंपनी से उसने लगभग 500 मिलियन डॉलर का कर्ज़ ले लिया। बाद में कंपनी को दिवालिया घोषित कर दिया। कंपनी दिवालिया घोषित कर सारी गड़बड़ी पर पलीता लगाने का जो प्रयास किया गया था, वह धीरे-धीरे खुलकर सामने आ गया है। यह मामला सिर्फ एक व्यक्ति के अपराध की कहानी नहीं है, बल्कि उस सोच का आईना भी है, जो धन को ही सफलता का मानदंड बनाता है। धन का यह भ्रम नैतिकता को पीछे छोड़, अनैतिकता को ही सत्य बना देती है। गुजराती उद्योगपति बंकिम का यह तरीका नया नहीं था। भारत में हर्षद मेहता का शेयर बाजार घोटाला सभी को याद होना चाहिए। हर्षद मेहता के घोटाले ने जिस गड़बड़ी की नींव रखी थी। उसी की शाखाएं आज दुनिया के सभी देशों में फैली हुई नजर आ रही हैं। भारत में नीरव मोदी, विजय माल्या और कई अन्य “कॉरपोरेट संतों” ने यही फार्मूला अपनाया। किसी ने बैंकों को गुमराह किया, किसी ने अपने शेयरों का मूल्य झूठा बढ़ाकर कर्ज़ लिया, और किसी ने फर्जी कंपनियों के जरिये पैसा इधर-उधर घुमाया। अडानी पर हिंडनबर्ग रिपोर्ट में जो आरोप लगे, वे भी बंकिम की कार्यशैली से मेल खाते हैं। अपनी संपत्ति को कागजों में बढ़ा-चढाकर दिखाना, विदेशी शेल कंपनियों के माध्यम से पूंजी का खेल खेलना, और अंततः वित्तीय संस्थाओं को गुमराह कर धोखाधड़ी करके लूटना। फर्क बस इतना है, कोई फरार है, कोई अब भी देश में रहकर अपने आपको सत्ता की छांव में सुरक्षित महसूस कर रहा है। इन घटनाओं से यह स्पष्ट होता है कि चाहे मंच अमेरिका का हो या भारत का, धन और सत्ता का गठजोड़ हर जगह एक जैसा काम करता है। नियामक संस्थाएं अक्सर या तो देर से जागती हैं, या फिर जानबूझकर आंखें मूंद लेती हैं। बैंक और वित्तीय संस्थान जनता के भरोसे से चलते हैं। जब बड़े-बड़े पूंजीपति और राजनेता इन्हें लूटते हैं तो नुकसान भरपाई आमजनता के जेब से होती है। वही विश्वासघात के शिकार होते हैं। राजतंत्र और कॉरपोरेट सेवाओं के शुल्क बढ़ाकर, सरकार टैक्स बढ़ाकर आम जनता से घाटे की भरपाई करती है। अब वक्त आ गया है, भारत और दुनिया के देश इन “कॉरपोरेट घोटालों” से सबक लें। वित्तीय पारदर्शिता, जवाबदेही, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर शेल कंपनियों की निगरानी के बिना यह सिलसिला रुकने वाला नहीं है। बंकिम ब्रह्मभट्ट का यह मामला सिर्फ अमेरिका में हुए नुकसान और आर्थिक अपराध की चेतावनी नहीं है। यह भारत के लिए भी एक दर्पण है। जिसमें झांकने की हिम्मत हमारी व्यवस्था को करनी ही होगी। पिछले तीन दशक में जिस तरह से गुजरात के लोगों ने आर्थिक क्षेत्र में भारत और दुनिया के सभी देशों में अपनी पहचान बनाई थी अब वही पहचान गुजरातियों और भारत के लिए शर्म का कारण भी बन रही है। गुजरात के लोग हमेशा से व्यापार और व्यवसाय के लिए सारी दुनिया में जाने जाते थे। महात्मा गांधी और सरदार पटेल जैसे लोगों ने सारी दुनिया में गुजरातियों का सर गर्व से ऊंचा किया था। अब वही गुजरात के लोगों के कारण भारत की एक ऐसी पहचान बन रही है, जो भारत को भी नुकसान पहुंचा रही है। ईएमएस / 04 नवम्बर 25