लेख
06-Nov-2025
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राहुल कांग्रेस के ऐसे नेता है जो हमेशा गलत वजहों से खबरों में रहते है। राहुल की टिप्पणी और आरोप हमेशा बेतुके और असंगत होते है। बिहार चुनाव में पहले चरण के चुनाव के पूर्व हरियाणा के बहाने चुनाव आयोग पर मनगढ़ंत आरोप लगाए। हरियाणा में आठवां वोटर फर्जी और भाजपा ने वोट चुराने के बेमतलब आरोप लगाकर मन को शांत करने की कोशिश राहुल ने की है। हरियाणा में 25 लाख से ज्यादा वोटर्स फर्जी बताकर सीधा निर्वाचन आयोग को घेरने का प्रयास किया है। लेकिन निर्वाचन आयोग ने इसे बेबुनियाद और तथ्यविहीन बताया। भाजपा ने कहा कि कांग्रेस की असली हार की वजह उनके अपने नेता है। राहुल की ये बाते कुंठा को ही व्यक्त करती है। राहुल अपनी पार्टी से भी चिढ़े हुए है। क्योंकि बार बार हार के कारण हताश और निराश हुए नेता के लिए बात प्रतिष्ठा पर आ गई है। हर बार कांग्रेस चुनावो में अच्छा प्रदर्शन नही करने से कांग्रेसी नेताओं में चिड़चिड़ापन बढ़ रहा है। देश की आजादी के बाद से बैलेट पेपर पर चुनाव होते थे उसमे कांग्रेस को कभी हार का सामना नही करना पड़ा था। क्योंकि उस दौर में फर्जी वोटिंग करना, बुच कैप्चरिंग और बाहुबल के बल पर सत्ता हथियाने की सफल कोशिश की जाती थी। लेकिन अब फर्जी वोट नही किया जा सकता है। इस पर कांग्रेस को सिरदर्द हो रहा है। चुनाव आयोग निष्पक्ष और सत्यनिष्ठा से चुनाव कराने की अपनी जवाबदारी है। कांग्रेस का पतन उनकी अपनी करनी का प्रतिफल है। रक्षामंत्री राजनाथसिंह ने कहा है कि राहुल गांधी देश मे अराजकता फैलाने की कोशिश कर रहे है। राजनाथसिंह ने कहा कि कांग्रेस के नेताओं के पास अब कोई काम नही है और कांग्रेस नेताओं के पास कोई चारा नही बचा है। इसलिए उन्हें तालाब में कूदना पड़ा। राजनाथसिंह ने कहा कि राहुल गांधी को समझना चाहिए कि देश चलाना बच्चो का खेल नही है। राहुल ने सशस्त्र बलों में आरक्षण की मांग को लेकर राजनाथ सिहं ने कहा कि वे देश मे अराजकता फैलाना चाहते है। बिहार में रोजगार के मुद्दे का बोलबाला सुनाई दे रहा है। बिहार चुनाव में राजद ने नौकरी की बात का शिफुगा छोड़ा था। उसी के सामने नीतीश ने एक करोड़ रोजगार की बात कहकर महागठबंधन के वादे को कमजोर कर दिया। राजीव गांधी के बाद कांग्रेस पार्टी ने एक विशेषता विकसित की है। वह यह कि जो कांग्रेस को नुकसान पहुंचाता है,उसे अपने व्यक्तव्यों से मूर्ख बनाता है उसे ही पार्टी अपना नेता बनाती है। कपिल सिब्बल,दिग्विजयसिंह,पी चिदंबरम और ऐसे अनेक नेता आज भी पार्टी में मौजूद है जो जुठ बोलने के कारण जाने जाते है। उनकी भाषा असभ्य और कांग्रेस के विरोधी के प्रति अवमाननापूर्ण होती है। कांग्रेस पार्टी मुसलमानो की सबसे बड़ी समर्थक पार्टी रही है। राहुल को न्यायालय से डांट और चेतावनी मिलतीं है। लेकिन उसके बाद भी व्यवहार में परिवर्तन की कोई गुंजाइश दिखाई नही देती है। नालन्दा की शिक्षा प्रणाली के बहाने राहुल ने कहा कि आज यूनिवर्सिटी में पेपर लीक होते है। लदरअसल, राहुल क्यो भूल जाते है यह सबकुछ हो रहा है,वह कांग्रेस की देन है। बिहार को जंगलराज में तब्दील करने वाली पार्टियों में लालू औऱ कांग्रेस की जनभागीदारी ज्यादा रही है। बिहार से तीस साल पीछे धकेलने वाले लालू और कांग्रेस के पास और सता रहती तो राज्य की क्या दशा होती?उसकीं कल्पना भी नही की जा सकती है। 56 इंच की छाती वाला डरपोक है, का मोदी पर तंज कसने वाले राहुल को कांग्रेस के शासनकाल को याद करना चाहिए। चारो तरफ अराजकता के चलते कांग्रेस से मतदाता रूठे हुए है। राहुल ने निशाना साधते हुए कहा कि अमेरिका के रास्ट्रपति से भी मोदी डरते है। लेकिन भाजपा ऐसे मनगढ़ंत मुद्दे को तवज्जो नही देती है। मोदी ने महागठबंधन के घोषणा पत्र को जुठ का पुलिंदा करार दिया। कांग्रेस के दिग्गज नेता पार्टी आलाकमान के मार्गदर्शन में शायद कार्य नही कर रहे है। इसलिए राहुल बेलगाम दिखाई दे रहे है। सेना और संविधान की चर्चा पर तंज कसने वाले राहुल को मंथन करने की आवश्यकता है। कांग्रेस का विश्वास है कि बिहार में गठबंधन होता तो सत्ता में आने का मौका मिलता और इसलिए कांग्रेस हर राज्य में गठजोड़ में चुनाव लड़ रही है। तेजस्वी और कांग्रेस का गठबंधन होने के बाद बिहार प्रदर्शन कमजोर हो गया है। बिहार की राजनीति हमेशा से देश के राजनीतिक परिदृश्य का केंद्र रही है। यहाँ की सामाजिक बनावट, जातिगत समीकरण और राजनीतिक जागरूकता इसे एक अनोखा राज्य बनाती है। आने वाले चुनावों में कांग्रेस और राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के गठबंधन के लिए यह एक निर्णायक परीक्षा होगी। सवाल यह है कि क्या कांग्रेस नेता राहुल गांधी बिहार में अपनी पार्टी की वैतरणी पार लगा पाएंगे, और क्या तेजस्वी यादव इस राजनीतिक संग्राम में सफल होंगे? राहुल गांधी के लिए बिहार हमेशा एक चुनौतीपूर्ण प्रदेश रहा है। कांग्रेस का जनाधार पिछले तीन दशकों में यहाँ लगातार सिमटता गया है। पहले जहाँ कांग्रेस सत्ता की धुरी हुआ करती थी, वहीं अब उसकी स्थिति गठबंधन सहयोगी तक सीमित हो गई है। राहुल गांधी ने भारत जोड़ो यात्रा और सामाजिक न्याय के मुद्दों को उठाकर देशभर में एक नई राजनीतिक धारा बनाने की कोशिश की है। लेकिन बिहार में कांग्रेस को पुनर्जीवित करने के लिए केवल विचारधारा नहीं, बल्कि मजबूत संगठन और स्थानीय नेतृत्व की जरूरत है। यह वही बिंदु है जहाँ राहुल को अपनी रणनीति पर और मेहनत करनी होगी। दूसरी ओर, तेजस्वी यादव ने अपने पिता लालू प्रसाद यादव की राजनीतिक विरासत को संभालते हुए युवाओं और बेरोजगारी जैसे मुद्दों पर लगातार आवाज उठाई है। 2020 के विधानसभा चुनावों में उन्होंने राजदके लिए ठीक प्रदर्शन किया था। लेकिन इस बार वे एक गंभीर नेता के रूप में नही उभर रहे हैं। परन्तु लालू की विरासत थामे तेजस्वी की राह आसान नही है। ईएमएस / 06 नवम्बर 25